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दिल्ली में पराली से खाद बनाने की तकनीक का होगा इस्तेमाल, 12 अक्टूबर से किसान निशुल्क खेतों में करा सकेंगे छिड़काव- केजरीवाल
दिल्ली को हर साल पराली जलाने के कारण सर्दियों में काफी प्रदूषण झेलना पड़ता है. इस बीच अच्छी खबर है कि पूसा इंस्टीट्यूट ने एक ऐसी बॉयो डिकम्पोजर तकनीक बनाई है जो पराली को खाद में बदल देता है. दिल्ली सरकार प्रदेश के सभी किसानों के खेतों में मुफ्त में छिड़काव कराएगी.

stubble burning
नई दिल्ली: हर बार सर्दियों के मौसम में दिल्ली में प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले लेती है. इसका एक मुख्य कारण पराली जलाने से होने वाला धुआं है. ऐसे में दिल्ली सरकार ने दिल्ली में किसानों को पराली जलाने की जगह पूसा स्तिथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा तैयार की बॉयो डिकम्पोज़र तकनीक का इस्तेमाल करने का विकल्प दिया है. इस तकनीक में IARI द्वारा तैयार किए गए कैप्सूल से बने घोल का खेत में छिड़काव करने से खेतों में ही पराली से खाद बनाई जा सकती है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'दिल्ली सरकार पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा बनाए कैप्सूल से घोल बनवा कर पराली को खाद में बदलने के लिए किसानों के खेतों में खुद छिड़काव करेगी. दिल्ली सरकार, दिल्ली के एक-एक किसान के पास जाएगी और उनसे खेत में घोल के छिड़कने की अनुमति मांगेगी, जो किसान तैयार होंगे, उनके खेत में निःशुल्क छिड़काव किया जाएगा. '
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार, 5 अक्टूबर से IARI, पूसा की निगरानी में कैप्सूल से घोल तैयार कराएगी. इस घोल को तैयार करने में करीब 20 लाख रुपए की लागत आएगी. उन्होंने कहा कि कोराना के समय में पराली जलने से होने वाला प्रदूषण किसानों, शहर के लोगों और ग्रामीणों समेत सभी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए मैंने केंद्र सरकार से भी पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह अन्य राज्य सरकारों को भी जितना हो सके, इसी साल से इसको लागू करने की अपील करें.
केजरीवाल ने अन्य राज्यों से पराली को लेकर वैकल्पिक व्यवस्था देने की अपील की
एक प्रेस कांफ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'अक्टूबर का महीना शुरू हो रहा है. हम जानते हैं कि इस दौरान हर साल पराली के जलने से उठने वाले धुएं की वजह से पूरा उत्तर भारत परेशान होता है. दिल्ली में शहरी इलाकों में तो धुंआ आता ही है, लेकिन मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा धुंआ तो उन किसानों को भुगतना पड़ता है, जो अपनी फसल जलाने के लिए मजबूर होते हैं.
इस वक्त कोरोना का समय है, कोराना के समय में प्रदूषण किसानों के लिए, शहर के लोगों के लिए, गांव के लोगों के लिए और सभी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. सभी जिम्मेदार सरकारों का यह फर्ज बनता है कि वह अपने किसानों को एक वैकल्पिक व्यवस्था दे, ताकि किसानों को फसल जलाने की जरूरत न पड़े.'
5 अक्टूबर से IARI पूसा की निगरानी में कैप्सूल से घोल बनवाएगी दिल्ली सरकार
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'खुशी की बात यह है कि इस साल पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट, जो हमारे देश का सबसे बड़ा खेती में रिसर्च करने वाला इंस्टीट्यूट है, उन्होंने हमें इस समस्या का एक समाधान दिया है. उन्होंने इसका बहुत ही सस्ता समाधान दिया है. उन्होंने एक कैप्सूल बनाया है, एक हेक्टेयर खेत में अगर उनके चार कैप्सूल गुड़ और बेसन के घोल में मिलाकर छिड़क दिए जाएं तो खेत में पराली का जो डंठल होता है, जो काफी मजबूत होता है, वह गल जाता है और उससे खाद बन जाती है.'
