Dussehra 2025: रावण का पुतला जलाने की परंपरा पर रोक लगाने की मांग, 'सनातन धर्म का अपमान है'
Mathura News : मथुरा में लंकेश भक्त मंडल के लोगों ने दशहरा पर रावण का पुतला दहन करने पर रोक लगाने की मांग की है. साथ ही इसे सनातन विरोधी कृत्य बताया है.

देशभर में जहां दशहरा के मौके पर रावण का पुतला दहन करने की परंपरा हैं, वहीं यूपी के मथुरा जिले में रावण के भक्तों के एक संगठन ने समाज और सरकार से दशहरे के पर्व पर लंकेश का पुतला जलाने की परम्परा पर रोक लगाने की मांग की है. संगठन के लोगों ने कहा कि भगवान शिव के प्रिय भक्त और श्रीराम के आचार्य रहे दशानन के पुतले का दहन किया जाना सनातन धर्म का 'अपमान' है.
यमुना किनारे रावण के स्वरूप की आरती
लंकेश भक्त मण्डल के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने समाज और सरकार से दशहरे के पर्व पर लंकापति रावण का पुतला दहन करने की परंपरा पर रोक लगाने की मांग की है. उन्होंने अपनी मांग के समर्थन एवं रावण का पुतला जलाने की परंपरा के विरोध में यमुना किनारे रावण के स्वरूप की आरती कर संदेश देने का प्रयास भी किया.
इसके पूर्व, भक्त मण्डल के सदस्यों ने गुरुवार को महामंत्र का जाप कर भगवान शंकर से समाज को 'सद्बुद्धि प्रदान करने' की कामना की. सारस्वत ने कहा कि लंकापति रावण भगवान भोलेनाथ के प्रिय भक्त और भगवान श्रीराम के आचार्य थे. वह प्रकाण्ड विद्वान, त्रिकालदर्शी और शिव ताण्डव स्तोत्र के रचयिता थे. बार-बार उनका पुतला दहन करना सनातन धर्म का अपमान करना है.
'इस कुप्रथा को बंद करने की मांग '
उन्होंने कहा, ''लंकेश भक्त मंडल दशानन के पुतला दहन का विरोध करते हुए सरकार व समाज से इस कुप्रथा को बंद करने की मांग करता है.'' सारस्वत ने कहा कि ऐसे ज्ञानी व्यक्ति का पुतला दहन करने से गाय और ब्राह्मण की हत्या के समान पाप लगता है. इससे समाज को भी कोई लाभ नहीं मिलता बल्कि प्रदूषण फैलता है और अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं.
'हिंदू धर्म में एक व्यक्ति का केवल एक बार ही दहन'
उन्होंने दलील देते हुए कहा, ''वैसे भी, हिंदू धर्म में एक व्यक्ति का केवल एक बार ही दहन (अंतिम संस्कार) होता है, बार-बार नहीं. पुतला दहन की प्रथा सनातन धर्म विरोधी कृत्य है.'' सारस्वत ने कहा कि रावण-दहन की जगह भगवान श्रीराम और रावण युद्ध का मंचन किया जाना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा मिल सके.
विदित हो कि लंकेश भक्त मण्डल के नाम से बने इस संगठन के सदस्य करीब ढाई दशक से यह मांग कर रहे हैं और इस परंपरा के विरोध स्वरूप यमुना किनारे रावण के स्वरूप की महाआरती का आयोजन करते हैं. इस संगठन में अधिकांशत: सारस्वत गोत्र के ब्राह्मण युवा एवं अन्य शिवभक्त शामिल हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार रावण भी सारस्वत गोत्रीय ब्राह्मण ही था.
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Source: IOCL























