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US Elections: राष्ट्रपति चुनाव में नतीजे स्पष्ट नहीं निकले तो क्या होगी संवैधानिक स्थिति, जानें

ट्रंप और बाइडन में मुकाबला बहुत कांटे का हुआ तो नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा? क्या ट्रंप आसानी से कुर्सी छोड़ेंगे या फिर नतीजों के आगे जो बाइडन बिना लड़े हथियार डालेंगे? क्या होगा यदि दोनों खेमे जिद ठानते हैं तो क्या ऐसे संवैधानिक संकट के लिए अमेरिका तैयार है?

वाशिंगटनः अमेरिका में जारी चुनावी घमासान में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन के बीच कड़ा मुकाबला है. मगर इस टक्कर के बीच कुछ सवाल लगातार गहरा रहे हैं और वो यह कि अगर मुकाबला बहुत कांटे का हुआ तो नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा? क्या ट्रंप आसानी से कुर्सी छोड़ेंगे या फिर नतीजों के आगे जो बाइडन बिना लड़े हथियार डालेंगे? क्या होगा यदि दोनों खेमे जिद ठानते हैं तो क्या ऐसे संवैधानिक संकट के लिए अमेरिका तैयार है?

पहली बार बड़ी संख्या में पोस्टल मतों इस्तेमाल दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की हवा में तैर रहे इन सवालों को कोरा कयास और बेबुनियाद नहीं कहा जा सकता. कोरोना महामारी के बीच हो रहे मौजूदा चुनावों में आम तौर पर होने वाली कई सामान्य व्यवस्थाएं गड़बड़ाई हुई हैं. अमेरिकी सवा दो सौ साल के चुनावी इतिहास में पहली बार बहुत बड़ी संख्या में लोग मेल-इन-बैलेट यानी पोस्टल मतों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

अमेरिका के सभी राज्यों में इन मेल-इन-बैलेट की जांच परख के नियम अलग हैं. वहीं उनकी गिनती के लिए तय समय-सीमाएं भी अलग है. मसलन, ऐसे में यह लगभग तय माना जा रहा है कि इस बार 3 नवंबर को होने वाली मतदान के बाद अगले 12 घंटे में नतीजे की तस्वीर साफ न हो.

पेन्सिल्वैनिया व मिशिगन जैसे बैटलग्राउंड सूबों समेत अमेरिका के 13 राज्यों और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में डाक मतों की गिनती 3 नवंबर की चुनाव तिथि पर ही शुरु हो सकती है. वहीं तीन अन्य राज्यों में मतों की गिनती चुनाव तिथि खत्म होने के बाद ही हो सकती है.

राज्यों में डाक-मतों के अलग-अलग नियम इस बात की आशंका लगातार जताई जा रही है कि पहली बार डाक-मतों का इस्तेमाल कर रहे लोगों से दस्तखत मिलान में गलती समेत कई गड़बड़ियां हो सकती हैं. निर्धारित प्रावधानों के मुताबिक दस्तखत में किसी चूक या मतपत्र को भरते समय हुई गलती के कारण मत निरस्त भी हो सकता है. जाहिर है यह विवाद की वजह है. अलग-अलग राज्यों में डाक मतों को हासिल करने और मत देने और उनकी गिनती के भिन्न प्रावाधान हैं जो स्थिति को अधिक पेचीदा बनाते हैं.

79 दिन का इंटरेग्नम पीरियड ऐसे में अमेरिकी चुनावों के लिहाज से मतदान तिथि यानी 3 नवंबर के बाद अगले राष्ट्रपति के शपथ लेने तक 79 दिनों की अंतर-अवधि या इंटरेग्नम पीरियड काफी महत्वपूर्ण होगा. हालांकि इस मुद्दे पर आगे बात करें इससे पहले यह समझना जरूरी होगा कि आखिर अमेरिकी चुनाव प्रणाली में 79 दिन के इस अंतराल अवधि की क्या अहमियत है और कैसे यह समय पेचीदा चुनाव नतीजों के वक्त और भी अहम हो जाता है.

