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Independence Day: भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ा है पीलीभीत का इतिहास, शहीद दामोदर दास हंसकर को आज भी रखते हैं लोग

पीलीभीत (Pilibhit) जिले के सेनानियों की वीरता की कहानी भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी है. यहां के शहीद दामोदर दास हंसकर की शहादत को लोग आज भी याद करते हैं.

Independence Day 2022: पूरे देश में आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के रूप में मनाया जा रहा है. वहीं पीलीभीत (Pilibhit) जिले का भी आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा है. पीलीभीत में आजादी से पूर्व क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की वीरता की कहानी और उनकी शहादत को आज भी पीलीभीत में याद किया जाता है.

देश की आजादी से पूर्व सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लेने वाले युवा वीर जवान दामोदर दास आंदोलन में शामिल हुए. तब उन्होंने 26 वर्ष की उम्र में ही आंदोलन जुलूस में शामिल होकर अंग्रेजों से लोहा लिया. उसी दौरान शीर्ष नेतृत्व करने वाले दामोदर दास वीरगति को प्राप्त हो गए. यही नहीं उनके साथ तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की लड़ाई में देश के लिए अपना अहम योगदान भी दिया. उन्हीं में से एक बीसलपुर के कमांडो कहे जाने वाले रामस्वरूप स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे, जिनके नाम पर शहर में एक पार्क स्थित हैं. शहीद दामोदर दास की स्मृति में 15 अगस्त 1990 को शहर के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुंवर भगवान सिंह द्वारा इस पार्क का शिलान्यास किया गया था. जिनकी शाहदात को याद करते हुए लोग आज भी यहां आकर उनकी स्मृति को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

शहीद दामोदर दास हंसकर की कहानी
सन 1916 में पीलीभीत में जन्मे दामोदर दास के पिता कपड़ा व्यापारी थे. जिनकी शिक्षा के दौरान 26 वर्ष की उम्र में आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ाई करते समय भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर युवाओं में गर्मजोशी थी. जिसमें देश भक्त दामोदर दास ने आंदोलित तरीके से जुलूस निकालकर अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के साथ योजना बनाकर उनसे लोहा लिया. उस समय शहर के गैस चौराहा पर 13 अगस्त 1942 में अंग्रेजों से लड़ते समय अंग्रेजी हुकूमत की लाठियों से उन पर बुरी तरह हमला कर दिया गया. उन्हें मरणासन्न अवस्था में जेल में डाल दिया.

14 अगस्त 1942 में अंग्रेजी पुलिस की प्रताड़ना यातनाओं का डटकर सामना करते हुए दामोदर दास हंसकर देश के लिए शहीद हो गए. जिनकी शहादत को आज भी पीलीभीत में याद किया जाता हैं. वहीं दूसरी ओर शहर में क्रांतिकारी योजनाओं और आंदोलन की रणनीति बनाने वाले उस रामस्वरूप पार्क में रामस्वरूप कमांडर को याद कर किया जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और राष्ट्रवादी नेताओं के साथ पार्क में स्थित चबूतरे पर गोपनीय बैठक सहित आंदोलनों की तैयारी किया करते थे.

क्या बोलते हैं बेटे?
पीलीभीत के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सुपुत्र जसवंत सिंह बताते हैं कि उनके दादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे. उनके दादा से प्रेरणा लेकर उनके पिता जय सिंह भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे. दामोदर दास सहित पीलीभीत के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ देश की आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाई, ऐसे ही दामोदर दास रहे. जिनकी क्रांति ने देश को आजादी दिलाई. आजादी की लड़ाई में अग्रणी रहे दामोदर दास के टीम में ही मेरे पिता ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए अंग्रेजों से लड़ाई ली.

इस दौरान शहर के गैस चौराहे पर अंग्रेजों की लाठियों ने उन्हें मरणासन्न कर दिया. वह देश के लिए शहीद हो गए. जिससे आक्रोशित होकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजी पुलिस से लोहा लेते समय एक पुलिस के सिपाही को भी मार दिया था. हम अपने परिवार के साथ देश की सेवा करने के लिए देश के सपूतों के घर से रहे हैं. इस बात का हमें बेहद गर्व है. आज हमारा पूरा जिला शहीदों की शहादत को उनकी याद के साथ नम आंखों से मनाता है.

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