10वीं पास चपरासी की सोच ने बदल दी किस्मत! इंफोसिस के दादासाहेब भगत बने देशभर में मिसाल
महाराष्ट्र के बीड़ जिले के छोटे से गांव से आने वाले दादासाहेब भगत एक किसान के परिवार में जन्मे. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और जज्बे से एक ऐसा सफर तय किया है जो आज पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गया है.

अक्सर यह माना जाता है कि हम सभी के सपने सच होते हैं. अगर हमारे पास उन्हें पूरा करने का साहस हो तो. हालांकि इन शब्दों पर बहुत ही कम लोग अमल कर पाते हैं. लेकिन महाराष्ट्र के बीड़ जिले के छोटे से गांव से आने वाले दादासाहेब भगत इन शब्दों को पूरा किया है. एक किसान के परिवार में जन्मे दादासाहेब, जहां दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल था. उन्होंने अपनी मेहनत और जज्बे से एक ऐसा सफर तय किया है जो आज पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गया है. ऐसे में चलिए तो आज हम आपको बताते हैं की 10वीं पास इंफोसिस के चपरासी दादासाहेब की सोच ने उनकी किस्मत कैसे बदल दी.
चपरासी से शुरू हुआ था दादा साहेब का सफर
महाराष्ट्र के रहने वाले दादासाहेब ने दसवीं तक पढ़ाई की और फिर पुणे काम की तलाश में पहुंचे गए थे. यहां उन्होंने 4000 रुपये महीने से छोटी-छोटी नौकरियों की. इसके बाद उन्हें इंफोसिस में ऑफिस बॉय की नौकरी मिली, जहां उनकी सैलरी 9000 रुपये थी. इंफोसिस में उनका काम सुबह जल्दी आना, डेस्क की सफाई करना और इंजीनियरों के लिए चाय-पानी पहुंचना था. लेकिन इंफोसिस का यह एक्सपीरियंस दादासाहेब की जिंदगी बदलने वाला साबित हुआ. दरअसल इंफोसिस में काम करते हुए दादासाहेब ने डिजिटल नॉलेज की तरफ ध्यान दिया. उन्होंने इंजीनियरों से सिखना शुरू किया और यूट्यूब व ट्यूटोरियल की मदद से ग्राफिक डिजाइन में खुद को तैयार किया. वहीं दादासाहेब इंफोसिस में दिन में नौकरी और रात में ग्राफिक डिजाइन सीखने के बाद डिजाइनर बन गए.
डिजाइन टेम्पलेट को बनाया भारत का कैनवा
इंफोसिस से ग्राफिक डिजाइनिंग सीखने के बाद दादासाहेब ने कैनवा की तरह ही भारत का अपना पहला डिजाइन प्लेटफॉर्म डिजाइन टेम्पलेट लॉन्च किया. यह प्लेटफार्म कैनवा की तरह ही पोस्टर, प्रेजेंटेशन और डिजिटल कंटेंट बनाने का मौका देता है. वहीं यह प्लेटफॉर्म बनाने से पहले दादासाहेब को कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा था. कोविड के दौरान पुणे का इंफोसिस ऑफिस बंद होने पर दादासाहेब को गांव लौटना पड़ा था, लेकिन उस समय भी दादासाहेब ने हार नहीं मानी थी और गांव आकर भी बहुत कम चीजों से अपनी कंपनी को आगे बढ़ाया था.
पीएम मोदी ने भी किया था दादासाहेब जिक्र
दादासाहेब की मेहनत ने प्रधानमंत्री मोदी का भी ध्यान खींचा था. पीएम मोदी ने मेक इन इंडिया के तहत दादासाहेब को आत्मनिर्भर उद्यमिता का आदर्श बताया था. इसके बाद दादासाहेब शार्क टैंक इंडिया भी पहुंचे, यहां उन्होंने शार्क अमन गुप्ता के साथ एक करोड़ रुपये में 10 प्रतिशत इक्विटी का सौदा किया. जिसके बाद आज उनकी कंपनी हजारों डिजाइनर को प्लेटफार्म देकर भारत को डिजिटल डिजाइन में आत्मनिर्भर बना रही है.
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