राम दरबार की मू्र्ति बनाते समय हुआ चमत्कार! मूर्तिकार बोले- एक ही शिला थी, लेकिन प्रभु राम...
राम दरबार की मूर्तियां बनाने के दौरान आने वाले चुनौतियों को लेकर मूर्तिकार सत्य नारायण पांडेय ने कहा कि हम 3-4 पीढ़ियों से गर्भ गृह की मूर्तियां बना रहे हैं.

जयपुर के मूर्तिकार सत्य नारायण पांडेय और उनके बेटे प्रशांत पांडेय ने मिलकर अयोध्या में राम दरबार की मूर्तियां बनाई. उन्होंने बताया कि कई पीढ़ियों से उनका परिवार भगवान की मूर्तियां बनाता आ रहा है. उन्होंने राम दरबार की मूर्ति बनाने के दौरान हुए एक चमत्कार की कहानी सुनाई.
एनडीटीवी से बातचीत में प्रशांत पांडेय ने बताया कि उन्होंने कई भगवान की मूर्तियां बनाई हैं. उन्होंने राम मंदिर में स्थापित किए गए राम दरबार को लेकर कहा कि राम दरबार में सीताराम एक शिला में हैं, पीछे लक्ष्मण और शत्रुघ्न हैं. आगे दास रूप में हनुमान जी बैठे हैं और साथ ही भरत हैं. उन्होंने आगे कहा कि सीताराम का एक स्टोन बहुत ही विलक्षण हैं. हमने मूर्ति बनाने के लिए रिसर्च कर एक बहुत ही पुराना पत्थर निकाला.
मूर्ति बनाने के दौरान हुआ चमत्कार
मूर्तिकार प्रशांत पांडेय ने बताया कि जब हम मूर्ति बना रहे थे, पिता ने हाथ और चेस्ट बनाया. उसके बाद मूर्ति बनाने को लेकर आपस में चर्चा कर रहे थे. उसी दौरान भगवान खुद ही नील वर्ण में अवतरित हुए. उनके पिता सत्य नारायण पांडेय ने कहा कि ये चमत्कार है, कुदरत का चमत्कार है. उन्होंने कहा कि इसी पत्थर में माता सीता की मूर्ति गौर वर्ण की है, लेकिन प्रभु श्रीराम की मूर्ति नीले वर्ण में है.
मूर्तिकार प्रशांत पांडेय ने बताया कि जब हम भगवान राम की मूर्ति अपने वहां बना रहे थे तो उस दौरान उधर काफी मोर आते, बंदर भी आने की कोशिश करते. ये सब उनके भाव हैं, जो हम अपने शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि ये प्रभु की लीला है जो हमारे साथ भी होती रहती है.
सबसे ज्यादा कठिनाई किस मूर्ति में आई ?
जब पत्रकार ने पूछा कि भगवान राम और उनके पूरे परिवार की मू्र्तियां बनाने में सबसे ज्यादा कठिनाई किसमें आई तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि हम 3-4 पीढ़ियों से गर्भ गृह की मूर्तियां बनाते आ रहे हैं, लेकिन यहां जो वाइब्रेशन हैं, जो यहां की ऊर्जा है वो काफी अलग है. इसमें बहुत चैंलेज भी है और ये बहुत सॉफ्ट भी है.
मूर्तियों को गढ़ने के सवाल पर प्रशांत पांडेय के पिता सत्य नारायण पांडेय ने कहा कि कलाकार ये बहुत भक्तिमय और आनंदमय होकर करता है और जब भगवान भक्तों को देखते हैं तो वो भी बहुत आनंदमय हो जाते हैं और ऐेसे में भगवान का आनंदमय स्वरूप तैयार होता है. ये भक्ति का ही चमत्कार है.
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Source: IOCL





















