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बीजेपी के साथ बरसों तक दोस्ती पर उससे पहले कांग्रेस से भी रहा है शिवसेना का नाता

Shiv Sena Alliance History: शिवसेना और बीजेपी की दोस्ती बरसों बरस रही, लेकिन उससे पहले कांग्रेस से कई सालों तक पार्टी का नाता रहा है. आइए समझते हैं इस रिपोर्ट में कैसे और कब शिवसेना का गठबंधन हुआ.

Shiv Sena Alliance: हम जब भी अपने दिमाग पर जोर डालते हैं तो यही याद आता है कि शिवसेवा का बीजेपी से ही हमेशा गठबंधन रहा है और शायद इसीलिए जब शिवसेना का गठबंधन एनसीपी और कांग्रेस के साथ हुआ तो लगा कि उसने बीजेपी के साथ दोस्ती में दगा किया है. पार्टी के 56 सालों के इतिहास में उसकी कई लोगों से दोस्ती रही है, वो बात अलग है कि शिवसेना और बीजेपी की दोस्ती सबसे लंबे समय तक रही.

जब शिवसेना की शुरूआत हुई थी तो वो घोर कम्युनिस्ट विरोधी पार्टी थी. साल 1967 में ठाणे नगर निगम के चुनावों में 40 में से 17 सीटें जीतकर शिवसेना ने अपनी मजबूत बुनियाद रखी थी. इसके एक साल बाद निकाय चुनाव की 121 सीटों में से 42 सीटें जीत लीं. उस समय शिवसेना का गठबंधन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन रहा. पीएमपी की विचारधारा को देखते हुए शिवसेना का गठबंधन एक आश्चर्यजनक निर्णय था.

फिर दो साल बाद दोनों पार्टियों के बीच खटास आ गई. खटास इसलिए आई क्योंकि साल 1970 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक कृष्णा देसाई की हत्या हो गई और कथित तौर पर इसका इल्जाम शिवसेना पर लगाया गया. इसको लेकर पीएसपी ने शिवसेना की आलोचना की और दोनों का गठबंधन खटाई में पड़ गया.

इस तरह शिवसेना ने थामा कांग्रेस का हाथ

साल 1973 बंबई के निकाय चुनाव में शिवसेना का गठबंधन रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के साथ होता है और वो 39 सीटें जीत लेते हैं. देश की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा था और साल 1974 में मुंबई मध्य की सीट के लिए लोकसभा का उपचुनाव होना था. कांग्रेस के उस वक्त के दबदबे के कारण शिवसेना साल 1974 में कांग्रेस से हाथ मिला लेती है और कांग्रेस उम्मीदवार रामराव आदिक को अपना समर्थन दे देती है. हालांकि रामराव आदिक वो चुनाव सीपीआई उम्मीदवार रोजा देशपांडे से हार जाते हैं, लेकिन इससे शिवसेना और कांग्रेस की दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ता है.

साल 1977 में बाला साहेब ठाकरे बीएमसी के मेयर के चुनाव के लिए एक बार फिर कांग्रेस उम्मीदवार मुरली देवड़ा का समर्थन करते हैं. इतना ही नहीं साल 1977 के आम चुनाव के साथ साथ साल 1978 के विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना ने कांग्रेस का समर्थन किया था. हालांकि शिवसेना ने लोकसभा चुनाव लड़ा नहीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने अपने प्रत्याशियों को खड़ा किया, वो बात अलग है कि शिवसेना का एक भी प्रत्याशी विधायक नहीं बन पाया.

साल 1980 तक शिवसेना और कांग्रेस की दोस्ती खूब रही. शिवसेना अपने उम्मीदवार तो नहीं खड़े करती, लेकिन कांग्रेस का खूब प्रचार करती थी और महाराष्ट्र विधान परिषद में तीन नामांकन के साथ शिवसेना को इसका इनाम दिया गया.

कांग्रेस से दोस्ती में आई दरार, बीजेपी से नजदीकी

शिवसेना और कांग्रेस के संबंधों में खटास तब आई जब साल 1982-83 में पूरी मुंबई में कपड़ा मिल वर्कर्स की हड़ताल होती है. शिवसेना ने भांप लिया था कि जिस तरह से कांग्रेस इस हड़ताल निपट रही है, उससे मध्य मुंबई उसका जनाधार खिसक सकता है. शिवसेना ने मौंका देखते ही कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया. इसी दौरान शिवसेना बीजेपी के नजदीक आ रही थी, जो साल 1980 में जनसंघ से बनी थी.

साल 1984 में शिवसेना ने बीजेपी के साथ लोकसभा की 2 सीटों पर गठबंधन किया और वो दोनों ही सीटें हार गई. ये वो समय था, जब इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी और पूरे देश में बीजेपी ने ही मात्र दो सीटें जीती थीं. इसके एक साल बाद साल 1985 के विधानसभा के चुनावों में शिवसेना अकेली मैदान में उतरी और एक ही सीट जीती जिस पर छगन भुजबल जीते.

इसके बाद शिवसेना मुंबई में एक ताकत बन चुकी थी और बीएमसी के चुनावों में अकेले उतरी. 139 सीटों में 74 सीटों पर जीत हासिल की. इसके बाद साल 1989 में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए हिंदुत्व की विचारधारा को प्रचलित किया और शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी से दोस्ती बढ़ाई. लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन हुआ. ये बीजेपी के साथ साथ शिवसेना के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.

इसके बाद साल 2014 के सितंबर महीने तक बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन लगातार बना रहा. उस समय मोदी लहर चली तो बीजेपी और मजबूत होती गई जबकि साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना कमजोर होती गई.

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