लेकिन इस बार अगली फसल की बुआई के समय को देखते हुए थोड़ी देर हो चुकी है. 15 अक्टूबर से किसानों को अगली फसल की तैयारी करनी है, और इसी समय के आस पास ही किसान खेत में खड़ी पराली में आग लगना शुरू करते हैं. केजरीवाल ने एलान किया, 'दिल्ली सरकार ने यह तय किया है कि अगर हम यह कैप्सूल किसानों को बांटते और किसानों को कहते कि अपना-अपना घोल बनाकर, अपने-अपने खेत में छिड़क लीजिए तो इतना समय ही नहीं था.
हम अपनी मशीनरी से सारा घोल बांटते, उन्हें प्रशिक्षण देते, उन्हें सिखाते और कैप्सूल से घोल बनाने में ही एक हफ्ते से 10 दिन लग जाते हैं. इसलिए दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है कि पूसा इंस्टीट्यूट की निगरानी में कैप्सूल से यह घोल दिल्ली सरकार खुद बनाएगी. हमने इसका सारा इंतजाम कर लिया है. पूसा इंस्टीट्यूट की निगरानी में 5 अक्टूबर से यह घोल बनाना शुरू किया जाएगा.'
12 अक्टूबर से किसानों के पास जाएगी दिल्ली सरकार और उनकी अनुमति खेत में घोल का निःशुल्क छिड़काव होगा
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, ' दिल्ली के अंदर करीब 800 हेक्टेयर जमीन है, जहां पर गैर बासमती चावल उगाया जाता है. उसके बाद यह पराली निकलती है और पराली को जलाने की नौबत आती है. 800 हेक्टेयर इस जमीन के लिए पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट की निगरानी में 5 अक्टूबर से इस घोल को बनाने की तैयारी शुरू की जाएगी और हमें उम्मीद है कि 12-13 अक्टूबर के आसपास यह घोल बनकर तैयार हो जाएगा.
दिल्ली सरकार किसानों के पास जाएगी और उनसे पूछेगी कि क्या वह अपने खेत में इसका छिड़काव करवाना चाहते हैं. जो किसान अपने खेत में इसका छिड़काव करवाने की मंजूरी देंगे, दिल्ली सरकार खुद अपने ट्रैक्टर किराए पर करके हर किसान के यहां फ्री छिड़काव करायेगी. घोल का छिड़काव करने के 15 से 20 दिन के अंदर पराली का डंठल गल कर खाद में बदल जाएगा."
घोल के इस्तेमाल से बढ़ेगी मिट्टी की गुणवत्ता, पूरी दिल्ली में फ्री छिड़काव की लागत 20 लाख से कम
अरविंद केजरीवाल ने बताया, 'पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि डंठल के खाद में बदलने के बाद खेत में उगाई जाने वाली अगली फसल में खाद भी कम लगेगी और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ेगी. जिस पराली को किसान जलाया करते थे, उसे जलाने की वजह से जमीन के अंदर जो उपयोगी बैक्टीरिया होते थे, वह जल जाते थे, इससे खेत की मिट्टी को भी नुकसान होता था. लेकिन कैप्सूल के घोल का खेत में छिड़काव करने से किसानों को फायदा होगा. '
पूरी दिल्ली में इस तकनीक के इस्तेमाल में आने वाली लागत का ज़िक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, 'आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दिल्ली के अंदर से इसे लागू करने में इसकी लागत करीब 20 लाख रुपए से भी कम आ रही है. हमने दिल्ली के अंदर इसका पूरा इंतजाम कर दिया है. मैं उम्मीद करता हूं कि आसपास के राज्यों में भी जितना भी हो सकेगा, उतना इसको इस साल लागू करने की कोशिश की जाएगी.' गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल ने इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि वह अन्य राज्य सरकारों से भी इसको इसी साल से लागू कने की अपील करें.
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