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नागरिकता संशोधन बिल: रिफ्यूजी स्कूल में पढ़ने वाले अफगानी जब्बार ने कहा- अब भविष्य खत्म लग रहा है

नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पास हो चुका है. जिसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता पर खतरा मंडरा रहा है.

नई दिल्ली: सोमवार को देर रात लोक सभा में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू हुआ. जिससे जहां एक तरफ हिन्दू और सिख शरणार्थियों को एक उम्मीद मिली है. वहीं मुसलमानों को ये डर सता रहा है कि जिस देश में आतंक से बच कर वो भारत में आए कहीं दोबारा उनको उस मुल्क में ना भेज दिया जाए.

केस स्टडी-1

कभी अफगानिस्तान में टीचर रहे भोगल में रहने वाले फरजूद दीन शिकरी के परिवार में उनके दो छोटे बेटे और दो बेटियां हैं. उनकी उम्र 70 साल है. उनके बच्चे पास के रिफ्यूजी स्कूल में पढ़ाई करते हैं. यूएन से भी उनको ब्लू कार्ड मिला है. जिससे उनको स्टे मिला हुआ है. काफी टाइम से वह रिफ्यूजी स्टेटस को परमानेंट करने के लिए धक्के खा रहे हैं. उनका कहना है कि जब वह अफगानिस्तान में थे तो समाजसेवक की तरह काम करते थे. सरकार और लोगों के बीच में अमन फैलाने का काम करते थे, लेकिन ये बात शायद दहशतगर्दों को राज नहीं आई. इसलिए एक दिन शिकरी को कार से कुचल कर मारने का प्रयास किया गया और उनके घर में बम रख दिया.

उनका बेटा जब्बार 12वीं कक्षा में पढ़ रहा है. उसका कहना है कि वह घटना को याद करके सहम जाता है. उसने बताया, "मैंने बम देखा. मैं घर से बाहर भागा. मैंने फोन करके अब्बा को बताया, पुलिस को बताया, पुलिस ने आकर बम को खत्म किया, मैं बहुत डर गया था मेरे भाई बहन बहुत छोटे थे सब अंदर फंस गए थे".

भारत आ जाने के बाद भी जब्बार की चिंता खत्म नहीं हुई. उसका कहना है कि वह 12वीं क्लास में है लेकिन आगे कि पढ़ाई करने के लिए उसके पास कोई नागरिकता नहीं है. जिससे उसे डर है के कहीं उसका भविष्य खराब ना हो जाए. नागरिकता संशोधन बिल के बारे में फरजूद दीन शिकरी ने बताया कि भारत के लोगों और सरकार ने उनका बहुत साथ दिया है. ये सरकार कि पालिसी है, लेकिन अगर ये सबके लिए होती तो ज्यादा अच्छा था. क्योंकि वह एक बार खुद तो अफगानिस्तान चलें जाएं, लेकिन आपने बच्चों की जिन्दगी को वह खतरे में नहीं डालना चाहते. शिकारी ने बताया कि अफगानिस्तान के इस हालत का जिम्मेदार पाकिस्तान है जो के वहां आतंक को बढ़ावा देता है.

केस स्टडी-2

कमल नासिर 2014 से भारत में रह रहें हैं. उनका बेटा युसूफ तीन साल का है और भारत में ही पैदा हुआ है. नासिर अपने बीवी और बच्चे के साथ छोटा व्यापार करके गुजारा कर रहा है. नासिर का कहना है कि वह अफगानिस्तान में बैंक में काम करते थे लेकिन उनको धमकियां मिलने लगी तो वह अफगानिस्तान छोड़ कर भारत में बसने आ गए. उन्होंने बताया कि अगर उनके बेटे को यहां पर नागरिकता मिल जाती तो उसके भविष्य के लिए ये अच्छा होता.

