जब दुश्मन कांप उठे, 13 JAK RIF और 'ये दिल मांगे मोर' की कहानी
13 JAK RIF और कैप्टन विक्रम बत्रा की शौर्यगाथा कारगिल युद्ध की सबसे गौरवपूर्ण कहानियों में से एक है. "ये दिल मांगे मोर" की गूंज आज भी भारतीय सेना की वीरता की पहचान बनी हुई है.

भारतीय सेना की हर रेजिमेंट की एक अलग पहचान होती है, लेकिन जब बात 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स (13 JAK RIF) की होती है, तो सबसे पहले एक नाम सामने आता है- कैप्टन विक्रम बत्रा. कारगिल युद्ध में "ये दिल मांगे मोर" जैसी गर्जना करने वाले इस जांबाज ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और 13 JAK RIF को वो पहचान दिलाई जो 'ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेव' कहलाने के लायक थी.
13 JAK RIF भारतीय सेना की जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स रेजिमेंट की एक बटालियन है. इसका इतिहास रजवाड़ों के जमाने से जुड़ा हुआ है, जब महाराजा गुलाब सिंह ने 1820 में जम्मू में इसकी नींव रखी थी. तब इसे जम्मू-कश्मीर स्टेट फोर्स के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद जब जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना, तब इस रेजिमेंट को भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया.
कारगिल युद्ध में दिखाया असली दम
1999 का कारगिल युद्ध 13 JAK RIF के लिए एक इम्तिहान से कम नहीं था. बटालियन ने द्रास और मुश्कोह घाटी जैसे दुर्गम इलाकों में दुश्मनों को धूल चटा दी. इन्हीं मिशनों के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा ने बंकरों पर हमला बोलते हुए कई चोटियां दुश्मनों से वापस लीं. इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
यही नहीं, 13 JAK RIF को कारगिल में किए गए पराक्रम के लिए 'DRAS' और 'MUSHKOH' के बैटल ऑनर, 'KARGIL' का थिएटर ऑनर, और 'BRAVEST OF THE BRAVE' की उपाधि मिली. इस बटालियन को 2 परम वीर चक्र, 8 वीर चक्र, 16 सेना मेडल और कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया.
विक्रम बत्रा: एक नाम, जो अमर हो गया
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा सिर्फ एक फौजी नहीं थे, वो आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर दिल में देशभक्ति हो, तो दुश्मन कोई भी हो, जीत निश्चित है. 13 JAK RIF और विक्रम बत्रा की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि भारत की सरहदें सिर्फ जवानों के खून से नहीं, बल्कि उनके हौसले से महफूज हैं. जब-जब देश पर संकट आएगा, 13 JAK RIF जैसे रणबांकुरे आगे खड़े मिलेंगे अपनी जान की बाजी लगाकर तिरंगे को ऊंचा रखने के लिए.
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Source: IOCL






















