Bridge Construction: गहरे पानी में कैसे डाली जाती है ब्रिज की नींव? पूरी प्रक्रिया जान कर चौंक जाएंगे आप
Bridge Construction: आप सभी ने पानी के ऊपर बने हुए बड़े-बड़े पुल जरूर देखे होंगे. क्या आप जानते हैं कि बहती नदी के बीचों-बीच इन पुलों की नींव कैसे रखी जाती है? आइए जानते हैं.

Bridge Construction: पुल आधुनिक बुनियादी ढांचे की जीवनरेखा हैं. यह शहरों, राज्यों और यहां तक कि देशों को भी जोड़ते हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि गहरे पानी में इन पुल की नींव कैसे रखी जाती है. तेज बहती नदी के बीचों-बीच खंबे बनाना काफी खतरनाक इंजीनियरिंग कार्यों में से एक है. इसके लिए सटीकता, साहस और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है. एक छोटी सी गलती महीनों की मेहनत पर पानी फेर सकती है.
नदी का सर्वेक्षण और नींव का डिजाइन
निर्माण के शुरू होने से पहले इंजीनियर नदी का अच्छे से सर्वेक्षण करते हैं. वे पानी की गहराई, मिट्टी की मजबूती और धारा की गति को मापते हैं. इन सभी चीजों के आधार पर पुल का डिजाइन तैयार किया जाता है, जिसमें इस बात को भी तय किया जाता है कि कितने खभों की जरूरत होगी. सर्वेक्षण में सभी चुनौतियां जैसे कि तलछठ जमाव या फिर नदी तल में छिपी बाधाओं की भी पहचान की जाती है.
गहरे पानी के निर्माण में कॉफरडैम की भूमिका
नदियों में पुलों की नींव बनाने मे कॉफरडैम की एक बड़ी भूमिका होती है. यह एक अस्थाई जलरोधी संरचना है जो निर्माण के लिए एक शुष्क क्षेत्र को बनाती है. कॉफरडैम शीट पाइल, यानी 10 से 20 मीटर लंबी एक स्टील शीट का इस्तेमाल करके बनाए जाते हैं और इन्हें हाइड्रोलिक हथौड़ों या फिर वाइब्रेटर का इस्तेमाल करके नदी तल में गाड़ा जाता है. यह शीट आपस में जुड़कर एक गोल या फिर चकोर दीवार बनती हैं जिससे पानी काम करने वाली जगह में प्रवेश नहीं कर पाता.
पानी निकलना और स्थल तैयार करना
जब कॉफरडैम स्थापित हो जाता है उसके बाद बड़े पंप उस जगह से पानी को निकाल देते हैं. फिर पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए पानी को सुरक्षित रूप से नदी में वापस कर दिया जाता है. मजदूर सीढ़ियों या फिर क्रेन का इस्तेमाल करके शुष्क जगह पर उतरते हैं और रेत, मिट्टी और पत्थरों को हटाना शुरू करते हैं. यह पूरी प्रक्रिया काफी ज्यादा जरूरी है क्योंकि अस्थिर मिट्टी के लिए पाइल फाऊंडेशन की जरूरत हो सकती है. क्योंकि यहां पुल के भार को सहारा देने के लिए नदी तल में 20 से 25 मीटर तक लंबे लोहे के पाइप ठोंके जाते हैं.
इसके बाद नींव बनाने के लिए कंक्रीट डाली जाती है. हवा के बुलबुले हटाने और संरचना को मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए वाइब्रेटर का इस्तेमाल किया जाता है. यह पूरा काम काफी ज्यादा जोखिम भरा है क्योंकि कॉफरडैम मैं कोई भी रिसाव या बढ़ या भूकंप जैसी पर्यावरणीय घटना इसके ढहने की वजह बन सकती है.
इसके बाद इंजीनियर कैसन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. यह जलरोधी बक्से होते हैं जिन्हे नदी तल में डुबाया जाता है. इसे अंदर काम करने वालों के लिए एक सूखा क्षेत्र बन जाता है. खुले कैसन में नीचे की तरफ एक छेद होता है जो उन्हें डूबने देता है और जैसे ही संरचना स्थिर होती है मजदूर अंदर खुदाई करते हैं. दूसरी तरफ न्यूमेटिक कैसन पानी को बाहर रखने के लिए कंप्रेस्ड एयर का इस्तेमाल करता है. मजदूर एक एयरलॉक के जरिए से दबाव युक्त कक्ष में प्रवेश करते हैं.
Source: IOCL
