अमेरिकी संविधान के मुताबिक “दिसंबर माह के दूसरे बुधवार के बाद आने वाले पहले सोमवार”, यानी इस बार 14 दिसंबर को, सभी 50 राज्यों और कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट के इलेक्टर राष्ट्रपति पद उम्मीदवार के लिए अपना मत डालेंगे.इसके बाद “3 जनवरी” को चुनावों के बाद अमेरिकी कांग्रेस की बैठक आयोजित की जाएगी.

वहीं “जनवरी माह की 6ठी तारीख” को अमेरिकी सीनेट और कांग्रेस की संयुक्त बैठक में इलेक्टोरल वोट की अंतिम गिनती की जानी है. इसके बाद ही 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति के इनॉगरेशन या शपथ-ग्रहण का प्रावधान है. तारीखों के निशान आधुनिक अमेरिकी इतिहास में लगातार चले आए हैं चाहे नतीजा जो भी रहा हो. मगर अबकी बार इस कैलेंडर के भी गड़बड़ाने की आशंका जताई जा रही है.

शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की परंपरा जानकारों के मुताबिक अमेरिकी संविधान शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को सुनिश्चित नहीं करता बल्कि उसे अंतर्निहित मानता है. यानी स्थापित परंपरा के मुताबिक जनमत हासिल करने में नाकाम रहा उम्मीदवार सबसे पहले सामने आकर अपनी हार स्वीकार करता है, अपने समर्थकों और मतदाताओं को धन्यवाद देता है. उसकी यह कंसेशन स्पीच एक तरीके से नए नेता के जीत का घोष माना जाता है.

हालांकि तस्वीर कैसी हो सकती है इसकी बानगी 2000 में अल गोर और जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच हुए मुकाबले के पन्ने पलटकर देखा जा सकता है. चुनाव नतीजों की रात पहले अल गोर ने अपनी कंसेशन स्पीच दी और फिर उसे वापस ले लिया. बाद में फ्लोरिडा में मतों की पुनः गिनती की लड़ाई शुरु हुई जो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही बंद हुई. क्योंकि 12 दिसंबर 2000 को आए अदालती फैसले के बाद 13 दिसंबर को अल गोर ने अपनी कंसेशन स्पीच दी.

ट्रंप को लेकर असमंजस की स्थिति जानकारों में इस बात को लेकर मतभेद और ऊहापोह है कि अगर चुनावी नतीजा डोनाल्ड ट्रंप के हक में नहीं आता और वो पद छोड़ने से इनकार कर देते हैं तथा जो बाइडन इलेक्टोरल कॉलेज की गिनती पर आगे बढ़ना का जोर बनाते हैं तो क्या परिणाम होगा? इसमें कई तरह की तस्वीरें उभरती हैं.

हालांकि सभी संभावित तस्वीरों में कानूनी खींचतान, बयानों की क़ड़वाहट और अपने-अपने समर्थकों की ताकत के साथ शक्ति प्रदर्शन जैसी संभावनाएं बनती हैं. वहीं, तस्वीर इस बात से अधिक गहराती है कि कोई भी एक संस्था या शक्ति नहीं है जिसके नतीजे को चुनावी नतीजों पर अंतिम कहा जा सके.

संभावित टकराव की आशंकाएं इस बात को लेकर भी गहराती हैं क्योंकि 24 अगस्त को रिपब्लिकन नेशनल कंवेशन से लेकर अब तक ट्रंप कई बार संकेत दे चुके हैं कि नतीजे मन-माफिक नहीं आए तो वो आसानी से हार नहीं मानेंगे. इस बारे में मीडिया की तरफ से पूछे गए सवालों पर भी हर बार ट्रंप ने यही कहा कि इस बारे में आगे देखेंगे.

2016 जैसी भी हो सकती है नतीजों की तस्वीर अमेरिका के मौजूदा चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में जो बाइडन कुछ अंतर से आगे चल रहे हैं. लेकिन, नतीजों की तस्वीर 2016 जैसी भी हो सकती है जहां सर्वेक्षणों में तो हिलेरी क्लिंटन आगे चल रही थीं,उन्हें पॉपुलर वोट भी अधिक मिले थे. लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में बाजी ट्रंप के हाथ लगी. राष्ट्रपति चुनाव 2020 की रेस में बूथ पर जाकर और मेल के जरिए मतदान की पेचीदगियां, मतगणना में देरी के उलझाव और कानूनी कठिनाइयायों समेत कई पहलू ऐसे हैं जो इस बार के चुनाव को अधिक टेढ़ा बनाते हैं.

