नया स्वरूप ले रहा है मां नैना का हवन कुंड, 1800 साल पुरानी धरोहर को फिर से किया जाएगा जीवंत
Himachal News: 1800 साल पुराने नैना देवी मंदिर के प्राचीन हवन कुंड को नया स्वरूप दिया जा रहा है. इसके निर्माण में विशेष रूप से माह की दाल की पीटी, बिल गिरी का चुरा जैसे मिश्रण का प्रयोग हो रहा है.

हिमाचल प्रदेश के विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर में लगभग 1600 से 1800 साल पुराना प्राचीन हवन कुंड जो की मंदिर में विद्यमान है. हमारी प्राचीन संस्कृति का धरोहर है. आजकल उसके जीर्णोद्वार का कार्य चल रहा है और इसका कार्य मंदिर न्यास के द्वारा विशेषज्ञ की टीमों को बुलाकर पारंपरिक तरीके के माध्यम से इस धार्मिक धरोहर को इसके मूल स्वरूप में ही पुनर्जीवित किया जा रहा है.
देश की प्रतिष्ठित संरक्षण संस्था इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज को यह कार्य सौंपा गया. इसके निर्माण में सीमेंट और केमिकल का नहीं बल्कि विशेष रूप से माह की दाल की पीटी, बिल गिरी का चुरा, चूना और मेथी जैसे परंपरागत मिश्रण का इस्तेमाल हो रहा है.
1600 से 1800 साल पुराना है हवन कुंड
हालांकि जो भी हमारे 100 वर्ष से ऊपर के ऐतिहासिक धरोहर है उनके मूल स्वरूप के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. उसी को ध्यान में रखते हुए माता श्री नैना देवी के मंदिर में जो यह प्राचीन हवन कुंड है जो कि लगभग 1800 साल पुराना है. इस पर भी बिना कंक्रीट के प्रयोग किए बिना सीमेंट और किसी प्रकार के केमिकल के बिना इस नई पद्धति के द्वारा फिर से तैयार किया जा रहा है.
आने वाले 50 सालों तक यह पुणे मंदिर की धरोहर के रूप में इसी प्रकार बना रहे और इसके लिए देश की प्रतिष्ठित संरक्षण संस्था इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज को यह कार्य सौंपा गया है. जिसके विशेषज्ञ राजस्थान से यहां पहुंचे हैं. यह हवन कुंड न सिर्फ अधिक मजबूत बनेगा बल्कि अगले 50 सालों तक यह पुनः सुरक्षित रहेगा.
जिलाधिकारी ने दी यह जानकारी
जिलाधिकारी बिलासपुर राहुल कुमार ने बताया कि यह हवन कुंड जो कि हमारी प्राचीन संस्कृति की धरोहर है. इसका कार्य बहुत ही पारंपरिक तरीके से करवाया जा रहा है, ताकि इसके मूल ढांचे को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे और फिर से यह पूर्ण रूप से तैयार हो.
वहीं मंदिर न्यास के अध्यक्ष एसडीएम धर्मपाल का कहना है कि हमारी मंदिर की यह प्राचीन धरोहर जो कि लगभग 1800 साल पुरानी है. इसके लिए काफी सोच-विचार करके राजस्थान से विशेषज्ञ कारीगर बुलाए गए हैं. जो कि इसका कार्य कर रहे हैं और इसका कार्य किसी सीमेंट केमिकल से नहीं बल्कि पारंपरिक तरीके से किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि आने वाले 50 सालों तक यह सुरक्षित रहे और श्रद्धालुओं की आस्था को भी किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे.
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