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संविधान सभा में हुई बहस में किसने किया था UCC का विरोध? तब इसलिए नहीं हुआ था लागू  

उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी लागू हो गया है. क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद संविधान सभा में यूसीसी का विरोध कौन किया था. जानिए संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर का क्या मत था.

उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी लागू हो गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बीते सोमवार यानी 27 जनवरी 2025 को यूसीसी नियमावली और पोर्टल को लॉन्च किया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के बाद भी यूसीसी को संविधान में जोड़े जाने का प्रस्ताव रखा गया था. आज हम आपको बताएंगे कि संविधान सभा में हुई बहस के दौरान किन नेताओं ने यूसीसी का विरोध किया था. 

उत्तराखंड में यूसीसी लागू

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी लागू कर दिया है. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद अब धर्म,जातियों पर एक कानून लागू हो गया है. ऐसे में यूसीसी नियमावली में दिए गए प्रावधान के मुताबिक विवाह रजिस्ट्रेशन, तलाक पंजीकरण, वसीयत, समेत तमाम प्रक्रियाएं यूसीसी कानून के तहत होंगी.

संविधानसभा में बहस

बता दें कि 23 नवंबर 1948 के दिन संविधान सभा में यूसीसी को लेकर जोरदार बहस हुई थी. इस दौरान कुछ लोगों का मत यूसीसी के साथ था, तो कुछ नेताओं का मत इसके विरोध में था. उस वक्त मुस्लिम लीग के नेता और विधानसभा सदस्य मोहम्मद इस्माइल खान ने मसौदा संविधान के अनुच्छेद 35 (जो बाद में अनुच्छेद 44 बन गया) में संशोधन का सुझाव देते हुए बहस की शुरुआत की थी. उन्होंने कहा था कि इस प्रावधान में यह बात भी शामिल होनी चाहिए कि ”कोई भी समूह, वर्ग या लोगों का समुदाय अपने निजी कानून को छोड़ने के लिए बाध्य नहीं होगा, यदि उसके पास ऐसा कोई कानून है. दरअसल इस्माइल ने इसके पीछे तर्क दिया कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को लंबे समय से चली आ रही धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह देश में असंतोष पैदा कर सकता है और सद्भाव को बिगाड़ सकता है.

UCC के विरोध में ये नेता?

मुस्लिम लीग के नेता और विधानसभा सदस्य मोहम्मद इस्माइल खान के अलावा बी पोकर साहिब बहादुर ने भी इसका विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि अगर यह (संविधान सभा) जैसी कोई संस्था धार्मिक अधिकारों और प्रथाओं में हस्तक्षेप करती है, तो यह अत्याचार होगा. मुस्लिम लीग के एक और नेता नजीरुद्दीन अहमद ने भी एक ऐसा ही प्रस्ताव रखा था. 

UCC के पक्ष में डॉ. बीआर आंबेडकर की राय?

संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर आंबेडकर यूसीसी के पक्ष में थे. उन्होंने कहा कि इस बात पर बहस करने में बहुत देर हो चुकी है कि यूसीसी को लागू किया जाना चाहिए या नहीं, क्योंकि काफी हद तक इसे पहले ही लागू किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि देश में विवाह और विरासत जैसी चुनिंदा चीजों को छोड़कर, यूसीसी पहले से लागू है. बता दें कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 (Article 44 of Indian Constitution) में कहा गया गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा. इस अनुच्छेद को संविधान सभा द्वारा 23 नवंबर, 1948 को एक जोरदार बहस के बाद अपनाया गया था. 

ये भी पढ़ें:उत्तराखंड में सरकार बदलने पर क्या वापस लिया जा सकता है UCC? जान लीजिए क्या हैं नियम

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