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DNA वाली बात बिहार से लेकर दक्षिण अफ्रीका में चल रहे ब्रिक्स सम्मेलन तक पहुंची, जानिए क्या बोले चीन के राष्ट्रपति

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स बिजनेस फोरम की बैठक में शामिल नहीं हुए. उन्होंने अपनी जगह चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंताओ को भेजा और उन्होंने उनका भाषण पढ़ा

अगर आप बॉयलॉजी की पढ़ाई की होगी तो डीएनए के बारे में जरूर पढ़ा होगा. डीएनए को डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड कहते हैं जो सभी जीवों में पाए जाने वाला वंशानुगत पदार्थ है. यह कोशिका के नाभिक में मौजूद रहता है और इसे परमाणु डीएनए भी कहा जाता है. लेकिन भारत की राजनीति में डीएनए चुनाव में हार-जीत की वजह भी बन चुका है. साल 2015 में हुआ बिहार विधानसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन अब ये शब्द दक्षिण अफ्रीका में चल रहे ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस्तेमाल किया है. 

सबसे पहले बात करते हैं बिहार के विधानसभा चुनाव 2015 की जब पीएम मोदी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, 'नीतीश कुमार के डीएनए में गड़बड़ी है. इसलिए ही जेडीयू अपने साथ काम करने वाले दोस्तों का ही साथ छोड़ देते हैं.'

उस वक्त पीएम के इस बयान पर नीतीश कुमार काफी भड़के थें. उन्होंने पीएम को एक खुली चिट्ठी लिखते हुए कहा था कि मैं बिहार का बेटा हूं और मेरा डीएनए बिहार का डीएनए है. उन्होंने कहा कि पीएम के डीएनए वाले बयान ने न सर्फ मुझे बल्कि बिहार के एक-एक लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.

नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाने के विरोध में धरना भी दिया था. उस धरने के दौरान उन्होंने कहा था कि पीएम जिस डीएनए में गड़बड़ी की बात कर रहें है उस डीएनए में परिश्रम और मेहनत है. ऐसे में पीएम ने मेरे डीएनए को गड़बड़ बताकर पूरे बिहार को गाली दी है. उस वक्त पीएम के इस बयान ने बिहार की सियासत में जैसे भूचाल सा ला दिया था. 

अब साल 2023 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित 15 वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीन ने भी कुछ ऐसा ही बयान दे दिया है. दरअसल चीन के राष्ट्रपति ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने ऊपर लगते अधिपत्यवाद के आरोपों पर जवाब दिया है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, 'आधिपत्य या दबदबा बनाना उनके डीएनए में नहीं है.' 

चीन के राष्ट्रपति ने क्या कहा

मंगलवार को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरुआत में हुए बिजनेस फोरम के बैठक में चीन के राष्ट्रपति ने खुद अपना भाषण नहीं दिया बल्कि उनकी तरफ से एक बयान जारी किया गया. जिसमें उन्होंने ब्रिक्स समूह के विस्तार की बात कहकर सफाई देते हुए कहा कि चीन को महाशक्तियों के बीच टकराव करवाने की कोई इच्छा नहीं है और न ही हम गुटबाजी करना चाहते हैं. 

शी जिनपिंग ने आगे कहा कि चीन आज इतिहास में सही जगह खड़ा है और मानता है कि आम हित के लिए एक उचित उद्देश्य को आगे बढ़ाया जाना चाहिए." शी ने कहा, ‘हमें वैश्विक शासन को और ज्यादा न्यायसंगत और समतापूर्ण बनाने के लिए ब्रिक्स परिवार में और भी देशों को शामिल कर समूह का विस्तार करने की प्रक्रिया तेज करने की जरूरत है.’ 

उन्होंने कहा, 'फिलहाल, दुनिया में, हमारे समय में और इतिहास में ऐसे बदलाव हो रहे हैं जैसे पहले कभी नहीं हुए, जो मानव समाज को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर ला रहे हैं."

बिजनेस फोरम के बैठक में नहीं पहुंचे चीन के राष्ट्रपति 

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स बिजनेस फोरम की बैठक में शामिल नहीं हुए. हालांकि उनके न शामिल होने का कारण अबतक स्पष्ट नहीं है. इस कार्यक्रम में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया था.

ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि चीन के राष्ट्रपति भी एक स्पीच देंगे. लेकिन उन्होंने अपनी जगह चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंताओ को भेजा और उन्होंने उनका भाषण पढ़ा. अपने भाषण में वेंताओ ने अमेरिका की जमकर आलोचना की.

शी के भाषण में कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय मामलों और वित्तीय बाजारों में अमेरिका के प्रभुत्व को जो भी देश चुनौती दे रहा है, उससे वह लड़ने को उतारू है. वांग ने शी का स्पीच पढ़ते हुए कहा कि सभी देशों को तरक्की का अधिकार है और लोगों के पास इतनी आजादी है कि खुशहाल जीवन जीने की अपनी कोशिशें जारी रखें.

ब्रिक्स के विस्तार का भारत ने किया समर्थन 

इस सम्मेलन में भारतीय पीएम ने ये साफ कर दिया कि उन्हें ब्रिक्स के विस्तार से कोई दिक्कत नहीं है. इस पर आम सहमति से आगे बढ़ने का हम स्वागत करते हैं. बुधवार को दिए अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स के विस्तार का भारत पूरी तरह समर्थन करता है और आम सहमति से इस दिशा में आगे बढ़ने का स्वागत करता है. उन्होंने अंतरिक्ष अन्वेषण सहित कई क्षेत्रों में समूह के सदस्य देशों के बीच सहयोग का दायरा और बढ़ाने के लिए पांच सुझाव भी दिए. 

विस्तार पर भारत पर क्यों टिकी सबकी निगाहें?

मंगलवार से शुरू हुई ब्रिक्स सम्मेलन में सबसे अहम रोल ब्रिक्स के विस्तार का ही था. यह एक ऐसा मामला माना जा रहा है जिस पर सभी देशों की सहमति होगी या नहीं इसपर माथापच्ची होने की आशंका है. हालांकि भारत ने कई बार ये साफ कहा है कि उन्हें ब्रिक्स के विस्तार से कोई कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन चीन अब उन देशों को शामिल करने पर पूरा जोर लगा सकता है जो या तो उसके पाले के हैं या फिर उसके पाले में आ सकते हैं. 

यही कारण है कि ऐसी अटकले लगाई जा रही थी कि भारत इस फैसले पर एतराज जता सकता है. हालांकि भारत ने विस्तार का समर्थन कर के दुनिया की निगाहों में एक बार फिर अपनी सकारात्मक छवि बना ली है. 

23 देश दे चुके हैं शामिल होने का औपचारिक आवेदन 

साउथ अफ्रीका के राजदूत अनिल सुकलाल बुधवार को बताया कि ब्रिक्स में शामिल होने के लिए अब तक 23 देशों ने औपचारिक आवेदन भी आ गया है.'' दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन कर रहे हैं. उनका मानना है कि ब्रिक्स के विस्तार के ग्लोबल ऑर्डर संतुलित रहेगा.

हालांकि इसी देश के ब्रिक्स सम्मेलन से पहले ये साफ कर दिया था कि उनका देश किसी भी गुट में शामिल नहीं होना चाहता है और गुटनिरपेक्षता की नीति के साथ है. ये भारत की विदेश नीति की पंक्ति जरूर है लेकिन दक्षिण अफ़्रीका ने भी इसी नीति के साथ अपनी प्रतिबद्धता जताई है.

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा ने कहा था, 'हमारा देश गुटनिरपेक्षता की नीति को लेकर प्रतिबद्ध है. हमने ख़ुद को किसी भी वैश्विक शक्ति या कुछ देशों के प्रभावशाली गुटों का हिस्सा बनाने वाले दबाव में आने से बचाया है. शीतयुद्ध के वक़्त बहुत से अफ़्रीकी देशों की स्थिरता और संप्रभुता कमजोर हुई क्योंकि इन्होंने ख़ुद को किसी एक बड़ी शक्ति के साथ जोड़ा.''

राष्ट्रपति रामाफोसा ने कहा था, "इस अनुभव ने हमें ये सिखाया कि कोई देश हम पर हावी हो, इसकी बजाय हम राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से साझेदारी करें. हमारे कुछ आलोचक चाहते हैं कि हम उनके राजनीति और वैचारिक पसंदों का खुला समर्थन करें लेकिन हम इन वैश्विक शक्तियों के बीच प्रतियोगिता में नहीं फंसेंगे. हमारा देश वैश्विक शांति और विकास के लिए सारे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहता है. दक्षिण अफ़्रीका 120 देशों के फ़ोरम नॉन अलाइंड मूवमेंट (नाम) का हिस्सा है. ये देश औपचारिक तौर पर किसी महाशक्ति या गुट का हिस्सा नहीं हैं.''

क्या है ब्रिक्स 

BRICS यानी B से ब्राजील, R से रूस, I से भारत, C से चीन और S से दक्षिण अफ्रीका. ये दुनिया के इन पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक ग्रुप है. BRICS इस नाम को ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओनिल ने दिया था. इस शब्द की खोज उन्होंने गोल्डमैन सैक्स में काम करने के दौरान की थी. पहले इस ग्रुप का नाम BRIC हुआ करता था. साल 2010 में साउथ अफ्रीका के शामिल होने के बाद इसे ब्रिक्स कहा जाने लगा.

इस ग्रुप की स्थापना साल 2006 में हुई थी लेकिन इसका पहला सम्मेलन साल 2009 में हुआ. फिलहाल रूस और को छोड़कर इस ग्रुप में शामिल सभी देश  विकासशील देश हैं, जिसकी इकोनॉमी काफी रफ्तार से बढ़ रही है. इस पांचों देशों का वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव हैं. BRICS में शामिल पांचों देश दुनिया की लगभग 42 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

हर साल होती है बैठक 

इस ग्रुप में शामिल सभी देशों का साल में एक बार सम्मेलन होता है. जहां इसके सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के प्रमुख एक साथ मिलते हैं. हर साल जो राष्ट्र मीटिंग की मेजबानी कर रहा होता है, वो अगले एक साल तक इस ग्रुप की अध्यक्षता करता है.

ब्रिक्स का उद्देश्य क्या है

इस ग्रुप का उद्देश्य इन पांच विकासशील देशों में शिक्षा में सुधार करना, विकसित और विकासशील देशों के बीच में सामंजस्य बनाए रखें, आपस में राजनीतिक व्यवहार बना के रखना, जब कभी किसी देश को आर्थिक मदद की जरूरत हो तब आर्थिक मदद और सुरक्षा का व्यवहार बना के रखना, इन देशों के अंदर चल रहे किसी भी विवादों का निपटारा करना और एक दूसरे देश की सांस्कृतिक रक्षा करना है. 

ब्रिक्स के इस ग्रुप में विस्तार के बाद कौन कौन से देश शामिल होना चाहते हैं 

अब तक  40 से ज्यादा देशों ने इस मंच में खुद को शामिल करने की इच्छा जताई है. इन देशों में संयुक्त अरब अमीरात, , कोमोरोस, गैबॉन, अर्जेंटीना, ईरान, बोलीविया, इंडोनेशिया, मिस्र, इथियोपिया, क्यूबा, सऊदी अरब, अल्जीरिया,  कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और कजाकिस्तान शामिल है. 

ब्रिक्स के साथ जुड़ने की इच्छा रखने वाले सभी देश इस संगठन को पारंपरिक पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व वाले वैश्विक निकायों के विकल्प के रूप में देखते हैं. इन देशों को उम्मीद है कि ब्रिक्स से जुड़ने पर उन्हें ना केवल फायदा होगा बल्कि अमीर देशों के वर्चस्व से लड़ने में भी मदद मिलेगी.

 

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