ट्रेन नहीं निजी वाहनों में हजारों रूपये खर्च कर लौट रहे हैं एमपी के मजदूर
मध्यप्रदेश के बालाघाट शहर में तेलंगाना से आये दो बड़े ट्रक को जब लोगों ने देखा तो हैरान रह गए. इन बड़े ट्रकों में सवार थे करीब 72 मजदूर जो आठ सौ किलोमीटर का सफर तय कर अपने प्रदेश लौटे थे.

भोपाल: लॉकडाउन के डेढ महीने बाद मध्यप्रदेश से बाहर गए प्रवासी मजदूरों का धीरज अब जबाव दे गया है. ये मजदूर निजी वाहनों में लद कर किसी तरह अपने प्रदेश लौट रहे हैं, जिसकी इनको हजारों रुपये कीमत चुकानी पड रही है. तेलंगाना, गुजरात और महाराष्ट्र से लौट रहे इन मजदूरों ने जितना कमाया सब लौटने में गंवा दिया.
मध्यप्रदेश के बालाघाट शहर में तेलंगाना से आये दो बड़े ट्रक को जब लोगों ने देखा तो हैरान रह गए. इन बड़े ट्रकों में सवार थे करीब 72 मजदूर जो आठ सौ किलोमीटर का सफर तय कर अपने प्रदेश लौटे थे. ये सब होली के बाद मिर्ची तोड़ने की मजदूरी करने तेलंगाना गये थे मगर लाकडाउन में फंस गये तो किसी तरह इन दो बड़े ट्रकों की मदद से वापस आए. हालांकि वापस आने के लिए इनको ट्रक वाले को एक लाख रूपये से ज्यादा देना पड़ा. सबने मिल यह किराया दिया.
तेलंगाना से लौट कर आ रहे मज़दूर संतु धुर्वे ने बताया कि हम सब बुरी तरह फंस गए और जब वापसी के लिए कोई ट्रेन या बस नहीं मिली तो इस बड़े ट्रक से लौटे.
मजदूरी कर पैसा कमाने तेलंगाना गए ये सब मजदूर किसी तरह वापस आये हैं. हांलाकि वाहन अधिनियम के तहत इतने सारे लोग ट्रक में बैठकर इतना लंबा सफर तय नहीं कर सकते मगर हैरानी की बात है कि इस ट्रक के लिए राज्य सरकार ने परमीशन जारी कर दी और ट्रक वाला इसे बताता हुआ ही इतनी दूर तक आ पाया. इसी ट्रक से मंडला जाने वाले मज़दूर भी बैठे थे. उन मजदूरों को ट्रक वाला शहर से काफ़ी पहले उतार कर भाग गया. यही हाल गुजरात से डिंडोरी आये मजदूरों का भी है.
लॉकडाउन में फंसने के बाद एक छोटे से मिनी ट्रक मे 63 मजदूरों को जानवर की तरह ठूस कर लाया गया. ये सारे मजदूर आदिवासी जिलों डिंडौरी और अनूपपुर के हैं जो काम की तलाश में लंबे समय से गुजरात के सूरत शहर में साड़ी बनाने के कारखानों में काम करते थे. चार दिन, चार रात का सफर तय कर अपने जिले पहुंचे इन मजदूरों के साथ गर्ववती महिलाएं और बच्चे भी हैं. ट्रक वाले को इन मजदूरों ने अपने जिले पहुंच कर रिश्तेदारों की मदद से एक लाख 68 हजार रुपये दिए.
अब इन सब मजदूरों को स्थानीय प्रशासन अपने-अपने गांव पहुंचा रहे हैं. इस छोटे ट्रक में सवार होकर आए शिवकुमार कहते हैं कि सूरत में बुरे हालत हैं. बहुत सारे मजदूर अपने प्रदेश वापस जाना चाहते हैं मगर कोई मदद नहीं कर रहा.
यही हाल सूरत से सतना पहुचे मजदूरों का था. सूरत से नौ बसें तीन ट्रक और एक मिनी बस में बैठकर हजारों लोग सतना आए. ये सब सूरत की फैक्ट्रियों में काम करते थे और जिला प्रशासन ने इनको यहां भेजा. मगर इन मजदूरों को पैसा अपनी जेब से ही देना पड़ा. वो भी करीब तीन से चार हजार रूपये प्रति सवारी. जिला अस्पताल में स्क्रिनिंग के बाद अब इनको अपने गांव भेजा जायेगा. जहां इनको होम क्वॉरंटीन किया जाएगा. शिवराज सिंह की सरकार अपने प्रदेश के मजदूरों को दूसरे प्रदेशों से लाने की व्यवस्था में जुटी है मगर डेढ़ महीने के इंतजार के बाद अब वो अपने दम पर ही वापस आने लगे हैं. शिवराज सरकार का अनुमान है कि प्रदेश के चालीस हजार श्रमिक दूसरे राज्यों में फंसे हैं जिनको आने वाले दिनों में लाया जायेगा, मगर मज़दूरों से अब इंतज़ार नहीं हो रहा.

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Source: IOCL