40 साल बाद बोफोर्स घोटाले की फिर जांच, करोड़ों के घोटाले में भारत ने अमेरिका से मांगी मदद
Bofors Scam: CBI ने दिल्ली की एक अदालत के जरिए अमेरिका को जानकारी के लिए औपचारिक अनुरोध भेजा है. यह कदम हर्शमैन फर्म के हालिया बयानों के बाद उठाया गया है, जिसमें उन्होंने सहयोग करने की इच्छा जताई थी

Bofors Scam Investigation: भारत के सबसे चर्चित घोटालों में से एक बोफोर्स तोप घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है. सीबीआई ने इस मामले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका को लेटर रोगेटरी (Letter Rogatory) भेजा है. इसका मतलब है कि भारत ने अमेरिका से इस घोटाले से जुड़े एक खास गवाह माइकल हर्शमैन से पूछताछ करने में मदद मांगी है.
1986-87 में भारतीय सेना को मजबूत करने के लिए सरकार ने स्वीडन की कंपनी एबी बोफोर्स (AB Bofors) से 64 तोपें खरीदने का सौदा किया था. इस सौदे की कुल कीमत करीब 1,437 करोड़ रुपये थी. लेकिन बाद में आरोप लगे कि इस डील में बड़े स्तर पर कमीशन दिया गया और करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ. उस समय भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. जिनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.
बोफोर्स घोटाले से जुड़े अहम सबूत
माइकल हर्शमैन अमेरिका की एक निजी जांच एजेंसी फेयरफैक्स (Fairfax) के प्रमुख है. 2017 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने दावा किया था कि 1986 में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने उन्हें विदेशी बैंकों में जमा काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के लिए नियुक्त किया था. इस जांच के दौरान उन्हें बोफोर्स घोटाले से जुड़े अहम सबूत मिले थे.
सीबीआई को चाहिए अहम जानकारियां
हर्शमैन का कहना है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वे भारतीय जांच एजेंसियों की मदद कर सकते है.और इस मामले में कई अहम जानकारियां दे सकते है. सीबीआई को बोफोर्स घोटाले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए कुछ अहम दस्तावेज और गवाहों के बयान चाहिए. चूंकि माइकल हर्शमैन अमेरिका में है. इसलिए भारत ने अमेरिकी एजेंसियों से मदद मांगी है.
INTERPOL से भी मदद मांगी गई थी
सीबीआई ने पहले वित्त मंत्रालय से इस मामले से जुड़े दस्तावेज मांगे थे. लेकिन इतने पुराने केस की वजह से मंत्रालय के पास ये रिकॉर्ड नहीं मिले. INTERPOL से भी मदद मांगी गई थी. लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया. अब लेटर रोगेटरी के जरिए अमेरिकी अधिकारियों से सीधे मदद मांगी गई है.
अमेरिका के संबंधित अधिकारियों को चिट्ठी
भारत और अमेरिका के बीच "म्युचुअल असिस्टेंस इन क्रिमिनल मैटर्स एग्रीमेंट" (Mutual Assistance in Criminal Matters Agreement) है. इस समझौते के तहत भारत किसी भी आपराधिक जांच के लिए अमेरिका से मदद मांग सकता है. सीबीआई ने इस मामले में कोर्ट से लेटर रोगेटरी भेजने की अनुमति मांगी थी. कोर्ट ने इस मांग को मंजूरी दे दी और अब अमेरिका के संबंधित न्यायिक अधिकारियों को पत्र भेजा गया है.
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Source: IOCL
























