गांधी जी को कौन कहता था मिकी माउस, किस वजह से दिया गया था यह नाम?
गांधी जी के गंभीर स्वभाव और जीवन के बारे में हर कोई जानता है लेकिन ऐसे बेहद कम लोग हैं जो उनके जीवन के रोमांचक किस्सों को भी जानते हैं. तो आइए आपको बताते हैं कि गांधी जी को कौन बुलाता था मिकी माउस.

जब भी हम भारत की आजादी को याद करते हैं तो इस दौरान एक नाम सभी की जुबान पे बिना सोचे ही आ जाता है और वो नाम है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का. मोहन दस करमचंद गांधी से लेकर महात्मा गांधी का सफर तय करने वाले गांधी जी का जीवन सभी के लिए एक प्रेरणा रहा है. उनके इसी जीवन के कुछ ऐसे किस्से अनकहे और अनसुने हैं जो बेहद मजेदार हैं. वो किस्से जो शायद हर आम इंसान के जीवन में होते हैं दोस्तो के साथ परिवार के साथ. तो आइए आज हम आपको बताते हैं ऐसी ही एक घंटा के बारे में जिसके बाद गांधीजी को मोस्ट फेमस कार्टून मिकी माउस का नाम मिल गया और कौन था ये इंसान जिसने बेहद गंभीर दिखने वाले महात्मा गांधी को ये प्यार निकनेम दे दिया.
बापू को कौन बुलाता था मिकी
गांधी जी को महात्मा गांधी से लेकर बापू कई नामों से बुलाया जाता है. लेकिन मिकी माउस जैसा प्यारा नाम उन्हें किसने दिया? इस सवाल का जवाब है सरोजिनी नायडू. जी हां वही सरोजिनी नायडू जिन्हें भारत कोकिला के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, सरोजिनी नायडू और महात्मा गांधी की दोस्ती काफी फेमस है. इसी दौरान जब भी सरोजिनी नायडू महात्मा गांधी को पत्र लिखती थी तो उन्हें मिकी माउस के निकनेम से ही बुलाया करती थी.
गांधी को क्यों मिला मिकी माउस नाम
गांधी जी जैसे गंभीर और कड़क डिसिप्लिन वाले इंसान का ये नाम सुनकर कोई भी हैरान हो जाए और शायद एक पल के लिए यकीन न करे कि ये उनका नाम हो सकता है. लेकिन सरोजिनी नायडू ने तो महात्मा गांधी को ये अतरंगी उपाधि दे डाली. दरअसल, सरोजिनी कहती थी कि उन्हें गांधी जी के बड़े और चौड़े कान एकदम मिकी माउस जैसे दिखाई देते हैं, जिसके चलते वह बापू को मिकी माउस कहकर बुलाती थी. इतना ही नहीं गांधी जी भी सरोजिनी को अपने पत्रों में डियर बुलबुल, डियर मीराबाई के अलावा अम्माजान और मदर कहकर भी बुलाते थे.
गांधी जी और सरोजिनी नायडू की दोस्ती
गांधी जी और सरोजिनी नायडू की दोस्ती काफी मशहूर है. दरअसल, ये उस समय की बात है जब गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर गांधीजी इंग्लैंड आए थे. उस समय सरोजिनी भी वहां मौजूद थी, जो उनसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक थी. ऐसे में गांधीजी को लेने न जाने पर सरोजिनी उनसे मिलने उनके घर ही पहुंच गई. वहां गांधीजी के घर की हालत देख वह हा पड़ी और यही से दोनों की मित्रता की शुरुआत हुई. जिसके बाद तकरीबन अगले 30 सालों तक दोनों एक दूसरे के सहयोगी के रूप में साथ रहें.
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