Dharmendra Death: हिंदू-मुस्लिम-सिख और ईसाई... किस धर्म के लोग कैसे करते हैं अंतिम संस्कार? देखें पूरी डिटेल
Dharmendra Death News: अलग-अलग धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग-अलग नियम बने हुए हैं. चलिए आपको बताते हैं कि किस धर्म में किस हिसाब से अंतिम संस्कार होता है.

Funeral Rituals: एक्टर धर्मेंद्र की अब दुनिया में नहीं रहे. 24 नवंबर को उन्होंने अंतिम सांस ली. चलिए आपको बताते हैं कि उनका अंतिम संस्कार किस रीति-रिवाज के साथ किया जाएगा. देश के अंदर स्मृति सभा और अंतिम संस्कार की परंपराएं सदियों पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताओं से निकली हैं. ये रस्में न सिर्फ मरे हुए इंसान आत्मा के सम्मान के लिए होती हैं, बल्कि परिवार को सांत्वना देती हैं और समुदाय को एकजुट भी करती हैं. यही वजह है कि ये रीति-रिवाज एक व्यक्ति के जीवन का सम्मान करने के साथ-साथ उन मूल्यों को भी मजबूत करते हैं जो परिवार और समाज को एक-दूसरे से जोड़ते हैं.
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार
हिंदू परंपरा में अंत्येष्टि आत्मा की भौतिक संसार से परलोक की ओर यात्रा का प्रतीक मानी जाती है. यहां दाह संस्कार होता है, जिसे शरीर से आत्मा की मुक्ति का संकेत माना जाता है. इसके बाद श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मा को शांति और पोषण देना होता है. ये कर्म मृत्यु के तुरंत बाद ही नहीं, बल्कि बाद के दिनों और सालों में भी किए जाते हैं. परिवार एक साथ बैठकर दिवंगत व्यक्ति की स्मृति को सम्मान देते हैं और अपने कर्तव्यों को पूरा करते हैं.
भारत में मुस्लिम अंतिम संस्कार
मुस्लिम परंपरा में गुस्ल और कफन अंतिम संस्कार की तैयारी के सबसे महत्वपूर्ण चरण हैं. गुस्ल में परिवार या विश्वसनीय लोग (उसी लिंग के) मिलकर शरीर को सम्मानपूर्वक धोते हैं. इसके बाद साधारण सफेद कपड़े का कफन पहनाया जाता है, जो समानता और विनम्रता का प्रतीक है. जनाजा की नमाज अल्लाह से माफी और शांति की दुआ के लिए पढ़ी जाती है. दफन आम तौर पर 24 घंटे के भीतर कर दिया जाता है.
सिख धर्म में अंतिम संस्कार
सिखों में अंतिम संस्कार आत्मा के परमात्मा से मिलन का शांत और आध्यात्मिक मार्ग माना जाता है. अधिकतर सिख परिवार दाह संस्कार ही करते हैं. परिवार और संगत मिलकर कीर्तन और अरदास पढ़ते हैं.
भारत में ईसाई अंतिम संस्कार
ईसाई परंपराओं में परिवार और मित्र चर्च में एकत्र होकर प्रार्थना सभा में शामिल होते हैं. स्मृति संदेशों के माध्यम से दिवंगत व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है और परिवार को सांत्वना मिलती है. इसके बाद पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान ले जाकर दफन किया जाता है, जो परमेश्वर की शरण औ शांति का प्रतीक है. सातवें दिन, सालगिरह या किसी विशेष अवसर पर होने वाली स्मृति सभाएं परिवार को यादें साझा करने और दिवंगत की विरासत को संजोने का अवसर देती हैं.
इसे भी पढ़ें- मां के दूध में यूरेनियम, खून में क्रोमियम और खाने में पेस्टिसाइड... तीनों मिलकर कैसे बन रहे इंसानों की मौत का कारण?
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL
























