अब कोर्ट के आदेश की सॉफ्ट कॉपी से मिल जाती है जमानत, लेकिन असली-नकली की पहचान कैसे करेगी पुलिस?
सुप्रीम कोर्ट ने जमानत प्रक्रिया को तेज करने लिए नए निर्देश जारी किए हैं. जिनमें कोर्ट के आदेश की सॉफ्ट कॉपी के जरिए जमानत देने की व्यवस्था शामिल है. चलिए जानें कैसे पुलिस सही गलत का पता करती है.

भारत की सर्वोच्च अदालत ने जमानत प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं. जिसमें अब कोर्ट के आदेश की सॉफ्ट कॉपी से कैदी या दोषी को जमानत मिल जाती है, लेकिन असली-नकली की पहचान पुलिस कैसे करती है, चलिए इस बारे में जानते हैं.
क्या है आदेश?
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, जब किसी विचाराधीन कैदी या दोषी को जमानत दी जाती है, तो कोर्ट को उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक को जमानत आदेश की सॉफ्ट कॉपी ई-मेल के जरिए भेजनी होगी. यह आदेश ई-जेल सॉफ्टवेयर में दर्ज किया जाता है जिससे प्रक्रिया में तेजी आए और कैदियों को जल्द रिहा किया जा सके. यह कदम खासकर उन कैदियों के लिए मददगार है, जो जमानत राशि या शर्तें पूरी न कर पाने के कारण जेल में रह जाते हैं.
क्या है चुनौती?
लेकिन इस डिजिटल प्रक्रिया के साथ एक चुनौती भी सामने आती है. सॉफ्ट कॉपी की प्रामाणिकता जिसमें जमानत आदेश की सॉफ्ट कॉपी के साथ छेड़छाड़ या फर्जी दस्तावेज तैयार करने की आशंका रहती है. ऐसे में पुलिस और जेल प्रशासन के सामने सवाल है कि वे इसकी सत्यता कैसे जांचें? इसके लिए कई उपाय किए जा रहे हैं.
पुलिस कैसे करती है चेक?
सबसे पहले कोर्ट द्वारा भेजे गए जमानत आदेश में एक यूनिक रेफरेंस नंबर या डिजिटल हस्ताक्षर होता है, जिसे ई-जेल सॉफ्टवेयर या कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर वेरिफाई किया जा सकता है. पुलिस और जेल प्रशासन को इस सॉफ्टवेयर तक पहुंच दी गई है, ताकि वे तुरंत आदेश की सत्यता जांच सकें. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि अगर जमानत आदेश के सात दिन बाद भी कैदी रिहा नहीं होता, तो जेल अधीक्षक को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को सूचित करना होगा. DLSA पैरा-लीगल वॉलंटियर्स या वकीलों की मदद से यह सुनिश्चित करता है कि सही प्रक्रिया का पालन हो. यह प्रणाली न केवल रिहाई में देरी को रोकती है, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल पर भी नजर रखती है.
पुलिस को किया जा रहा प्रशिक्षित
हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक टाइपिंग गलती के कारण गलत व्यक्ति को जमानत मिलने का मामला सामने आया था, जिसे बाद में सुधार लिया गया. ऐसे मामलों से बचने के लिए डिजिटल सत्यापन को और मजबूत किया जा रहा है. इसके अलावा पुलिस को भी इस दिशा में प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे वे डिजिटल दस्तावेजों की जांच के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर सकें.
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