Army Power During War: क्या जंग होते ही किसी की भी संपत्ति को अपने कब्जे में ले सकती है सेना, कौन-कौन सी मिलती है पावर?
Army Power During War: जंग या आपात स्थिति में सेना को नागरिक संपत्तियों के उपयोग का अधिकार जरूर है, लेकिन वो पूरी तरह नियंत्रित और कानूनी सीमाओं में है. चलिए इस बारे में भी विस्तार से जानें.

Army Power During War: जब भी किसी देश में युद्ध या गंभीर आपात स्थिति आती है, तो सबसे पहले रक्षा बलों को तेजी से संसाधन जुटाने की जरूरत पड़ती है, चाहे वो जमीन हो, वाहन, इमारतें या कोई और चीज जो रक्षा काम में आए. ऐसे में अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि क्या सेना सीधे जाकर किसी की संपत्ति अपने कब्जे में ले सकती है? इसका जवाब है, हां, लेकिन कानूनी सीमाओं और मुआवजे के साथ.
भारत में क्या हैं नियम?
भारत में इसके लिए कई नियम और कानून मौजूद हैं. सबसे अहम है Defence of India Act और इसके अंतर्गत बने Defence of India Rules. ये कानून सरकार और सेना को आपातकाल या युद्ध जैसी स्थिति में नागरिक संपत्ति अस्थायी तौर पर इस्तेमाल करने का अधिकार देते हैं. मतलब अगर सेना को किसी इलाके में कैंप बनाना हो, गोला-बारूद रखना हो या किसी इमारत की जरूरत पड़े, तो वो उस संपत्ति को अस्थायी रूप से अपने कब्जे में ले सकती है.
किस नियम के तहत ले सकते हैं किसी की संपत्ति
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि सेना किसी की भी जमीन या घर बिना पूछे या मुआवजा दिए जब्त कर सकती है. कानून साफ कहता है कि मालिक को उचित मुआवजा देना अनिवार्य है. कब्जा सिर्फ उतने समय तक रह सकता है, जितनी देर तक युद्ध या आपात स्थिति बनी रहे. स्थिति सामान्य होते ही संपत्ति मालिक को वापस करनी होती है या स्थायी रूप से लेनी हो तो अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.
कब लागू हो सकता है AFSPA?
इसके अलावा कुछ इलाकों में लागू Armed Forces Special Powers Act- AFSPA भी सेना को अतिरिक्त शक्तियां देता है. अगर किसी क्षेत्र को डिस्टर्ब्ड एरिया घोषित किया गया है, तो वहां सेना को तलाशी लेने, संदिग्ध संपत्ति या भवन को सील या नष्ट करने तक की अनुमति होती है. हालांकि यह अधिकार सिर्फ उन इलाकों तक सीमित होता है जहां आतंकी गतिविधियां या आंतरिक हिंसा चल रही हो, न कि देश के हर हिस्से में.
किन परिस्थितियों में अदालत में दे सकते हैं चुनौती
कई बार युद्धकाल या राष्ट्रीय आपदा में सेना निजी वाहनों, ट्रकों, मशीनरी या खेतों तक का उपयोग कर सकती है, लेकिन हर ऐसे कदम के लिए सरकार को रिकॉर्ड और मुआवजे की व्यवस्था करनी पड़ती है. सेना के अधिकारी बिना लिखित आदेश या उचित कारण के किसी संपत्ति को अपने कब्जे में नहीं रख सकते हैं.
अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी संपत्ति को गलत तरीके से या बिना मुआवजा दिए लिया गया है, तो वह अदालत में चुनौती दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने कई बार कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन जरूरी है.
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Source: IOCL
























