राजस्थान: विवाद के बाद बदले जा रहे फैसले, अब जनसुनवाई को दिया गया कार्यकर्ता सुनवाई का नाम
Jaipur News: विवादों के बाद जनसुनवाई को अब कार्यकर्ता सुनवाई का नाम दिया गया है. इस सुनवाई में कार्यकर्ताओं से बीजेपी से जुड़े होने के सबूत मांगे जा रहे हैं.

राजस्थान में सरकार ने अंता विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में करारी हार का सामना करने के बाद जनता के नजदीक आने और उसकी समस्याओं को दूर करने के मकसद से सोमवार (1 दिसंबर) से राजधानी जयपुर में जनसुनवाई किए जाने का ऐलान किया था. यह जनसुनवाई पार्टी के प्रदेश कार्यालय में मंत्रियों द्वारा की जा रही है. हालांकि इस जन सुनवाई से लोगों का कुछ भला हो पाता, उससे पहले ही यह विवादों में घिर गई है और सरकार व पार्टी दोनों के लिए ही मुसीबत का सब बन चुकी है.
जनसुनवाई को अब कार्यकर्ता सुनवाई में तब्दील कर दिया गया है. कार्यकर्ताओं से बीजेपी से जुड़े होने के सबूत मांगे जा रहे हैं. बड़े नेताओं की सिफारिशी चिट्ठी के बिना कार्यकर्ताओं को भी दफ्तर में एंट्री नहीं दी जा रही है.
सरकार के लिए मुसीबत बने खुद के लिए फैसले!
राजस्थान में सरकार द्वारा लिए गए फैसले अब उसके लिए ही मुसीबत का सबब बनते जा रहे हैं. सरकार को अपने फैसलों को ही बदलना और वापस करना पड़ रहा है. तीन दिन पहले कोहराम मचने के बाद सरकारी स्कूलों में बाबरी विध्वंस की बरसी को शौर्य दिवस के तौर पर मनाए जाने के फैसले को कुछ ही घंटे में वापस लिया गया. इसके अलावा राजधानी जयपुर में बीजेपी के दफ्तर में जनसुनवाई किए जाने के फैसले में 2 दिन बाद ही तब्दीली कर दी गई.
जनसुनवाई को किया गया कार्यकर्ता सुनवाई
जनसुनवाई को अब कार्यकर्ता सुनवाई का नाम दिया गया है. नाम बदलने के बाद बीजेपी दफ्तर में सोमवार से बुधवार तक रोजाना दो घंटे होने वाली सुनवाई में आम जनता एंट्री नहीं कर पा रही है. आम जनता को यह कहकर वापस लौटा दिया जा रहा है, कि यहां सिर्फ कार्यकर्ताओं की फरियाद सुनी जाएगी.
अपनी शिकायतें और समस्याओं को लेकर उन्हें मंत्रियों और अधिकारियों के घर व दफ्तर के चक्कर काटने होंगे. वैसे ऐसा नहीं है कि बीजेपी के सभी कार्यकर्ताओं की शिकायतें भी यहां सुनी जा रही हैं. कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुनना तो दूर की बात है, उन्हें पार्टी के प्रदेश कार्यालय में घुसने तक नहीं दिया जा रहा है.
बीजेपी कार्यकर्ताओं से मांगे जा रहे सबूत
बीजेपी कार्यकर्ताओं से कार्यकर्ता होने के सबूत मांगे जा रहे हैं. सिर्फ उन्हीं कार्यकर्ताओं को अंदर जाने की इजाजत दी जा रही है, जिनके पास पार्टी के सांसद-विधायक, जिला अध्यक्ष, किसी बड़े पदाधिकारी या फिर मंडल अध्यक्ष की सिफारिशी चिट्ठी है.
इस चिट्ठी में यह भी लिखा होना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति बीजेपी का पुराना कार्यकर्ता है और प्रदेश कार्यालय में मंत्रियों द्वारा इसके मामले को सुना जाना जरूरी है. जिसके पास चिट्ठी नहीं उस कार्यकर्ता को एंट्री भी नहीं. भले ही वह 20-25 साल पुराना कार्यकर्ता हो या फिर किसी बड़े नेता से फोन पर बात कर कर अपने कार्यकर्ता होने का सबूत देना चाहता हो.
मायूस होकर लौट रहे हैं कार्यकर्ता
सुनवाई में जितनी संख्या में कार्यकर्ताओं की समस्याओं और शिकायतों को सुना जा रहा है, उससे ज्यादा कार्यकर्ताओं को मायूस होकर खाली हाथ वापस जाना पड़ रहा है. अपना खून पसीना बहाने वाली पार्टी के दफ्तर से इस तरह वापस किए जाने के बाद कोई कार्यकर्ता मायूस होकर मुंह लटकाए वापस चला जा रहा है तो कोई मुखर होकर अपनी नाराजगी व विरोध जता रहा है.
इसे लेकर कांग्रेस पार्टी ने सरकार और बीजेपी दोनों पर निशाना साधा है. कहा है कि बीजेपी को जनता से कोई सरोकार नहीं है इसीलिए जनसुनवाई से जनता को गायब कर दिया गया है. राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के मीडिया कोऑर्डिनेटर और प्रदेश महासचिव स्वर्णिम चतुर्वेदी का कहना है कि बीजेपी में पर्ची का चलन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अब बड़े नेताओं की पर्ची के बिना कार्यकर्ताओं को एंट्री तक नहीं दी जा रही है.
सुनवाई में कंफ्यूज हैं सरकार के मंत्री
वैसे इस सुनवाई में शामिल होने वाले मंत्री भी अपनी भूमिका को लेकर कन्फ्यूज नजर आ रहे हैं. उन्हें किसकी समस्या सुननी है और किसकी नहीं, खुद उन्हें भी कंफर्म नहीं है. कभी वह इसे जनसुनवाई बताते हैं तो कभी कार्यकर्ता सुनवाई.
बुधवार (3 दिसंबर) को प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और महिला व बाल विकास विभाग की मंत्री मंजू बाघमार ने सुनवाई की. हालांकि सुनवाई के बाद मीडिया ब्रीफिंग में दोनों ही नेता बार-बार जनसुनवाई शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे. सवाल पूछे जाने पर उनके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था.
मामले में बीजेपी कार्यालय प्रभारी ने दी यह जानकारी
इस बारे में राजधानी जयपुर में बीजेपी के कार्यालय प्रभारी मुकेश पारीक का कहना है कि शुरुआती दिनों में कुछ दिक्कतें जरूर आ रही हैं लेकिन इन्हें जल्द ही दूर कर लिया जाएगा. किसी भी कार्यकर्ता को खाली हाथ वापस नहीं जाने दिया जाएगा. जिसके पास बड़े नेताओं की चिट्ठी नहीं होगी, उससे वह खुद बात करेंगे.
राजस्थान की मौजूदा सरकार ने शुरुआती दिनों में पहले भी जनसुनवाई की शुरुआत की थी, लेकिन इन्हीं तरह के विवादों के सामने आने के बाद उसे हफ्ते भर से कम समय में ही बंद कर दिया गया था. अब देखना यह होगा कि इस बार यह कार्यक्रम कितने दिनों तक चलता और सफल होता है. आम जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं को इस सुनवाई से कितना फायदा होता है.
Source: IOCL






















