शांति का नोबेल पाने वाले वो चेहरे, जिन्होंने मचाया मौत का तांडव; क्या इनसे वापस लिया जा सकता है यह अवॉर्ड?
Nobel Peace Prize For Trump: क्या शांति का नोबेल जीतने वाले कुछ ऐसे नेता वास्तव में इसके हकदार थे, जिन्होंने युद्ध और हिंसा की राह भी अपनाई. डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल की मांग के बीच आइए जानें.

नोबेल शांति पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान में से एक है. इसे ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है, जिन्होंने शांति, युद्धविराम और मानवता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो. लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि पुरस्कार जीतने वाले नेताओं का इतिहास विवादित हो और उनके फैसले, युद्ध या हिंसा से जुड़े हों. यही सवाल इस बार फिर उठ रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एकबार फिर यह दावा कर चुके हैं कि वे इस पुरस्कार के पूरी तरह हकदार हैं, हालांकि उनको यह पुरस्कार नहीं मिला है.
खासतौर पर तब से जब इजरायल और हमास ने गाजा को लेकर ट्रंप की शांति योजना के पहले चरण पर हस्ताक्षर किए, उनके नोबेल शांति पुरस्कार पाने की मांग और ज्यादा तेज हो गई है. चलिए उन लोगों के बारे में जानते हैं, जिनको नोबेल शांति पुरस्कार मिलना विवादों में रहा.
फिलस्तीन के नेता यासिर अराफात
इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां शांति पुरस्कार जीतने वाले नेता या संस्थाओं पर विवाद हुआ. 1994 में फिलस्तीन के नेता यासिर अराफात को तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री यित्जाक रबिन और विदेश मंत्री शिमोन पेरेस के साथ नोबेल शांति पुरस्कार मिला था. यह सम्मान उन्हें ओस्लो शांति समझौते पर काम करने के लिए दिया गया था, जिसे उस समय इजरायल-फिलस्तीन संघर्ष को कम करने का महत्वपूर्ण प्रयास माना गया.
हालांकि, अराफात की सशस्त्र गतिविधियों और छापामार कार्रवाईयों की वजह से इस फैसले को लेकर दुनिया में विवाद हुआ. नॉर्वे के एक राजनेता केयर क्रिस्टियानसेन ने कमिटी के भीतर मतभेदों के चलते इस्तीफा दे दिया था. इस फैसले पर इजरायल और कई अन्य देशों में तीखी आलोचना हुई थी.
तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर
इसी तरह, 1973 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को वियतनाम युद्धविराम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. किसिंजर ने उत्तर वियतनामी नेता ले डक थो के साथ समझौता कराने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन उनकी भूमिका कंबोडिया में गुप्त बमबारी और दक्षिण अमेरिका में सैन्य तानाशाहों का समर्थन करने में भी रही, जिससे उन्हें मिलने वाले पुरस्कार पर भारी आलोचना हुई. कमिटी के दो सदस्य विरोध में इस्तीफा दे चुके थे. न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे तंज़ में नोबेल वॉर प्राइज तक कह दिया था.
अबी अहमद को नोबेल
2019 में इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को इरीट्रिया के साथ सीमा विवाद सुलझाने के प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला. लेकिन जल्द ही सवाल उठने लगे कि क्या यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया था. इसके बाद उन्होंने टिग्रे क्षेत्र में सेना भेजी, जिससे गृहयुद्ध छिड़ गया और लाखों लोगों को भोजन, दवा और बुनियादी सेवाओं से महरूम होना पड़ा था. इसके कारण हजारों लोगों की मौत हुई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई.
वापस लिया जा सकता है पुरस्कार?
नोबेल पुरस्कार के नियमों के अनुसार एक बार दिया गया पुरस्कार कभी वापस नहीं लिया जा सकता. चाहे पुरस्कार जीतने के बाद किसी नेता की नीतियां विवादित हों, अवॉर्ड स्थायी माना जाता है. इसलिए, चाहे कोई नेता युद्ध में शामिल रहा हो या उसकी नीतियां आलोचनाओं के घेरे में रही हों, नोबेल शांति पुरस्कार उसे वापस नहीं लिया जा सकता है. यह नियम पुरस्कार की प्रतिष्ठा और स्थायित्व बनाए रखने के लिए आवश्यक है.
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान में बिजनेस करना हो तो कितनी लगेगी वीजा फीस, काबुल में भारतीय दूतावास खुलने से क्या-क्या होगा फायदा?
Source: IOCL























