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'अदालत चाहे तो देख ले, अजनबियों को नहीं दिखा सकते PM मोदी की डिग्री', DU ने हाई कोर्ट में दिया जवाब

PM Modi Degree Row: आरटीआई आवेदन दाखिल किए जाने के बाद सीआईसी ने 21 दिसंबर, 2016 को 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की इजाजत दी थी.

DU On PM Modi Degree: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने गुरुवार (28 फरवरी, 2025) को दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से संबंधित अपने रिकॉर्ड अदालत को दिखाने को तैयार है, लेकिन आरटीआई के तहत इसका खुलासा अजनबी लोगों के सामने नहीं करेगा.

जस्टिस सचिन दत्ता के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी, जिसके बाद अदालत ने प्रधानमंत्री की स्नातक की डिग्री के संबंध में सूचना का खुलासा करने के निर्देश देने वाले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश के खिलाफ डीयू की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. मेहता ने कहा, ‘‘डीयू को अदालत को इसे दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वह विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड को जांच के लिए अजनबी लोगों के समक्ष नहीं रख सकता.’’

'अदालत को डिग्री दिखाने में कोई आपत्ति नहीं'

उन्होंने कहा कि सीआईसी का आदेश खारिज किए जाने योग्य है, क्योंकि ‘जानने के अधिकार’ से बढ़कर ‘निजता का अधिकार’ है. मेहता ने कहा, ‘‘मांगी गई डिग्री एक पूर्व छात्र की है, जो प्रधानमंत्री है. एक विश्वविद्यालय के रूप में हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है. हमारे पास हर साल का रिकॉर्ड है. विश्वविद्यालय को अदालत को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है. हमारे पास 1978 की एक डिग्री है, जो ‘कला स्नातक’ की है.’’

अदालत ने सीआईसी के आदेश पर लगाई थी रोक

नीरज नाम के शख्स की ओर से आरटीआई आवेदन दाखिल किए जाने के बाद सीआईसी ने 21 दिसंबर, 2016 को 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की इजाजत दी थी. इसी साल प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी. आरटीआई आवेदन में 1978 में परीक्षा देने वाले सभी छात्रों का विवरण मांगा गया था. उच्च अदालत ने 23 जनवरी, 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी.

कोर्ट ने इसी तरह की अन्य याचिकाओं पर भी अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. आरटीआई आवेदकों के वकीलों ने सीआईसी के आदेश का इस आधार पर बचाव किया कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम में प्रधानमंत्री की शैक्षिक जानकारी को व्यापक जनहित में प्रकट करने का प्रावधान है.

तुषार मेहता ने दी चेतावनी 

मेहता ने कहा कि ‘जानने का अधिकार’ असीमित नहीं है और किसी व्यक्ति की निजी जानकारी, जो सार्वजनिक हित या सार्वजनिक कर्तव्य से संबंधित नहीं है, को प्रकटीकरण से संरक्षित किया गया है. उन्होंने ‘कार्यकर्ताओं’ की ओर से आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग किए जाने के खिलाफ चेतावनी दी और कहा कि वर्तमान मामले में प्रकटीकरण की अनुमति देने से विश्वविद्यालय के लाखों छात्रों के संबंध में आरटीआई आवेदनों का खुलासा हो जाएगा.

मेहता ने कहा, ‘‘यह वह उद्देश्य नहीं है जिसके लिए आरटीआई की परिकल्पना की गई है. यह अधिनियम अनुच्छेद 19(1) के लिए अधिनियमित नहीं किया गया है. यह धारा 8 के तहत (अपवादों) के अधीन पारदर्शिता के लिए है.’’ उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान मामले में मांग राजनीतिक उद्देश्य से की गई है. उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि सूचना 20 साल से ज्यादा पुरानी है, ‘व्यापक सार्वजनिक हित’ की कसौटी समाप्त नहीं हो जाती. मेहता ने कहा कि यह कानून उन ‘स्वतंत्र लोगों’ के लिए नहीं है जो ‘‘अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करने’’ या दूसरों को ‘‘शर्मिंदा’’ करने के काम में लगे हैं.

डीयू ने क्या कहा था?

प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने के अनुरोध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने 11 फरवरी को दिल्ली हाई कर्ट में दलील दी थी कि उसके पास यह सूचना प्रत्ययी की हैसियत से है और जनहित के अभाव में ‘‘केवल जिज्ञासा’’ के आधार पर किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी सूचना मांगने का अधिकार नहीं है.

आरटीआई आवेदकों में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने 19 फरवरी को दलील दी थी कि किसी छात्र को डिग्री प्रदान करना कोई निजी कार्य नहीं है, बल्कि सूचना के अधिकार के दायरे में आने वाला एक सार्वजनिक कार्य है. सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने कहा कि आरटीआई प्राधिकरण का आदेश ‘‘मनमाना’’ और ‘‘कानून की नजर में असमर्थनीय’’ है क्योंकि जिस सूचना का खुलासा करने की मांग की गई है वह ‘‘तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी’’ है.

डीयू ने कहा है कि सीआईसी की ओर से किसी सूचना के प्रकटीकरण का निर्देश दिया जाना ‘‘पूरी तरह से अवैध’’ है जो उसके पास प्रत्ययी क्षमता में उपलब्ध है. इसने कहा कि प्रधानमंत्री सहित 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की मांग ने आरटीआई अधिनियम को एक ‘‘मजाक’’ बना दिया है. सीआईसी ने अपने आदेश में डीयू को निरीक्षण की अनुमति देने को कहा था और उसके जन सूचना अधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया था कि यह तीसरे पक्ष की निजी सूचना है.

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