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'1000 साल की हिस्ट्री गायब कर दी', पाकिस्तान का इतिहास लिखने वालों पर बरसी पाक जनता

ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि उनके बुजुर्ग ब्राह्मण जात थे. उन्होंने कहा कि उन्हें यह मानने में कोई दिक्कत नहीं, उन्हें इस पर गर्व है. जमशेद ने कहा कि हम अपने इतिहास को कैसे भुला सकते हैं.

ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि उनके बुजुर्ग ब्राह्मण जात थे. उन्होंने कहा कि उन्हें यह मानने में कोई दिक्कत नहीं, उन्हें इस पर गर्व है. जमशेद ने कहा कि हम अपने इतिहास को कैसे भुला सकते हैं.

पाकिस्तान की जनता का क्यों फूटा गुस्सा? (प्रतीकात्मक तस्वीर)

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इतिहास की नॉलेज रखने वाले ख्वाजा जमशेद इमाम ने पाकिस्तान और भारत के इतिहास, भगत सिंह पर बात की. उन्होंने कहा कि भगत सिंह को वह अपना हीरो मानते हैं. उन्होंने कहा कि असल हीरो तो वो होते हैं जो सन ऑफ द लैंड होते हैं या सोल ऑफ द लैंड होते हैं. हिंदू शासक राजा दाहिर सिंध के हीरो हैं. वहां पर लोग आज भी उसको मानते हैं. शहीद भगत सिंह हीरो है, वह पंजाब का हीरो है. हमारा हीरो राजा पोरस है, जिसने सिकंदर को मुश्किल टाइम दिया.
इतिहास की नॉलेज रखने वाले ख्वाजा जमशेद इमाम ने पाकिस्तान और भारत के इतिहास, भगत सिंह पर बात की. उन्होंने कहा कि भगत सिंह को वह अपना हीरो मानते हैं. उन्होंने कहा कि असल हीरो तो वो होते हैं जो सन ऑफ द लैंड होते हैं या सोल ऑफ द लैंड होते हैं. हिंदू शासक राजा दाहिर सिंध के हीरो हैं. वहां पर लोग आज भी उसको मानते हैं. शहीद भगत सिंह हीरो है, वह पंजाब का हीरो है. हमारा हीरो राजा पोरस है, जिसने सिकंदर को मुश्किल टाइम दिया.
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पाकिस्तानी यूट्यूबर सोहेब चौधरी से बात करते हुए ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास में दिक्कत वहां आई जब 14 अगस्त 1947 के बाद मोहम्मद अली जिन्ना की डेथ हुई और पाकिस्तान लियाकत अली के काबू में आया और ऑब्जेक्टिव रिजॉल्यूशन पास हुआ कि तय करें कि पाकिस्तान को क्यों बनाया गया. उन्होंने कहा कि फिर रिसर्च शुरू हुई तो इन्होंने रियासतों को इस्लाम कबूल करवा दिया. रियासतों के तो मजहब नहीं होते हैं.
पाकिस्तानी यूट्यूबर सोहेब चौधरी से बात करते हुए ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास में दिक्कत वहां आई जब 14 अगस्त 1947 के बाद मोहम्मद अली जिन्ना की डेथ हुई और पाकिस्तान लियाकत अली के काबू में आया और ऑब्जेक्टिव रिजॉल्यूशन पास हुआ कि तय करें कि पाकिस्तान को क्यों बनाया गया. उन्होंने कहा कि फिर रिसर्च शुरू हुई तो इन्होंने रियासतों को इस्लाम कबूल करवा दिया. रियासतों के तो मजहब नहीं होते हैं.
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ख्वाजा जमशेद इमाम ने 11 अगस्त, 1947 की मोहम्मद अली जिन्ना की पहली तकरीर का जिक्र करते हुए कहा कि वह सुनें, उसमें वह कह रहे हैं कि इससे मजहब का कोई मतलब ही नहीं है. जब आपने रियासत को इस्लाम कुबूल करवाया तो उसके बाद आपको वैसी आवाम भी बनानी पड़ी. वैसा माइंडसेट भी बनाना पड़ा और सरकार वो स्कूल सिलेबस के जरिए बनाती है.
ख्वाजा जमशेद इमाम ने 11 अगस्त, 1947 की मोहम्मद अली जिन्ना की पहली तकरीर का जिक्र करते हुए कहा कि वह सुनें, उसमें वह कह रहे हैं कि इससे मजहब का कोई मतलब ही नहीं है. जब आपने रियासत को इस्लाम कुबूल करवाया तो उसके बाद आपको वैसी आवाम भी बनानी पड़ी. वैसा माइंडसेट भी बनाना पड़ा और सरकार वो स्कूल सिलेबस के जरिए बनाती है.
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उन्होंने कहा, 'मुझे याद है जब मैं छोटा था तो उस वक्त मैंने जो इतिहास पढ़ा वह चंद्रगुप्त मौर्य से शुरू होता था. उसमें सम्राट अशोक का जिक्र था, लेकिन जब मैट्रिक में पहुंचा तो वो तारीख सिकंदर-ए-आजम से शुरू हुई और फिर सिकंदर के 326 ईस्वी से  वह सीधे 712 ईस्वी पर मोहम्मद बिन कासिम पर आ जाती है और 1000 साल गायब कर दिए. ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि उस हजार साल में इस्लाम और मुसलमान नहीं हैं इसलिए उस इतिहास को हटा दिया. आज हिस्ट्री की जो किताबें हैं उनमें अशोक और चंद्रगुप्त नहीं हैं. पहले इसलिए थे क्योंकि बांग्लादेश साथ था वहां बहुत हिंदू रहते थे और हिंदुओं का सिंध भी साथ था.
