मुस्लिमों में क्या है तलाक-ए-हसन प्रथा, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई?
What Is Talaq E Hasan: तलाक-ए-हसन की प्रथा सुप्रीम कोर्ट की कड़ी नजर में है और इसे रद्द करने की संभावना भी बन रही है. फैसला आया तो देश में मुस्लिम तलाक प्रणाली का नया अध्याय शुरू हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों एक ऐसा मामला गूंज रहा है, जिसने न सिर्फ मुस्लिम समाज बल्कि पूरे देश का ध्यान खींच लिया है. सवाल है कि क्या तलाक-ए-हसन जैसी प्रथा किसी आधुनिक और सभ्य समाज में जारी रह सकती है? अदालत की कड़ी टिप्पणी और तीन जजों की बेंच का रुख देखकर साफ लग रहा है कि इस प्रथा पर बड़ा फैसला आने वाला है. मगर इससे पहले समझना जरूरी है कि तलाक-ए-हसन होता क्या है और अदालत क्यों इसे चुनौती के रूप में देख रही है.
कोर्ट की कठोर टिप्पणी
मुस्लिम समुदाय में तलाक की कई प्रथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक है तलाक-ए-हसन. हाल के दिनों में यह प्रथा फिर सुर्खियों में है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कठोर टिप्पणी करते हुए पूछा कि क्या किसी सभ्य समाज में इस तरह की व्यवस्था स्वीकार की जा सकती है? यह टिप्पणी उस मामले के दौरान की गई जिसमें पति अपने वकील के जरिए तलाक भेज रहा था और पत्नी ने इसे चुनौती दी. मामला बढ़ते-बढ़ते अब संविधान संबंधी सवालों तक पहुंच चुका है.
तलाक-ए-हसन क्या है?
अब समझते हैं कि वास्तव में तलाक-ए-हसन क्या है. तलाक-ए-हसन में पति अपनी पत्नी को तीन अलग-अलग तुहर (पवित्रता की अवधि) में तलाक देता है.
पहला तलाक: महिला मासिक धर्म के बाद जब पवित्रता की अवस्था में हो और पति ने संभोग न किया हो, तब पहला तलाक दिया जाता है.
दूसरा तलाक: अगले मासिक धर्म के बाद दोबारा पवित्र होने पर दूसरा तलाक दिया जाता है.
तीसरा तलाक: तीसरे तुहर में तीसरा और अंतिम तलाक दिया जाता है.
इस पूरी प्रक्रिया में तलाक देने का समय और तरीका बेहद सख्त नियमों में बंधा होता है. महिला यदि गर्भावस्था में हो या पीरियड में हो, तो तलाक देना वर्जित है. इसलिए इसे ‘सुन्नत तरीके के तलाक’ में गिना जाता है, जो चरणबद्ध और ठहराव वाली प्रक्रिया है, जिसमें सुलह की गुंजाइश भी बनी रहती है.
तीन तलाक से कैसे अलग है यह?
अब सवाल उठता है कि यह तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत से कैसे अलग है? तो तलाक-ए-बिद्दत में पति एक ही बार में तीन तलाक बोलकर रिश्ता तुरंत खत्म कर देता है. इसमें न कोई प्रतीक्षा अवधि होती है और न ही सुलह का अवसर. यही वजह है कि कई देशों जैसे मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक, कुवैत और मलेशिया ने भी इसे प्रतिबंधित कर रखा है. भारत में भी तीन तलाक को अपराध घोषित कर दिया गया है.
लेकिन तलाक-ए-हसन अभी भी मान्य है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों से यह साफ है कि अब यह प्रथा संवैधानिक समीक्षा के दायरे में आ गई है. अदालत इसे समानता और महिलाओं के अधिकारों की दृष्टि से देख रही है.
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Source: IOCL





















