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बाबर से लेकर ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ-II तक, कहानी उस कोहिनूर हीरे की जो भारत का है

भारत के पास से कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी (Queen Elizabeth II) के ताज तक कैसे पहुंचा, और समय-समय पर चर्चा में आने वाले कोहिनूर में क्या खास है, आइए जानते हैं.

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) के निधन के बाद कोहिनूर हीरा एक बार फिर चर्चा में है. बचपन में हम सभी ने कभी न कभी कोहिनूर हीरा के बारे में जरूर पढ़ा और सुना होगा. जब भी हीरे का नाम लिया जाता है तो कोहिनूर का नाम सबसे पहले आता है. इस हीरे की कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितना ये हीरा. जिसकी शुरुआत भारत से होती है जहां सबसे पहले ये पाया गया था. 

अब सवाल ये उठता है कि भारत के पास से कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी के ताज तक कैसे पहुंचा, और समय-समय पर चर्चा में आने वाले कोहिनूर में क्या खास है.

कोहिनूर हीरा लगभग 800 साल पहले भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदानों में मिला था. यह दुनिया के सबसे बड़े हीरे में से एक है. इसके नाम का मतलब है रोशनी का पर्वत. गोलकुंडा के खदानों का बेशकीमती हीरों से पुराना रिश्ता है. कहा जाता है कि इसी खदान में दरियाई नूर, नूर-उन-ऐन, ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे कई ऐसे हीरे मिले हैं जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती. 

मूल रूप में कोहिनूर हीरा 793 कैरेट का था. वर्तमान में यह 105.6 कैरेट का रह गया है जिसका वजन 21.6 ग्राम है. एक समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था. इस बेशकीमती हीरे को पूरे इतिहास से वर्तमान तक, कभी बेचा या खरीदा नहीं गया है. इसे या तो एक राजा से दूसरे राजा ने जीता है या फिर इनाम में दिया गया. 


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कोहिनूर का इतिहास

कोहिनूर का अर्थ भले ही 'रोशनी का पर्वत' हो, लेकिन इस बेशकीमती हीरे की वजह से कई राजाओं की सल्तनत तहस-नहस हो गई. मान्यता के आधार पर कोहिनूर को श्रापित भी बताया जाता है. श्रापित होने की बात 13वीं सदी से चली आ रही है.

दरअसल कहा जाता है कि कोहिनूर हीरा शापित है. शापित इसलिए क्योंकि इसके इतिहास को देखें तो हीरे की चमक के आगे कितने ही राजाओं ने अपनी जान गवाई है. सबसे पहले इस हीरे का जिक्र 1304 के किया गया था. तब यह मालवा के राजा महलाक देव की संपत्ति में शामिल था. इसके बाद इस हीरे का जिक्र बाबरनामा में किया गया है. बाबार के जीवनी में कहा गया कि यह हीरा ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह के पास था. उन्होंने पानीपत के युद्ध के दौरान इसे अपनी सारी संपत्ति के साथ आगरा के किले में रखवा दी थी.

जिसके बाद बाबर ने युद्ध जीतने के बाद उस किले पर भी अपना कब्जा जमा लिया और 186 कैरेट का वह हीरा भी उसका हो गया. उस वक्त उस बेशकीमती हीरे का नाम बाबर हीरा रखा गया. मुगलों के पास से इस हीरे को 1738 में ईरानी शासक ने लूट लिया जिसके बाद ईरानी शासक नादिर शाह ने इसका नाम कोहिनूर रखा.

नादिर शाह इस हीरे को अपना साथ ले गया और 1747 में नादिर शाह की हत्या कर दी गई. इसके बाद यह हीरा ईरानी शासक नादिर शाह के पोते शाहरुख़ मिर्ज़ा के पास पहुंच गया. जब यह हीरा शाहरुख़ मिर्ज़ा के पास था तब उनकी उम्र केवल 14 साल की थी. वह वक्त नादिर शाह के सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने शाहरुख मिर्जा की काफी मदद की थी जिससे वह खुश होकर उन्हें कोहिनूर हीरे को तोहफे के तौर पर सौंप दिया. 

सेनापती इस हीरे को लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचा जिसके बाद यह काफी सालों तक अब्दाली के वंशजों के पास रहा. अब्दाली का वंशज शुजा शाह जब लाहौर पहुंचा तो उस वक्त वहां पंजाब के  सिख राजा महाराजा रणजीत सिंह का शासन था. 1813 महाराजा रणजीत सिंह ने इस हीरे को शुजा शाह से हासिल कर लिया. इसके बाद से यह हीरा भारत में ही रहा.

महाराजा रणजीत सिंह इसे अपने ताज में पहना करते थे. रणजीत सिंह की मौत के बाद 1839 में हीरा उन  बेटे दिलीप सिंह को उत्तराधिकारी के रूप में सौंपा गया. 


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1849 में पहुंचा ब्रिटेन 

29 मार्च, 1849 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा कर लिया. इस कब्जे के साथ ही सिख साम्राज्य पर न सिर्फ़ ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभुत्व हो गया बल्कि दुनिया का सबसे मशहूर हीरा कोहिनूर भी उसे मिल गया. इस वक्त कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है. 

कब्जा करने के एक साल बाद यानी 1850 में इसे बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया. जिसके बाद मशूहर डच फर्म कोस्टर ने इसे 38 दिनों तक शेप दिया. शेप मिलने के बाद यह 108.93 कैरेट रह गया. जिसके बाद इसे रानी के ताज का हिस्सा बनाया गया.


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भारत ने की थी हीरा वापस लेने की कोशिश 

भारत आजाद होने के बाद साल 1953 में कोहिनूर हीरे की वापस करने की मांग रखी थी जिस इंग्लैंड ने खारिज कर दिया था. लेकिन भारत सरकार इस बारे में अपनी कोशिश जारी रखी. ब्रिटेन दलील देता है कि भारत के पास कोहिनूर वापस मांगने का कोई कानूनी आधार नहीं है. क्योंकि समकालीन पंजाब के 13 साल के राजा दलीप सिंह ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को यह हीरा तोहफे में दिया था. 
 

भारत के अलावा साल 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने कोहिनूर हीरा मांगने की कोशिश की थी लेकिन उनके भी मना कर दिया गया. 

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