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Independence Day Special: भुलाई नहीं जा सकती शहीद नवाब मज्जू खां की कुर्बानी, इनके डर से पहाड़ों में छिप गए थे अंग्रेज

Moradabad: 1858 में अंग्रेजों ने रामपुर के नवाब की मदद से दोबारा मुरादाबाद पर हमला कर दिया था. नवाब मज्जू खां ने डटकर मुकाबला किया लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें गोली मारकर शहीद कर दिया.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ नवाब मज्जू खां (Nawab Majju Khan) ने जो क्रांति की आवाज उठाई थी वो उनकी शहादत के बाद भी उठती रही. ये आवाज इतनी बुलंद हो गई कि देश के कोने-कोने में आजादी के लिए देश भक्तों ने बढ़ चढ़कर लड़ाई लड़ी और आखिरकार अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना पड़ा था. देश की जंगे आजादी की पहली लड़ाई में यूपी में मुरादाबाद (Moradabad) के शहीद ए वतन नवाब मजीद उद्दीन उर्फ नवाब मज्जू खां की कुर्बानी को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. 

अंग्रेजों ने गोली मारकर कर दिया शहीद 
1857 में आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के सिपहसालार मुरादाबाद के नवाब मज्जू खां ने अंग्रेजों की फौज को बुरी तरह हरा दिया था. अंग्रेजों को मज्जू खां के डर के कारण भाग कर नैनीताल की पहाड़ियों में छिपना पड़ा था, लेकिन 1858 में अंग्रेजों ने रामपुर के नवाब की मदद से दोबारा मुरादाबाद पर हमला कर दिया था. नवाब मज्जू खां ने अंग्रेजों से फिर डटकर मुकाबला किया लेकिन वे इस बार जीत नहीं पाए और अंग्रेजों ने उन्हें गोली मारकर शहीद कर दिया.


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शव को हाथी के पैर में बांधकर घसीटा
अंग्रेजों ने मुरादाबाद के लोगों में अपना खौफ पैदा करने के लिए नवाब मज्जू खां को शहीद करने के बाद उनके शव को एक हाथी के पैर में रस्सी से बांधकर पूरे शहर में घसीटकर घुमाया और उसके बाद उनके शव को पुत्तन शहीद मस्जिद के पीछे स्थित इमली के पेड़ से लटका दिया. आज भी यहां इमली का वो पेड़ कब्रिस्तान में खड़ा उनकी शहादत की गवाही दे रहा है और शहीदों पर हुए जुल्मों की कहानी अपने अंदर समेटे हुए है. 


Independence Day Special: भुलाई नहीं जा सकती शहीद नवाब मज्जू खां की कुर्बानी, इनके डर से पहाड़ों में छिप गए थे अंग्रेज

इलाके को कहा जाता है शहीदों की मिट्टी
नवाब मज्जू खां के साथ ही बहुत से और लोगों को भी अंग्रेजों ने शहीद कर दिया था. उनके शवों को भी यहां इसी कब्रिस्तान में दूसरे पेड़ों पर लटका दिया गया था और बाद में उन्हें चूने के भट्टे में भी डाल दिया गया था. अंग्रेजों ने यहां आजादी की आवाज उठाने वाले लोगों का बड़ा कत्लेआम किया था. यहां के कब्रिस्तान में बहुत से स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों की कब्रें आज भी मौजूद हैं, इसलिए इस इलाके को गलशहीद कहा जाता है जिसका मतलब होता है शहीदों की मिट्टी.


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नवाब मज्जू खां की याद में बना है गेट भी 
देश के लोगों को हमेशा नवाब मज्जू खान की कुर्बानी याद रहेगी. मुरादाबाद में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाले शहीदों की याद में सिविल लाइंस इलाके में स्वतंत्रा संग्राम सेनानी भवन बना हुआ है. यहीं कंपनी बाग में शहीद स्मारक भी है जहां मुरादाबाद के सैकड़ों स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों के नाम लिखे हुए हैं. नवाब मज्जू खां की याद में यहां एक गेट भी बना हुआ है. 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ नवाब मज्जू खां ने जो आवाज उठाई थी वो उनकी शहादत के बाद भी उठती रही. ये आवाज इतनी बुलंद हो गई की देश के कोने-कोने में आजादी के लिए लोगों ने बढ़ चढ़कर लड़ाई लड़ी और अपनी जान देकर देश को आजाद कराया था. 

लोगों को सरकार से है ये उम्मीद
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वालों की जीत हुई और हमारा देश अंग्रेजों के कब्जे से हमेशा के लिए आजाद हो गया. स्वतंत्रता संग्राम के इन शहीदों को आज पूरा देश सलाम कर रहा है. मुरादाबाद के लोग 75वें अमृत महोत्सव के मौके पर प्रदेश और केंद्र सरकार से यह उम्मीद लगाए हुए हैं कि सरकार देश की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले इस जवान शहीद नवाब मंजू खान के नाम से मुरादाबाद में या तो कोई मेडिकल कॉलेज खोले या फिर कोई ऐसी संस्था खोले जिससे आने वाली नस्लों के लिए एक यादगार साबित हो और मुरादाबाद सहित देश के लोग इस देशभक्त को कभी भुला न सकें.

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