पटना पुस्तक मेले में 15 करोड़ की किताब, क्या है इसकी खासियत? कितने पन्नों का है? जानें
Patna Book Fair: यह ग्रंथ दो भाषाओं में है और 16 किताबें छपी हैं. आठ अंग्रेजी और आठ हिंदी में है. तीन किताबों को ही पूरी दुनिया में बेचा जाएगा, बाकी 13 में दो पुस्तकें केंद्र में स्थापित की जाएंगी.

पटना के गांधी मैदान में पुस्तक मेला लग गया है. पांच दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्घाटन किया था. करीब 41 वर्षों से लगातार पुस्तक मेले का आयोजन गांधी मैदान में हो रहा है, लेकिन रविवार (07 दिसंबर) को काफी खास दिन रहा. रविवार को गांधी मैदान में दुनिया का सबसे महंगा ग्रंथ "मैं" खूब चर्चा में रहा. पुस्तक मेले में इस ग्रंथ की प्रदर्शनी लगाई गई है.
इसके लेखक रत्नेश्वर रविवार को खुद गांधी मैदान में थे. दावा किया जा रहा है यह किताब दुनिया की सबसे महंगी है. पुस्तक के अनावरण के दौरान लेखक ने इसे शोकेस जरूर किया, लेकिन किसी को भी इसके पन्ने पलटने नहीं दिए.
किताब के बारे में लेखक ने दी पूरी जानकारी
दूसरी ओर लोगों के मन में सवाल है कि आखिरी पुस्तक में ऐसी क्या खास बात है की कीमत इतनी ज्यादा है? इस पर लेखक ने पूरी जानकारी दी. रत्नेश्वर ने कहा कि 'मैं' ग्रंथ ज्ञान की परम अवस्था का आविष्कार है, जिसे हम कहते हैं कि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हो गया था. वह कौन सी परम स्थिति है जब किसी मनुष्य के लिए यह कहा जाता है कि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया है, यह ग्रंथ उस रहस्य का आविष्कार करता है.
किताब इतनी महंगी क्यों है? इसको लेकर उन्होंने बताया कि वे संसार के हर एक मनुष्य को 'मानने से जानने' की यात्रा की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं. जो बातें इस ग्रंथ में हैं वह रामायण हो, महाभारत हो, वेद-पुराण, उपनिषद, बाइबल या कुरान में भी नहीं है.
हिंदी और इंग्लिश भाषा में है यह ग्रंथ
बताया गया कि यह ग्रंथ दो भाषाओं में है, इंग्लिश और हिंदी. इंग्लिश में 408 पन्ने और हिंदी में 382 पेज का है. 16 किताबें ही छपी हैं. इनमें आठ अंग्रेजी और आठ हिंदी में हैं. तीन किताबों को ही पूरी दुनिया में बेचा जाएगा, बाकी 13 में दो पुस्तकें केंद्र में स्थापित की जाएंगी, जहां लोग आकर ग्रंथ का दर्शन कर सकते हैं. इसके बारे में जानकारी ले सकते हैं. इसके अलावा 11 लोग 11 पुस्तक को पूरी दुनिया में घूमकर इसके बारे में जानकारी देंगे और उन 11 लोगों का नाम होगा "मैं" रत्न.
रत्नाकर रत्नेश्वर ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि इस किताब को लिखने में उन्हें तीन महीने यानी 90 दिन लगे हैं, लेकिन इसे लिखने के लिए मात्र 3 घंटे 24 मिनट में ज्ञान आया था. उन्होंने बताया कि 7 सितंबर, 2006 को रत्न मुहूर्त में उन्हें जगाया गया. उस वक्त महाराष्ट्र के थाने के जंगल में वे थे. उस तीन घंटे 24 मिनट में अपने त्रिनेत्र से खरबों वर्षों की यात्रा की और पूरे ब्रह्म के निर्माण को देखा. इसके साथ ही उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया. उन्होंने जो देखा उसे ही इस ग्रंथ में लिखा है. वे 21 दिनों तक स्थितप्रज्ञ की अवस्था में रहे.
यह भी पढ़ें- Indigo Crisis: JDU नेता केसी त्यागी ने मांगे फ्लाइट के पैसे, RJD ने कहा- 'अपनी बेटी पर पड़ा तो…'
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL























