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कौन हैं विंग कमांडर निकिता पांडेय, जिन्हें नौकरी से हटाने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक

Wing Commander Nikita Pandey Case: निकिता ने तर्क दिया कि जब टेक्नोलॉजी और हालात इतने बदल चुके हैं तो 30 साल पुरानी नीतियों के आधार पर महिलाओं को स्थायी कमीशन से वंचित कर देना गलत है.

Who Is Nikita Pandey: विंग कमांडर निकिता पांडेय इन दिनों काफी चर्चा में हैं. पाकिस्तान के खिलाफ बालाकोट एयरस्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर जैसे बड़े ऑपरेशन्स में शामिल होकर अहम रोल अदा करने वाली निकिता सुप्रीम कोर्ट से अपनी लड़ाई जीत ली है. अदालत ने वायुसेना के आदेश दिया कि फिलहाल उन्हें सर्विस से न हटाया जाए.

सुप्रीम कोर्ट कहा कि अधिकारियों के सामने अपने लंबे करियर की संभावनाओं को लेकर अनिश्चितता चिंताजनक है और इसे एक अपडेट पॉलिसी के जरिए एड्रेस किया जाना चाहिए. अपनी याचिका में निकिता पांडे ने स्थायी कमीशन के लिए उनके आवेदन पर एसएसबी के फैसले तक सेवा में बने रहने का अनुरोध किया. उन्हें पहले 10 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद 19 जून, 2025 तक सेवा विस्तार दिया गया था.

कौन हैं विंग कमांडर निकिता पांडेय?

. विंग कमांडर निकिता पांडेय भारतीय वायु सेना में एक अधिकारी हैं जो 2011 में एसएससी के जरिए शामिल हुईं.

. उन्होंने फाइटर कंट्रोलर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और ऑपरेशन सिंदूर के साथ-साथ ऑपरेशन बालाकोट जैसे अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

. वो देश की उन चुनिंदा फाइटर कंट्रोलरों में से एक हैं, जो मेरिट लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं. निकिता पांडेय ने सशस्त्र बलों में साढ़े 13 साल से अधिक समय तक सर्विस की है. उन्होंने 2011 से 2025 तक वायुसेना को सर्विस दी है.

. वो पहली IAF SSC अधिकारी हैं जिनिकी सेना से उनकी रिलीज पर रोक लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 9 मई को सेना में 50 से अधिक महिला एसएससी अधिकारियों को इसी तरह की राहत दी थी.

क्या है निकिता पांडेय का मामला?

उनकी ओर से सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी और आस्था शर्मा ने दलील दी कि उन्हें उनके रणनीतिक कौशल और अनुभव की वजह से ऑपरेशन सिंदूर के लिए चुना गया था. अपने आवेदन में उन्होंने जिक्र किया, "महिला अधिकारियों को भारतीय वायु सेना में 1992 से शामिल किया जा रहा है, चूंकि अब 30 सालों से ज्यादा का समय हो चुका है, फिर भी उन्हें शामिल करने के लिए शुरू में उपलब्ध एकमात्र विकल्प एसएससी के जरिए चुना गया, जबकि उनके पुरुषों के पास एसएससी और स्थायी कमीशन दोनों के रूप में कमीशन मिलने का ऑप्शन है."

निकिता ने तर्क दिया कि जब टेक्नोलॉजी और हालात इतने बदल चुके हैं तो 30 साल पुरानी नीतियों के आधार पर महिलाओं को स्थायी कमीशन से वंचित कर देना गलत है. अगर वो हर तरह से योग्य हैं तो जेंडर के आधार पर भेदभाव क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने कहा, "अनिश्चितता की भावना सशस्त्र बलों के लिए अच्छी नहीं हो सकती. चूंकि महिला एसएससी अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन का कोई सुनिश्चित मौका नहीं है, इसलिए 10 साल पूरे होने के बाद इन अधिकारियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है."

पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “मान लीजिए, अगर आप 100 एसएससी अधिकारी लेते हैं, तो आप उन्हें स्थायी कमीशन के लिए विचार करते हैं. यह अलग बात है कि सभी योग्य नहीं हो सकते हैं. लेकिन हमें लगता है कि यह आपसी योग्यता और प्रतिस्पर्धा बहुत परेशानी का कारण बनती है.” कोर्ट ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार एसएससी अधिकारियों की भर्ती को उपलब्ध स्थायी कमीशन अवसरों की संख्या के साथ मिलाने के लिए एक नीति पर विचार करे.

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