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जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद बीजेपी के लिए गुजरात में AAP की तरह करेंगे कमाल?

Ghulam Nabi Azad: जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के लिए सियासी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. उस पर गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता ने पहले ही अपनी अलग पार्टी का ऐलान कर दिया है.

Ghulam Nabi Azad Party DPAP: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव करवाए जाने की संभावना जताई जा रही है. कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद पहले ही 'डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी' बनाकर कांग्रेस को ठेंगा दिखा चुके हैं. वहीं, एबीपी न्यूज़ के खास शो प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता जयराम रमेश के आजाद पर तीखा हमला करने के बाद से उनकी पार्टी में वापसी को लेकर लग रही अटकलों पर भी पूर्ण विराम लग गया है. आसान शब्दों में कहें, तो गुलाम नबी आजाद अपनी पार्टी के सहारे कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे राजनीतिक दलों के खिलाफ जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं. 

संभावना जताई जा रही है कि गुलाम नबी आजाद केंद्रशासित प्रदेश में बीजेपी के लिए गुजरात में आम आदमी पार्टी की तरह ही काम कर सकते हैं. जिस तरह से बीते साल हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक को कमजोर करते हुए बीजेपी को बंपर फायदा पहुंचाया था. ठीक उसी तरह गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी से भी जम्मू-कश्मीर में इसी तरह के प्रदर्शन की उम्मीदें की जा रही हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद बीजेपी के लिए गुजरात में AAP की तरह काम कर पाएंगे क्या?

धारा 370 हटने के बाद कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ीं

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है. धारा 370 के हटने के बाद से स्थितियां और बदल गई हैं. जम्मू-कश्मीर के प्रमुख विपक्षी दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे दलों ने सीपीआई (एम), पीपल्स यूनाइटेड फ्रंट, पैंथर्स पार्टी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों के साथ मिलकर गुपकार संगठन बनाया है. जिसका कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना तय है. अगर कांग्रेस इस गुपकार संगठन का हिस्सा बनती है, तो उसके लिए थोड़ी-बहुत उम्मीदें बची रह सकती हैं. हालांकि, इन पार्टियों के साथ आने पर कांग्रेस को हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों में नुकसान पहुंचने की भी संभावना है. आसान शब्दों में कहें, तो कांग्रेस के लिए जम्मू-कश्मीर में खुद को बचाए रखना आसान नहीं है.

 जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम हो चुका है पूरा

जम्मू-कश्मीर में बीते साल परिसीमन पूरा हो चुका है और आखिरी मतदाता सूची भी जारी की जा चुकी है. परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए  83 की जगह 90 सीटों पर चुनाव होगा. 6 सीटें जम्मू क्षेत्र में बढ़ाई गई हैं और एक सीट कश्मीर घाटी में बढ़ी है. कश्मीर घाटी से अब 47 और जम्मू क्षेत्र से 43 सीटें हो जाएंगी. पहली बार अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित होंगी, उनके लिए 9 सीटें रिजर्व रखी जाएंगी. नए परिसीमन के बाद गुलाम नबी आजाद की स्वीकार्यता कई सीटों पर बढ़ सकती है. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद के खिलाफ मुखर रहने वाले मुस्लिमों के बीच आजाद मजबूत दखल रखते हैं. इसके साथ ही हिंदू मतदाताओं के बीच भी उनकी अच्छी-खासी पैंठ है. कुल मिलाकर परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में नई पार्टी बनाकर गुलाम नबी आजाद ने एक नया नैरिटव गढ़ सकते हैं.

आजाद के पास गठबंधन के विकल्प भी खुले

गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के साथ गठबंधन कर सकते हैं. हालांकि, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी की अपने दम पर ही विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना ज्यादा है. दरअसल, गुपकार गठबंधन में कांग्रेस का शामिल होना तय है. राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली जा रही भारत जोड़ो यात्रा जब कश्मीर पहुंचेगी, तो इस पर मुहर लग जाएगी. फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेता इस यात्रा से खुद को दूर नहीं रखना चाहेंगे, क्योंकि बीते साल हुए स्थानीय चुनाव में गुपकार गठबंधन उम्मीदों के अनुरुप कमाल नहीं दिखा पाया था. आसान शब्दों में कहें, तो गुपकार को अपनी छवि बदलने के लिए राहुल गांधी या गुलाम नबी आजाद में से एक को चुनना होगा.

अगर गुलाम नबी आजाद की पार्टी का गुपकार से गठबंधन हो जाता है, तो केंद्रशासित प्रदेश में उनकी पार्टी को ठीक-ठाक विधानसभा सीटें मिल सकती हैं. जिसके बाद अपने संबंधों के दम पर वह दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच की दूरी को और कम करने की कोशिश कर सकते हैं. संभव है कि वो अपनी सीटों के दम पर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे दें. हालांकि, इसकी संभावना कम ही नजर आती है, लेकिन अकेले विधानसभा चुनाव लड़कर वो गुपकार गठबंधन को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचा सकते हैं. दरअसल, जम्मू-कश्मीर की राजनीति में गुलाम नबी आजाद एक नया विकल्प हैं और अब प्रदेश की जनता विकल्प की राजनीति को महत्व देने लगी है. इसका इशारा स्थानीय निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में जीते निर्दलीयों से लगाया जा सकता है.

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देवेश त्रिपाठी एबीपी न्यूज की डिजिटल वेबसाइट में कार्यरत हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं. व्यंग्यात्मक लेखन में रुचि रखते हैं.
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