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लेफ्ट लेना है या राइट... हवाई जहाज के पायलट को कैसे पता चलती है ये बात?

आज के वक्त अधिकांश लोग लंबी दूरी का सफर फ्लाइट से करते हैं.जिस कारण उनके कई दिनों का सफर चंद घंटों में पूरा हो जाता है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि फ्लाइट में पायलट को लेफ्ट या राइट का कैसे पता चलता है.

आज के वक्त अधिकांश लोग लंबी दूरी का सफर फ्लाइट से करते हैं.जिस कारण उनके कई दिनों का सफर चंद घंटों में पूरा हो जाता है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि फ्लाइट में पायलट को लेफ्ट या राइट का कैसे पता चलता है.

दुनियाभर में आज के वक्त कई एयरलाइंस बहुत सस्ते में टिकट उपलब्ध कराती हैं. इसलिए आम आदमी भी आसानी से अब फ्लाइट का सफर कर पा रहा है.

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क्या फ्लाइट में बैठने पर आपके दिमाग में भी ये सवाल आता है कि आखिर पायलट प्लेन कैसे उड़ाता है. क्योंकि सड़क पर तो रास्ता पता चल जाता है, लेकिन हवा फ्लाइट के पायलट को कैसे पता होता है कि किधर मुड़ना है.
क्या फ्लाइट में बैठने पर आपके दिमाग में भी ये सवाल आता है कि आखिर पायलट प्लेन कैसे उड़ाता है. क्योंकि सड़क पर तो रास्ता पता चल जाता है, लेकिन हवा फ्लाइट के पायलट को कैसे पता होता है कि किधर मुड़ना है.
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फ्लाइट में सफर के दौरान आपने देखा होगा कि पायलट केबिन में दो पायलट होते हैं. एक सीनियर और एक को पायलट होता है. विमान की सारी जिम्मेदारी पायलट के हाथों में होती है.
फ्लाइट में सफर के दौरान आपने देखा होगा कि पायलट केबिन में दो पायलट होते हैं. एक सीनियर और एक को पायलट होता है. विमान की सारी जिम्मेदारी पायलट के हाथों में होती है.
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अब सवाल ये है कि पायलट को रास्ता कैसे पता चलता है. बता दें कि पायलट को रेडियो और रेडार के उपयोग से रास्ते के बारे में जानकारी मिलती है. इसके अलावा एयर ट्रैफिक कंट्रोल होता है, जो पायलट को जानकारी देता है कि किस दिशा में उन्हें जाना है और कहां नहीं जाना है.
अब सवाल ये है कि पायलट को रास्ता कैसे पता चलता है. बता दें कि पायलट को रेडियो और रेडार के उपयोग से रास्ते के बारे में जानकारी मिलती है. इसके अलावा एयर ट्रैफिक कंट्रोल होता है, जो पायलट को जानकारी देता है कि किस दिशा में उन्हें जाना है और कहां नहीं जाना है.
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बता दें कि पायलट को रास्ता दिखाने के लिए HSI यानी होरिजेंटल सिचुएशन इंडिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है. इसे देखकर पायलट को बड़े ही आसानी से पता चल जाता है कि किस तरफ जाना है और किधन नहीं जाना है.
बता दें कि पायलट को रास्ता दिखाने के लिए HSI यानी होरिजेंटल सिचुएशन इंडिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है. इसे देखकर पायलट को बड़े ही आसानी से पता चल जाता है कि किस तरफ जाना है और किधन नहीं जाना है.
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इसके अलावा ये तकनीक पायलट के पास लगे स्क्रीन में एक रेखा की तरह रास्ता दिखाने का भी काम करते हैं. जिससे आसानी से पायलट समझ जाते हैं कि उन्हें किस दिशा में जाना है.
इसके अलावा ये तकनीक पायलट के पास लगे स्क्रीन में एक रेखा की तरह रास्ता दिखाने का भी काम करते हैं. जिससे आसानी से पायलट समझ जाते हैं कि उन्हें किस दिशा में जाना है.
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अब आप सोच रहे होंगे कि फ्लाइट कितनी ऊंचाई पर उड़ता है. बता दें कि फ्लाइट आसमान में 35 हजार फीट यानी 10,668 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाता है. हालांकि यात्रा और जगह के मुताबिक जहाज की ऊंचाई बदलती रहती है.
अब आप सोच रहे होंगे कि फ्लाइट कितनी ऊंचाई पर उड़ता है. बता दें कि फ्लाइट आसमान में 35 हजार फीट यानी 10,668 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाता है. हालांकि यात्रा और जगह के मुताबिक जहाज की ऊंचाई बदलती रहती है.

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