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America-China Tussle: चीन की टेंशन बढ़ा रहा अमेरिका का T2 प्लान, नए साल में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मिलेंगी कई चुनौतियां

America T2 Plan: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ( Chinese President Xi Jinping) के लिए नए साल की करवट टेंशन बढ़ाने वाली हो रही है.

America-China Tussle: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) के लिए नए साल की करवट टेंशन बढ़ाने वाली हो रही है. टेंशन की वजह एक बार फिर बढ़ते कोरोना (Corona) के मामले या 2022 में होने वाले पार्टी कांग्रेस के चुनाव ही नहीं, बल्कि अमेरिका का टी2 प्लान (T2 Plan) भी है. टी2 यानी तिब्बत और ताइवान (Tibet and Taiwan) का मोर्चा जिस पर अमेरिका (America) ने अचानक चीन के खिलाफ आंच बढ़ा दी है. जाहिर है कि महाशक्ति अमेरिका इन दोनों मोर्चें पर दबाव बढ़ाकर चीनी ड्रैगन की नकेल कसने की तैयारी कर रहा है. 

दरअसल, अमेरिका ने अपने इसी टी2 प्लान (T2 Plan)  के तहत तिब्बत के लिए उजरा जेया (Ujra Jaya) को नया वार्ताकार नियुक्त किया है. उजरा को जिम्मा सौंपा गया है कि वो दलाई लामा (Dalai Lama) या उनके प्रितिनिधियों और चीन सरकार के बीच वार्ता करवाएं, ताकि तिब्बत की धार्मिक और जातीय पहचान व अधिकारों को बचाने वाला समाधान निकाला जा सके.

2010 के बाद औपचारिक वार्ता नहीं हुई

ध्यान रहे कि दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीन सरकार के बीच 2010 के बाद कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है. यानी 2013 से चीन की सत्ता में मौजूद वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में दोनों पक्ष बीतचीत की टेबल पर नहीं मिले हैं. 

उजरा जेया भारतीय मूल की अमेरिकी राजनयिक 

जाहिर है कि अमेरिका का यह फैसला चीन को तिलमिलाने वाला है. चीन के चिढ़ की वजह इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि उजरा जेया (Ujra Jaya) भारतीय मूल की अमेरिकी राजनयिक हैं. उजरा के दादा भारत में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहें. इतना ही नहीं इस नियुक्ति के साथ ही भारत की भूमिका भी शामिल हो जाती है, क्योंकि दलाई लामा और तिब्बत की निर्वासित प्रशासन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में ही मौजूद हैं.  

चीन ने जेया की नियुक्ति का विरोध किया

बहरहाल, चीन ने जाहिर तौर पर जेया की नियुक्ति का विरोध किया है. चीनी विदेश मंत्रालय प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि तिब्बत चीन के एक अंदरूनी मामला है. इस पर किसी बाहरी वार्ताकार या दखल की गुंजाइश नहीं है. चीन इस नियुक्ति को स्वीकार नहीं करता है. 

अमेरिकी रणनीति भारत के लिहाज से भी अहम

अमेरिका का यह पैंतरा एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा नजर आता है. साथ ही यह अमेरिकी रणनीति भारत के लिहाज से भी अहम हो जाती है, क्योंकि तिब्बती धर्मगुरु और 14वें दलाई लामा बीते 60 से अधिक सालों से भारत में ही मौजूद हैं. वहीं, बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थी भी दशकों से भारत में बसे हैं. ऐसे में यदि तिब्बत के सवाल पर सियासत गरमाती है, तो इस पर भारत की राय खासी अहम होगी. 

चीनी मनमानी से दलाई लामा की नियुक्ति स्वीकार नहीं 

इतना ही नहीं जीवन के 86 बसंत देख चुके दलाई लामा के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर धर्मशाला और बीजिंग के बीच मौजूद मतभेदों के मद्देनजर भी अमेरिका का उजरा जेया वाला दांव अहम होगा. चीन जहां अपनी मर्जी और सुविधा से नए दलाई लामा की नियुक्ति की बिसात बिछाने में जुटा है. वहीं, धर्मशाला में मौजूदा दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती प्रशासन यह साफ कर चुका है कि एक तरफा चीनी मनमानी से दलाई लामा की नियुक्ति को स्वीकार नहीं किया जाएगा. यानी साफ है कि यह टकराव का मोर्चा पहले से खड़ा है, जिसके सहारे अमेरिका भी चीन पर दबाव के गोले दागने का मौका नहीं चूकना चाहता. 

अमेरिकी प्लान का दूसरा अहम मोर्चा ताइवान

वहीं, चीन की नाकेबंदी में अमेरिकी प्लान का दूसरा अहम मोर्चा ताइवान का है. अमेरिका यह पहले ही साफ कर चुका है कि वो ताइवान के खिलाफ चीन की किसी भी दादागिरी का जवाब देगा. इतना ही नहीं जापान, दक्षिण कोरिया जैसे अहम पूर्वी एशियाई देश भी ताइवान के हितों की हिफाजत की तरफदारी जता चुके हैं. वहीं, चीन अपनी वन-चाइना पॉलिसी की दुहाई देते हुए ताइवान में किसी भी विदेशी दखल का विरोध करता है. वहीं, गाहे-बगाहे चीन के लड़ाकू विमान ताइवान के आसमान में उड़ान भरते नजर आते हैं. 

बीजिंग पर निशाना साध रहा अमेरिका

हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी और रणनीतिक सक्रियता बढ़ा चुका अमेरिका ताइवान के बहाने चीन पर तीर तानने का अवसर नहीं गंवाना चाहता. यही वजह है कि अमेरिका इन दिनों ताइवान के हितों की हिफाजत का हवाला देते हुए बीजिंग पर निशाना साध रहा है. ऐसे में कई जानकार मानते हैं कि ताइवान, अमेरिका और चीन के बीच टकराव का बड़ा मोर्चा बन सकता है. यदि ऐसा होता है कि क्वाड की चौकड़ी में अमेरिका का अहम साझेदार और हिंद महासागर में बड़ी ताकत रखने वाले भारत की भूमिका को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं होगा. 

ताइवान-भारत में संवाद का सिलसिला बढ़ा

हालांकि, भारत ताइवान के साथ कारोबारी संबंधों को अधिक तवज्जो देता है, लेकिन बीते कुछ समय में ताइवान और भारत के बीच राजनीतिक संवाद का सिलसिला भी बढ़ा है. यही वजह है कि मई 2020 में बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान वर्चुअल तरीके से राष्ट्रपति साई इन्ग वेन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थी. मीनाक्षी लेखी इन दिनों भारत की विदेश राज्य मंत्री हैं. 

2022 में चुनावी लकीर को बड़ा करने की कोशिश

हिंद-प्रशांत के इलाके से लेकर हिमालय तक टी2 के दोनों मोर्चे ऐसे वक्त गर्मा रहे हैं, जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2022 में अपनी चुनावी लकीर को बड़ा करने की कोशिश में हैं. साल 2018 में राष्ट्रपति के कार्यकाल की समय सीमा का प्रावधान खत्म किए जाने के बाद उनका प्रयास 20वीं पार्टी कांग्रेस बैठक में अगला कार्यकाल हासिल करने का होगा. मगर, तिब्बत से लेकर ताइवान के मोर्चे पर टकराव और हांगकांग से लेकर आर्थिक स्तर पर मौजूद चुनौतियां राष्ट्रपति शी के जीवन प्रयत्न राष्ट्रपति के सपने को तोड़ भी सकते हैं.

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