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कांग्रेस और बीजेपी को क्यों माननी पड़ती है आलाकमान की बात, क्या उनके बिना नहीं चल सकती राज्य सरकार?

कर्नाटक में सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार की खींचतान ने कांग्रेस की सबसे मजबूत सरकार को भी संकट में डाल दिया है. इसी क्रम में जान लेते हैं कि आखिर पार्टियों को आलाकमान की बात मानना जरूरी क्यों है.

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच जो टकराव खुलकर सामने आ गया है, उसने कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ को भी अस्थिर कर दिया है. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब फैसला बेंगलुरू की राजनीतिक देहरी पर नहीं, बल्कि दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेतृत्व की मेज पर होना तय माना जा रहा है. इस तनावपूर्ण पृष्ठभूमि में एक बड़ा सवाल फिर सिर उठाता है आखिर कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों पार्टियों को हर बार आलाकमान के इशारे पर ही क्यों चलना पड़ता है? क्या राज्य की सरकारें अपने बूते फैसले नहीं ले सकतीं हैं?

अंतिम मुहर आलाकमान की

किसी भी राष्ट्रीय पार्टी में एक इनविजिबल थ्रेड चलता है- सत्ता, नियंत्रण और एकरूपता का. बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों मानती हैं कि अगर हर राज्य अपनी मर्जी से फैसले लेने लगे तो पार्टी की राष्ट्रीय पहचान बिखर जाएगी. इसलिए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री पद तक, टिकट वितरण से लेकर रणनीति तय करने तक, अंतिम मुहर आलाकमान की होती है. मुख्यमंत्री लोकप्रिय हों, अनुभवी हों या पुराने खिलाड़ी, लेकिन उनकी कुर्सी उन्हीं की मानी जाती है जिसकी सिफारिश दिल्ली से आई हो.

क्या अपने दम पर नहीं चल सकतीं सरकारें

सवाल यह भी है कि क्या राज्य सरकार अपने दम पर नहीं चल सकती? तकनीकी तौर पर बिल्कुल चल सकती है. संविधान उसे पूरा अधिकार देता है, लेकिन राजनीति संविधान से ज्यादा समीकरणों पर चलती है. बड़े नेता जानते हैं कि यदि उनके हाथ में नियंत्रण नहीं रहा तो पार्टी कई टुकड़ों में बंट सकती है. कांग्रेस इसका दर्द कई बार भोग चुकी है, 1970 से लेकर अलग-अलग राज्यों में बगावत, टूट और दल-बदल ने पार्टी को कमजोर किया. उसी अनुभव ने उन्हें हाईकमान की संस्कृति अपनाने पर मजबूर कर दिया.

बीजेपी में कैसे होता है फैसला

बीजेपी की संरचना थोड़ी अलग है. यहां हाईकमान का मतलब सिर्फ प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष नहीं, बल्कि संगठन और RSS का संयुक्त निर्णय होता है. चाहे मुख्यमंत्री कितना भी ताकतवर क्यों न हो, जैसे योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान या वसुंधरा राजे, लेकिन अंतिम फैसला केंद्र ही करता है. वजह साफ है- एक ही लाइन में पार्टी को रखना, किसी भी राज्य नेता को इतना शक्तिशाली न होने देना कि वह केंद्र को चुनौती दे सके, और राजनीति की दिशा पर राष्ट्रीय नेतृत्व का पूरा नियंत्रण बनाए रखना.

क्या है जमीनी सच्चाई

लेकिन क्या यह मॉडल हमेशा सफल होता है? जरूरी नहीं है. कई बार राज्य नेता जमीन की सच्चाई ज्यादा समझते हैं, जनता का मूड पहचानते हैं और स्थानीय मुद्दों पर गहरी पकड़ रखते हैं. जब हाईकमान अपनी पसंद थोपता है, तब असंतोष बढ़ता है और चुनावी नतीजों पर भी असर पड़ता है. राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम पायलट, कर्नाटक में येदियुरप्पा की नाराजगी, मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत- यह सब हाईकमान मॉडल के टकराव के उदाहरण हैं.

राजनीति का धागा आलाकमान के हाथ में

फिर भी दोनों पार्टियां इसे छोड़ना नहीं चाहतीं हैं. राष्ट्रीय चुनाव, राष्ट्रव्यापी ब्रांडिंग, केंद्रीकृत रणनीति और देशभर में एक जैसी राजनीतिक लाइन- ये सब तभी संभव होता है जब नियंत्रण ऊपर हो. राज्य सरकारें सिर्फ प्रशासनिक इकाइयां नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति को चलाने वाला एक विशाल नेटवर्क बन जाती हैं, जिसका धागा आखिर में जाकर आलाकमान के हाथ में ही बंधा होता है.

इसलिए जवाब साफ है कि राज्य सरकारें अपने दम पर चल सकती हैं, लेकिन पार्टी नहीं चाहतीं कि वे पूरी तरह स्वतंत्र चलें, क्योंकि भारतीय राजनीति में असली शक्ति दिल्ली में बैठी उस टेबल के पास होती है जहां अंतिम फैसला लिया जाता है.

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About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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