किस कबीले से ताल्लुक रखते थे हजरत मोहम्मद साहब...जानिए कहां हुआ था उनका जन्म
Hazrat Muhammad Saheb Clan: मुस्लिम समाज हर साल हजरत मोहम्मद साहब का जन्मदिन मनाते हैं. चलिए इस बार में विस्तार से जानें कि वे आखिर किस कबीले में जन्मे थे और उनका जन्म आखिर कहां हुआ था.

मुसलमानों के लिए ईद मिलाद-उन-नबी का त्योहार बेहद खास होता है. इसे ईद-ए-मिलाद भी कहा जाता है, जो कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को यह पर्व आता है. इस बार यह पर्व अगले महीने मनाया जाएगा. इस मौके पर मुस्लिम लोग बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ जश्न मनाते हैं.
मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है, कुरान की तिलावत की जाती है और पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद किया जाता है. चलिए इसी क्रम में यह भी जान लेते हैं कि आखिर पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब किस कबीले से ताल्लुक रखते थे और उनका जन्म कहां हुआ था.
ईद मिलाद-उन-नबी का इतिहास व मोहम्मद साहब का जन्म
ईद मिलाद-उन-नबी जिसे पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था. ईद मिलाद-उन-नबी को लेकर सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच थोड़ा फर्क देखने को मिलता है. सुन्नी समुदाय इसे इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मानता है, जबकि शिया समुदाय इसे 17वें दिन मनाता है. यही वजह है कि यह पर्व अलग-अलग दिनों में भी मनाया जाता है.
किस कबीले से ताल्लुक रखते थे हजरत मोहम्मद साहब
कबीले की बात की जाए तो हजरत मोहम्मद साहब का जन्म मक्का की एक बहुत मशहूर और ताकतवर जनजाति कुरैश में हुआ था. कुरैश उस समय अरब की सबसे बड़ी और प्रभावशाली जनजातियों में गिनी जाती थी. यह जनजाति खासतौर पर अपने व्यापार और समाज में उच्च दर्जे के लिए जानी जाती थी.
कुरैश जनजाति के अंदर कई उप-कबीले हुआ करते थे. उन्हीं में से एक था बनू हाशिम कबीला, जिसमें हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था. बनू हाशिम कुरैश का ही एक सम्मानित और प्रतिष्ठित हिस्सा था. इस कबीले के लोग मक्का में अहम पदों पर रहते थे और समाज में उनका बड़ा मान-सम्मान होता था.
खुशी और श्रद्धा दोनों का दिन
यह दिन सिर्फ पैगंबर के जन्म का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि उनकी शिक्षाओं और जीवन को याद करने का भी मौका है. खास बात यह है कि इस दिन को उनकी मृत्यु से भी जोड़ा जाता है, यानी यह खुशी और श्रद्धा दोनों भावनाओं का प्रतीक माना जाता है.
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Source: IOCL