अफगानिस्तान के दर्दनाक हाल को याद करके नासिर ने बताया कि एक बार वह कैब से ऑफिस जा रहे थे. एक दम से कुछ ही दूरी पर एक बम ब्लास्ट हुआ. लोगों के बदन के टुकड़े हवा में मानों तैरने लगे. उन्होंने बताया कि आज भी दिवाली में जब बम फोड़ा जाता है तो उनको डर लगता है. उन्होंने कहा कि वह ये नहीं चाहते के ऐसे डर कर जीने को पर उनका बेटा भी मजबूर हो जाए. इस नियम का स्वागत करते हुए उन्होंने उम्मीद भरी निगाहों से कहा के अगर उन्हे नागरिकता मिल जाती है तो और उनके बेटे का भविष्य भी सेव हो जाएगा.

केस स्टडी-3

खालिद 10 साल से भारत में रह रहें है. अमर कॉलोनी में ही काम करते हैं लेकिन नागरिकता के लिए उन्होंने कभी कोशिश नहीं की. उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान में पत्रकारों को मारा जा रहा था और खालिद को भी कई ऐसी धमकियां आईं. जिसके बाद आपने बच्चे को लेकर वह भारत आ गए. नागरिकता के लिए उन्होंने कहा के इस बिल को धर्म निरपेक्ष होना चाहिए था.

हिन्दू अफगानी रिफ्यूजी और सिखों को मिली बड़ी राहत

तिलक नगर में रह रहे और खालसा दरबार के अध्यक्ष मनोहर सिंह का कहना है कि वह काफी साल से भारत में रह रहे हैं. 1972 में वह भारत आ गए थे और तब से यहां पर रह रहे उनके पास नागरिकता है इसलिए वह सब की सेवा कर रहे हैं. उनका कहना है कि उस समय अफगानिस्तान की इतनी हालत खराब थी कि अगर हिंदू और सिख वहां से नहीं जाते तो उनको और ज्यादा जुल्म उठाना पड़ता. उन्होंने बताया कि काफी सालों से यहां पर कई परिवार नागरिकता के लिए भटक रहे थे.अब लोगों को एक नई उम्मीद मिली है. सबके बच्चे यहां पढ़ रहे हैं. इस तरह का कदम उठाया जाना अच्छी बात है. हमें जॉब मिलेगी. हमारे बच्चों को स्कूल में एडमिशन मिलेगा. साथ ही बैंक में लोन भी मिल पाएगा.

पिछले कई सालों से भाग दौड़ कर रहे गुजिलाल खौसती 2014 में भारत आए. वह भारत में पर नागरिकता चाहते थे लेकिन मिल नहीं पा रही थी. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि हमें नागरिकता मिल जाएगी. हम इसका स्वागत करते हैं. हम बहुत ज्यादा खुश हैं. यह दो-तीन साल पहले ही हो जाना चाहिए था. 1992 में 15 साल की उम्र में हरप्रीत कौर भारत आईं. उन्होंने बताया कि तब ज्यादातर जगह मुजाहिदीन का आतंक छाया हुआ था. उनका कहना है कि तब बहुत ही बुरे हालात थे. लोग ट्रकों में छुप-छुप कर भारत आए. बम फटने के डर से कुछ लोग तो जमीन के बेसमेंट में छिपे रहते थे. यहां आकर कई लोगों ने कैंप में रातें गुजारीं. कई-कई दिनों तक लोगों को भूखे भी रहना पड़ा. उनके दोनों ही बच्चे यहां भारत में पैदा हुए. लेकिन 25 साल बाद भी उनको नागरिकता नहीं मिल पाई है. हरप्रीत कौर इतने सालों से नागरिकता मिलने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने कहा कि हमें बहुत ज्यादा खुशी और उम्मीद है कि हमें नागरिकता जल्द से जल्द मिल जाएगी. इतने खराब हालातों का सामना करने के बाद यहां आए और अब इसके बाद उम्मीद है उनकी एक बार फिर से जग गई है.

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