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भोपाल गैस त्रासदी : पीथमपुर के लोगों की मांग, 'जहरीले कचरे की राख कहीं और ले जाएं'

Bhopal Gas Tragedy Ash: भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी पर पीथमपुर के नागरिकों ने यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की राख को कहीं और ले जाने की मांग की है.

भोपाल गैस त्रासदी की आज (3 दिसंबर) 41वीं बरसी है. पीथमपुर के नागरिकों ने राज्य सरकार से मांग की कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे को इस औद्योगिक क्षेत्र के एक अपशिष्ट निपटान संयंत्र में भस्म किए जाने के बाद उत्पन्न करीब 900 टन राख को निस्तारण के लिए कहीं और ले जाया जाए.

अधिकारियों के अनुसार फिलहाल यह राख पीथमपुर के एक संयंत्र के ‘लीक-प्रूफ स्टोरेज शेड’ में सुरक्षित तौर पर रखी गई है. उन्होंने बताया कि संयंत्र में यूनियन कार्बाइड कारखाने के 337 टन विषैले अपशिष्ट, 19 टन संदूषित मिट्टी और 2.2 टन पैकेजिंग सामग्री समेत कुल 358 टन की खेप को अलग-अलग चरणों में भस्म करने की प्रक्रिया इस साल जुलाई की शुरुआत में संपन्न हुई थी.

आबो-हवा को पहुंच सकता है गंभीर नुकसान

अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने इस राख को पीथमपुर के संयंत्र में ही निर्माणाधीन विशेष बहुपरतीय विशाल गड्ढे (लैंडफिल सेल) में डालकर इसके निपटारे की योजना बनाई थी. कचरा जलने के बाद अब इसकी राख को लेकर स्थानीय लोग आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं. उनका कहना है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे की जहरीली राख का निपटारा पीथमपुर के संयंत्र के बजाय किसी निर्जन स्थान पर किया जाना चाहिए क्योंकि किसी दुर्घटना की स्थिति में ‘लैंडफिल सेल’ में कोई गड़बड़ होने से मानवीय आबादी और आबो-हवा को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है.

'कहीं और ले जाया जाए कचरे की राख को'

मध्य प्रदेश के धार जिले का यह संयंत्र पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के तारपुरा गांव से एकदम सटा है. करीब 20,000 की आबादी वाले गांव में करीब 30 साल से रह रहे प्रकाश सर्कटे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि उनका घर संयंत्र से महज 500 मीटर दूर है. उन्होंने कहा,‘‘हमारी सरकार से मांग है कि जनता की चिंताओं की सुध लेते हुए यूनियन कार्बाइड के कचरे की राख को हमारे गांव से सटे संयंत्र से उठाकर कहीं और ले जाया जाए.’’

सर्कटे ने कहा कि स्थानीय लोगों ने पीथमपुर के संयंत्र में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने का भी पुरजोर विरोध किया था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

गांव के लोगों को अक्सर रहती है सर्दी-जुकाम

तारपुरा में ही रहने वाली निर्मला पंवार ने दावा किया कि गांव के लोगों को अक्सर सर्दी-जुकाम, बुखार और आंखों में जलन की समस्या रहती है. ग्रामीण महिला ने कहा, 'हम अपने घरों के पास के जलस्त्रोतों से पीने का पानी नहीं लेते. यह पानी गंदा दिखाई देता है और इसे पीने पर गला खराब हो जाता है.'

गैस त्रासदी के बाद से भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को सूबे की राजधानी से करीब 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के संयंत्र में दो जनवरी को पहुंचाया गया था. इसके बाद पीथमपुर में कई विरोध प्रदर्शन हुए थे.

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों का दावा है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को जलाए जाने के दौरान इस संयंत्र से पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड हाइड्रोजन फ्लोराइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के साथ ही मर्करी, कैडमियम और अन्य भारी धातुओं के उत्सर्जन मानक सीमा के भीतर पाए गए.

पीथमपुर के संयंत्र में यूनियन कार्बाइड के कचरे के निपटारे का मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में विचाराधीन है और निस्तारण की प्रक्रिया अदालत की निगरानी में संपन्न हो रही है.

हाईकोर्ट की जबलपुर स्थित मुख्य पीठ ने आठ अक्टूबर को इस संयंत्र के परिसर में बनाए जा रहे ‘लैंडफिल सेल’ में इस कचरे की राख का निपटारा करने का प्रस्ताव यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह इकाई इंसानी आबादी के बेहद नजदीक है और इंसानी आबादी के निकट विषैली राख का वर्तमान निस्तारण स्थल इस न्यायालय को स्वीकार्य नहीं है.

अदालत ने अपने आदेश में एक हस्तक्षेपकर्ता के अंतरिम आवेदन का जिक्र किया था जिसमें कहा गया था कि जांच के दौरान राख में मौजूद मर्करी (पारा) का स्तर स्वीकृत सीमा से अधिक पाया गया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश भी दिया था कि वह एक रिपोर्ट दाखिल करे जिसमें इस राख के निपटान के लिए वैकल्पिक स्थलों का उल्लेख हो.

पीथमपुर के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल द्विवेदी ने कहा, ‘’हम चाहते हैं कि राज्य सरकार अदालत के निर्देश का पालन करे. यूनियन कार्बाइड के कचरे की राख का निपटारा पीथमपुर के संयंत्र के बजाय ऐसी जगह किया जाए जहां इंसानी आबादी और पर्यावरण को किसी भी तरह के नुकसान का खतरा न हो.’’

भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था. इससे कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपंग हो गए थे. इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में गिना जाता है.

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