लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान: एक लड़की का एक साधारण सा विचार एक पूरे गांव को हमेशा के लिए बदल कर रख देता है

एक लड़की का एक साधारण सा विचार एक पूरे गांव को हमेशा के लिए बदल कर रख देता है
लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान
ट्विंकल खन्ना
लक्ष्मी की मां ने चाय बनाने के लिए दूध, पानी और पत्ती डालकर बर्तन में चढ़ा दिया था और अब वो अदरक चाय में डालने के लिए कूट रही थी. पिता की आंखों में गहरी निराशा थी और वो चुपचाप बिना उससे नज़रें मिलाए भगवान की मूर्तियों के आगे अगरबत्ती जलाकर पूजा कर रहे थे. जब वो पूजा कर चुके तो लक्ष्मी बोली, बाबूजी क्या आप मेरे साथ चलेंगे. कुछ पूछिएगा मत, बस मेरे साथ आइए.
बिजेन्द्र प्रसाद अपनी बेटी से साथ गांव में निकल पड़े. वो थोड़े चौकन्ने से थे क्योंकि वो जानते थे कि लोगों की नज़र उनकी तरक्की पर थी. ये वो गांव था जहां पर लोग ज़रा सुस्त ज़िंदगी जीते थे, किसी को कोई जल्दी नहीं थी और वास्तव में आसपास कोई जाने की जगह भी नहीं थी.
जब वो गांव के बीचों-बीच पहुंच चुके तो लक्ष्मी ने यहां बने शंकर सिंह के घर पर दस्तक दी. उन्होंने दरवाज़ा खोला और लक्ष्मी उसने कुछ बात करने लगी, शुरुआत में वो थोड़ा झिझक रही थी लेकिन बाद में वो खुलकर बोलने लगी. जो कुछ भी उसके ज़ेहन में घूम रहा था और शायद बरसों से उसके दिल के किसी कोने में जो ख्याल दबे हुए थे वो अब खुलकर सामने आ रहे थे. उसे जैसे समझ में आ रहा था वो वैसे ही बोले जा रही थी, बोलते-बोलते उसकी सांस फूलने लगी. उसने ज़रा ठहरकर लंबी सांस ली, खुद को संयत किया और फिर अपने जवाब का इंतज़ार करने लगी.
तिरासी साल के शंकर सिंह गांव के सबसे बुज़ुर्ग आदमी थे. गांव में उनका काफी सम्मान भी था क्योंकि उन्होंने गांव में एक छोटा स्कूल भी शुरू किया था और बरसों से गांव के बच्चों और आम लोगों को सामान्य गणित और पढ़ाई-लिखाई सिखाया करते थे.
उन्होंने बड़े गौर से इस लंबी और बेढंगी-सी लड़की को देखा, जिसने हरी साड़ी और अपनी नाप से बड़ी ढीली-ढाली काली चोली पहनी हुई थी, देखने में साफ़ पता चलता था कि ये सब उसकी मां का था. लेकिन इस छोटी सी लड़की के दिमाग में वो बात थी जो पिछले कई सौ सालों में इस गांव के किसी भी इंसान के दिमाग में नहीं आई थी. शंकर सिंह ने लड़की से कुछ वक्त मांगा ताकि वो उसके सुझाव पर थोड़ा विचार कर सकें और खासतौर पर इस छोटे-से गांव के उन लोगों से बात कर सकें जिनकी राय इस मामले में काफी अहम थी.
जरदालू के पेड़ फलों से लदे हुए थे, हर टहनी में कम से कम छह सुनहरे आम लगे थे जिनके वज़न से वो झुकी जाती थी. लक्ष्मी ने इस दिन के लिए पांच महीनों तक इंतज़ार किया था. इन पांच महीनों में शंकर सिंह इस गांव में लोगों के घर-घर तक गए और उन्हें इस चमत्कारी आइडिए पर काम करने के लिए राज़ी किया. वो पेड़ के नीचे खड़ी हो गई और उसके परिवार ने दो तश्तरियों को लेकर बनाए गए मंजीरे को बजाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे पूरा गांव पेड़ के पास इकट्ठा हो गया.
लक्ष्मी ने बहन सुकृति से कहा कि वो गोद से अपनी बेटी राधा को मां की गोद में दे दे. नन्हीं राधा ने सिर पर एक सुंदर सी टोपी पहनी थी और बुरी नज़र से बचाने के लिए उसकी मां ने उसके सिर पर एक काला टीका लगा दिया था. इसके बाद दोनों बहनों ने एक लंबी डंडी के सहारे पेड़ से पके हुए आम तोड़े और चाकू के सहारे फलों को काट दिया.
उन्होंने फल काट कर उसके बीज निकाले और फिर उन बीजों को एक कतार में बोना शुरू कर दिया. इसके बाद लक्ष्मी गर्व से तनकर खड़ी हो गई, उसकी आंखों में एक नई चमक थी, उसने बुलंद आवाज़ में कहना शुरू किया, ये दस पेड़ राधा के पेड़ हैं. ये पेड़ उसके साथ ही बड़े होंगे, उसके साथ ही हर साल लंबे और मज़बूत होते जाएंगे. जब वो आठ साल की हो जाएगी तो फिर इन पेड़ों पर फल आएंगे. हम इन फलों को मुंगेर में बेचेंगे और वो पैसा राधा का होगा. इसके बाद हर साल इन पेड़ों से फल आएंगे और उसका पैसा राधा के नाम इकट्ठा होता रहेगा जो उसकी पढ़ाई और उसकी शादी में काम आएगा.
जब भी एक बच्ची पैदा होगी हम उसके इस गांव की धरती पर पैदा होने का जश्न मनाएंगे और उसके लिए दस जरदालू के पेड़ लगाएंगे और वो पेड़ हमेशा के लिए उसी के होंगे. ये दस पेड़ दस उंगलियों की तरह होंगे जिनकी मुट्ठी में गांव की हम औरतों की अपनी किस्मत अपने हाथों में बंद होगी.
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(ट्विंकल खन्ना की कहानी का अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)
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