मां के दूध में यूरेनियम, खून में क्रोमियम और खाने में पेस्टिसाइड... तीनों मिलकर कैसे बन रहे इंसानों की मौत का कारण?
मां के दूध से लेकर खून और खाने तक जब तीनों ही जगह जहर घुल जाए, तो इंसान आखिर किस पर भरोसा करे? क्या हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहां जीवन देने वाली चीजें ही मौत की वजह बन जाएंगी.

जरा कल्पना कीजिए… एक नवजात बच्चा जिसे दुनिया से पहला तोहफा अपनी मां की गोद और उसका दूध मिलता है. वही दूध अगर धीमा जहर बन जाए, तो क्या होगा? एक गांव की प्यास बुझाने वाला पानी अगर खून में घुल कर जहरीला क्रोमियम बना जाए, तो लोग कैसे जिएंगे? और खेतों को बचाने वाली दवा अगर इंसानों की जान लेने लगे, तो खतरा कितना बड़ा है? तीन अलग-अलग जगहों की तीन खतरनाक सच्चाइयां अब एक ही सवाल खड़ा कर रही हैं कि आखिर यह उत्तर भारत में हो क्या रहा है? क्या इंसान धीरे-धीरे खुद को ही मारने पर तुला हुआ है?
नवजातों के लिए मौत की घंटी
मां का दूध हमेशा से बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित, सबसे शुद्ध और सबसे पोषक माना जाता है, लेकिन हाल ही में सामने आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने इस धारणा को गहरा झटका दिया है. बिहार के कई जिलों में हुए एक सर्वे ने बताया है कि यहां की महिलाओं के दूध में यूरेनियम की मौजूदगी पाई गई है. यह सिर्फ एक वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं, बल्कि उन हजारों बच्चों के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है, जो अपनी जिंदगी की शुरुआत इसी दूध से करते हैं.
कितना खतरनाक है यूरेनियम?
यूरेनियम स्वभाव से रेडियोधर्मी और भारी धातु है. इसकी थोड़ी सी मात्रा भी शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी मानी जाती है. जब यह मां के दूध में घुल जाता है, तो यह सीधे उन बच्चों तक पहुंचता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर होती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह धीमा जहर है, जो बाहरी चोट की तरह तुरंत असर नहीं दिखाता है, बल्कि शरीर में चुपचाप घर करता रहता है. धीरे-धीरे यह किडनी, दिमाग और हड्डियों को प्रभावित करता है. सवाल यह है कि यह यूरेनियम वहां पहुंचा कैसे? इसका बड़ा कारण भूजल प्रदूषण माना जा रहा है, जहां प्राकृतिक और औद्योगिक गतिविधियों की वजह से जमीन के भीतर मौजूद पानी दूषित हो चुका है.
खून में कैसे आया क्रोमियम?
इधर उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात की तस्वीर भी कुछ कम डरावनी नहीं है. रनिया औद्योगिक क्षेत्र के करीब बसे खानचंद्रपुर गांव में सौ से अधिक ग्रामीणों के खून में क्रोमियम की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक पाई गई है. यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग द्वारा एनजीटी के निर्देश पर लगाए गए शिविरों में हुआ. कई साल पहले इसी इलाके में करीब 90 हजार मीट्रिक टन क्रोमियम कचरा डंप किया गया था. धीरे-धीरे यह कचरा जमीन में घुलता गया और भूजल को जहरीला बनाता गया.
गांव में लोगों ने पहले पानी का रंग बदलते देखा, फिर बीमारियां बढ़ती गईं. किसी को पेट में लगातार दर्द, तो किसी को त्वचा पर चकत्ते और घाव हुए. कई बच्चों की भूख कम हो गई, कई बुजुर्ग हमेशा थकान की शिकायत करने लगे. हालांकि 2024 में यहां से कचरा हटाया जा चुका है, लेकिन क्रोमियम के प्रभाव भूजल में अब भी मौजूद हैं.
शरीर को कितना नुकसान पहुंचाता है क्रोमियम
क्रोमियम का असर शरीर में ऐसा है कि यह शरीर में पहुंचकर न सिर्फ किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि कैंसर का भी खतरा बढ़ाता है. यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब पूरा गांव उसी पानी पर निर्भर हो, जो उनके खून को धीरे-धीरे जहर में बदल रहा हो.
खाने में कैसे पहुंचा पेस्टिसाइड
वहीं तीसरी ओर, देश का उत्तरी क्षेत्र कीटनाशकों के कारण मौत से जूझ रहा है. एनसीआरबी की एक रिपोर्ट बताती है कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में 2023 में खाने में कीटनाशकों के सेवन से 1,197 लोगों की मौत हुई. यह आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं, बल्कि उन परिवारों की कहानियां हैं जिनका जीवन एक पल में खत्म हो गया. हरियाणा में 570 मौतें, पंजाब में 549 और हिमाचल में 78 मौतें दर्ज हुईं. राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 7,743 तक पहुंचती है. यह वह सेहत का संकट है जो खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों से शुरू होता है और धीरे-धीरे भोजन, पानी, मिट्टी सबको अपने कब्जे में ले लेता है.
पीढ़ियों को जन्म से पहले ही बना रहा बीमार
जब मां का दूध यूरेनियम से भर जाए, जब खून में क्रोमियम बहने लगे और जब खाने में पेस्टिसाइड उतर आए, तो यह तीनों मिलकर मनुष्यों के जीवन के लिए एक घातक त्रिकोण बन जाते हैं. इसे ट्रिपल टॉक्सिक थ्रेट कहा जाता है. यानी तीन स्रोतों से फैलता ऐसा जहर जो भविष्य की पीढ़ियों को जन्म से पहले ही बीमार बना सकता है. देश में औद्योगिक कचरा प्रबंधन, भूजल सुरक्षा और कृषि रसायनों की निगरानी की सबसे बड़ी कमी इसी संकट का कारण बन रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि अब यह सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य का मुद्दा है.
सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर इसे यहीं नहीं रोका गया तो इन जहरीले तत्वों का असर सिर्फ आज की पीढ़ी पर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी रहेगा. यूरेनियम और क्रोमियम जैसे तत्व जिन इलाकों की मिट्टी और पानी को पकड़ लेते हैं, उन्हें साफ करने में सालों नहीं दशकों लग जाते हैं.
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Source: IOCL
