उन्होंने कहा, 'मुझे याद है जब मैं छोटा था तो उस वक्त मैंने जो इतिहास पढ़ा वह चंद्रगुप्त मौर्य से शुरू होता था. उसमें सम्राट अशोक का जिक्र था, लेकिन जब मैट्रिक में पहुंचा तो वो तारीख सिकंदर-ए-आजम से शुरू हुई और फिर सिकंदर के 326 ईस्वी से वह सीधे 712 ईस्वी पर मोहम्मद बिन कासिम पर आ जाती है और 1000 साल गायब कर दिए. ख्वाजा जमशेद इमाम ने कहा कि उस हजार साल में इस्लाम और मुसलमान नहीं हैं इसलिए उस इतिहास को हटा दिया. आज हिस्ट्री की जो किताबें हैं उनमें अशोक और चंद्रगुप्त नहीं हैं. पहले इसलिए थे क्योंकि बांग्लादेश साथ था वहां बहुत हिंदू रहते थे और हिंदुओं का सिंध भी साथ था.
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मौलाना तारिक जमील को लेकर उन्होंने कहा कि अगर मुफ्ती साहब खुद को चौहान बता रहे हैं तो उनका ताल्लुक पृथ्वीराज चौहान से हुआ. तो पृथ्वीराज चौहान तो मुसलमान नहीं था. मैं भी यह तसलीम करता हूं कि मैं ब्राह्मण जात हूं. मुझे इस पर गर्व है, हम अपने इतिहास को कैसे भुला सकते हैं. उन्होंने कहा, 'मेरे पूर्वजों ने 1702 में इस्लाम कुबूल किया तो क्या 1702 से पहले जमीन पर इंसान नहीं थे, इंसान थे न, कंवर्टेड थे? मजहब बदलने से हक-ए-मलकियत खत्म नहीं होता. पाकिस्तान कहता है कि क्योंकि आपका मजहब कुछ और है और ये इस्लामी रियासत है इसलिए मुझे राइट ज्यादा हैं, नहीं. आप दो बच्चों की तालीम और सेहत में फर्क नहीं कर सकते हैं.'
मौलाना तारिक जमील को लेकर उन्होंने कहा कि अगर मुफ्ती साहब खुद को चौहान बता रहे हैं तो उनका ताल्लुक पृथ्वीराज चौहान से हुआ. तो पृथ्वीराज चौहान तो मुसलमान नहीं था. मैं भी यह तसलीम करता हूं कि मैं ब्राह्मण जात हूं. मुझे इस पर गर्व है, हम अपने इतिहास को कैसे भुला सकते हैं. उन्होंने कहा, 'मेरे पूर्वजों ने 1702 में इस्लाम कुबूल किया तो क्या 1702 से पहले जमीन पर इंसान नहीं थे, इंसान थे न, कंवर्टेड थे? मजहब बदलने से हक-ए-मलकियत खत्म नहीं होता. पाकिस्तान कहता है कि क्योंकि आपका मजहब कुछ और है और ये इस्लामी रियासत है इसलिए मुझे राइट ज्यादा हैं, नहीं. आप दो बच्चों की तालीम और सेहत में फर्क नहीं कर सकते हैं.'
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उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान के इतिहास को किताबों में बदला गया. उन्होंने कहा कि जुल्फीकार भुट्टो के वक्त हुक्मरान ने जब संविधान बनाया तो 1973 को ये शामिल किया कि हेड ऑफ द स्टेट और प्रधानमंत्री कोई नॉन-मुस्लिम नहीं हो सकता है. 1974 में जुल्फीकार अली भुट्टो ने एजुकेशन पॉलिसी अप्रूव करवाई उसमें ये शामिल करवाया कि इस्लामिक स्टडीज और पाकिस्तान स्टडीज को पढ़ाया जाना कंपलसरी है. उन्होंने आगे बताया कि जुलाई, 1977 में भुट्टों के निधन के बाद जियाउल हक ने अपने मर्जी का इस्लाम और अपनी मर्जी का पाकिस्तान का इतिहास पढ़ाया, जिस वजह से कई लोगों की विचारधारा वैसी बन गई.
उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान के इतिहास को किताबों में बदला गया. उन्होंने कहा कि जुल्फीकार भुट्टो के वक्त हुक्मरान ने जब संविधान बनाया तो 1973 को ये शामिल किया कि हेड ऑफ द स्टेट और प्रधानमंत्री कोई नॉन-मुस्लिम नहीं हो सकता है. 1974 में जुल्फीकार अली भुट्टो ने एजुकेशन पॉलिसी अप्रूव करवाई उसमें ये शामिल करवाया कि इस्लामिक स्टडीज और पाकिस्तान स्टडीज को पढ़ाया जाना कंपलसरी है. उन्होंने आगे बताया कि जुलाई, 1977 में भुट्टों के निधन के बाद जियाउल हक ने अपने मर्जी का इस्लाम और अपनी मर्जी का पाकिस्तान का इतिहास पढ़ाया, जिस वजह से कई लोगों की विचारधारा वैसी बन गई.

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