मेथी उगाने से लेकर स्क्रीनटाइम टेस्ट तक, स्पेस में शुभांशु शुक्ला ने किए ऐसे प्रयोग, जो भारत के गगनयान मिशन में आएंगे काम
Shubhanshu Shukla: अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन शुभांशु शुक्ला और उनके साथियों ने 60 से ज्यादा वैज्ञानिक प्रयोग किए. उन्होंने इसरो के लिए सात प्रयोग किए, जो भविष्य में भारत के लिए उपयोगी साबित होगा.

शुभांशु शुक्ला और ‘एक्सिओम-4 मिशन’ के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री मंगलवार (15 जुलाई 2025) को धरती पर लौटने के बाद ड्रैगन ग्रेस अंतरिक्ष यान से मुस्कुराते हुए बाहर निकले. अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में 18 दिन गुजारने के दौरान शुभांशु शुक्ला और उनके साथियों ने 60 से ज्यादा वैज्ञानिक प्रयोग किए, जो आने वाले समय में स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कारगर साबित हो सकते हैं. इसमें से सात प्रयोग खास तौर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने डिजाइन किए थे.
शुभांशु शुक्ला ने कृषि, मेडिसिन और अंतरिक्ष तकनीक को लेकर कई प्रयोग किए. अंतरिक्ष में पौधे लगाने और यहां मानव शरीर में कौन से बदलाव आते हैं इस पर स्टडी किया. उन्होंने मांसपेशियों के नुकसान को लेकर स्टडी किया, जो अंतरिक्ष की माइक्रोग्रैविटी में होता है.
18 दिन में 7 प्रयोग कर लौटे शुभांशु शुक्ला
जीवित रहने की क्षमता को लेकर प्रयोग: शुभांशु टार्डिग्रेड्सग को लेकर अध्ययन किया. टार्डिग्रेड्स सूक्ष्म जीव हैं जो कठोर परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं. यह आने वाले समय में दूसरे ग्रहों के मिशन के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है.
मेथी के बीजों का अंकुरण: शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में मेथी और मूंग के बीज को उगाकर पूरी दुनिया का आश्चर्यचकित कर दिया. यह प्रयोग आने वाले समय में स्पेस के क्रू मेंबर को पोषण देने के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. इस बीज को कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय धारवाड़ और आईआईटी (IIT) धारवाड़ ने विकसित किया था.
मांसपेशियों पर असर: शुभांशु शुक्ला ने स्टडी किया कि आखिर अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण की वजह से मानव के शरीर की मांसपेशियों के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही हड्डियों को कमजोर होने से कैसे बचाया जा सकता है इस पर भी अध्ययन किया. यह धरती पर मांसपेशियों से संबंधित समस्याओं के लिए उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है.
स्क्रीन टाइम: उन्होंने शून्य गुरुत्वाकर्षण में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए इसरो के प्रमुख अध्ययन 'वॉयेजर डिस्प्ले' को अंजाम दिया. इससे अंतरिक्ष यान पर कंप्यूटर और अन्य उपकरणों को डिजाइन करने में मदद मिलेगी.
ऑक्सीजन उत्पादन: शुभांशु शुक्ला ने सायनोबैक्टीरिया को लेकर प्रयोग किया जो ऑक्सीजन बना सकता है. स्पेस में कार्बन और नाइट्रोजन को रिसाइकल करने और ऑक्सीजन बनाने को लेकर यह प्रयोग बेहद अहम है.
ब्रेन्स टु कंप्यूटर: शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में यह पता लगाया कि क्या सीधे अपने दिमाग से कंप्यूटर से संपर्क साधा जा सकता है. उन्होंने स्टडी किया कि डीप फोकस की स्थिति में यह कहां तक संभव हो सकता है. ऐसा पहली बार है जब किसी इंसान ने इस तरह का प्रयोग किया है.
वॉटर बबल्स: उन्होंने पानी के बुलबुले का प्रयोग कर बताया कि कैसे जीरो ग्रेविटी में आने के बाद फिजिक्स के सिद्धांत भी बदल जाते हैं. ऐसा करने के बाद उन्होंने कहा कि मैं यहां वॉटर बेंडर बन गया हूं.
ड्रैगन अंतरिक्ष यान अमेरिका के दक्षिणी कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में समुद्र में भारतीय समयानुसार दोपहर 3:01 बजे उतरा, अंतरिक्ष यात्रियों ने 20 दिन की अपनी अंतरिक्ष यात्रा में से 18 दिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर बिताए, अंतरिक्ष यान के नीचे उतरने के तुरंत बाद इसे ‘रिकवरी शिप शैनन’ तक ले जाया गया, जहां एक्सिओम-4 के चालक दल के सदस्य एक छोटी सी स्लाइड पर बाहर आए और ‘ग्राउंड स्टाफ’ कर्मियों ने उन्हें खड़े होने में मदद की.
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Source: IOCL





