इस बीच बीते कुछ सालों में चुनाव नतीजों के दौरान उभरे ब्लू-शिफ्ट यानी मतगणना में नीले रंग वाले डेमोक्रेट इलाकों के बढ़ने की परंपरा के कारण भी कानूनी पेचीदगियों में इजाफा हो सकता है.

ट्रंप ने जुलाई में ट्वीट में कर कहा था कि अगर चुनाव की रात तो नतीजा आना चाहिए, इसमें दिन, महीने और साल का समय न लगे. राष्ट्रपति ट्रंप जहां मेल-इन-बैलेट व्यवस्था पर उंगली उठाते रहे हैं वहीं अधिकतर रिपब्लिकन पार्टी समर्थक चुनाव बूथ पर व्यक्तिगत मतदान के पक्षधर हैं.

अमेरिका के राजनीतिक पंडितों के अनुसार, राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के पास ऐसी कई शक्तियां मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल कर वो चाहें तो संवैधानिक संकट खड़ा कर सकते हैं. साथ ही रिपब्लिकन और डेमोक्रेट खेमों में बंटे सूबे और उनसे आने वाले इलेक्टर्स की संख्या की अंतिम तस्वीर बहुत से समीकरणों को बना-बिगाड़ सकती है.

बैटल ग्राउंड स्टेट्स कोलोराडो, फ्लोरिडा, आयोवा, मिशिगन, मिनिसोटा, नेवादा, न्यू हैंपशायर, नॉर्थ कैरोलाइना, ओहायो, पैनसिल्वैनिया, वर्जीनिया और विस्कॉन्सन को बैटल ग्राउंड स्टेट कहा जाता है जिनके तनीजों का वजन राष्ट्रपति चुनाव के पलड़े की दिशा बदल सकता है. इसमें से छह राज्यों में सत्ता रिपब्लिकन पार्टी के पास हैं. मिशिगन, नॉर्थ कैरोलाइना, पैनसिल्वैनिया में तो गवर्नर भी रिपब्लिकन हैं. ऐसे में इलेक्टर्स की सूची भेजने का काम इनके ही जिम्मे होगा.

उप राष्ट्रपति और कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका हो सकती है अहम तस्वीर उलझी को सीनेट के पीठासीन अधिकारि के तौर पर उप राष्ट्रपति माइक पैंस और कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पलोसी की भूमिका भी अहम होगी. अगर 20 जनवरी तक नए राष्ट्रपति को लेकर फैसला नहीं हो पाता तो तकनीकी समीकरणों के हिसाब से कांग्रेस की अध्यक्ष के तौर पर नैंसी पलोसी के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने की भी एक बेहद धुंधली संभावना बन सकती है.

कोर्ट में 6 जज की नियुक्ति रिपब्लिकन पार्टी के सरकार के समय की किसी संभावित विवाद की सूरत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी अहम होगी. ऐसे में इस बात को ध्यान में रखना होगा कि बीते दिनों डेमोक्रेट खेमे के विरोध और जो बाइडन-कमला हैरिस की आलोचनाओं के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में अपने शासनकाल की तीसरी जज की नियुक्त करवाने में कामयाब रहे हैं.

ताजा नियुक्त के बाद अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश समेत 6 जज ऐसे होंगे जिनकी नियुक्ति रिपब्लिकन पार्टी की सरकारों के राज में हुई है. ध्यान रहे कि अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति जीवनकाल के लिए होती है, अगर वो इस्तीफा न दे या उसपर महाभियोग न सिद्ध हो.

बहरहाल, अमेरिका के लिए आदर्श स्थिति तो यही होगी कि चुनाव नतीजों में किसी भी एक उम्मीदवार को मिले बहुमत इतना स्पष्ट हो जिसके सामने प्रतिद्वंद्वी को अपने एड़ियां धंसाने का कोई मौका न मिले.

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