बूढ़े माता-पिता के साथ बच्चे कर रहे दुर्व्यवहार तो कोर्ट छीन सकता है संपत्ति का अधिकार, बुजुर्ग जान लें अपने काम की बात
समाज में चर्चा का विषय बना एक सवाल ये है कि क्या अगर बच्चे दुर्व्यवहार करें, तो माता-पिता उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं? जवाब है हां, बिल्कुल कर सकते हैं.

अगर समाज ने मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया है, तो क्या वही भगवान अपने ही घर में अपमान का जीवन जीने को मजबूर हों? सोचिए, वो मां-बाप जिन्होंने अपने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया, अगर वही बच्चे बुढ़ापे में उन्हें मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान करने लगें तो? भारत में अब कानून ऐसे बुजुर्ग माता-पिता के साथ है. सोशल मीडिया और समाज में चर्चा का विषय बना एक सवाल ये है कि क्या अगर बच्चे दुर्व्यवहार करें, तो माता-पिता उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं? जवाब है हां, बिल्कुल कर सकते हैं. और ये अधिकार उन्हें भारत के कानून ने दिया है.
आपको बता दें कि भारत में 60 साल या उससे ऊपर वाले लोगों को वरिष्ठ नागरिक माना जाता है. तो वहीं 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को अति वरिष्ठ नागरिक माना जाता है. भारत में सीनियर सिटिजन को लेकर मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 बनाया गया है. इसके अलावा सरकार ने नेशनल पॉलिसी फॉर ओल्डर पर्सन भी बनाई है जो भारत में बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करती है. इन दोनों पॉलिसी में सीनियर सिटीजन की सभी जरूरतें पूरी की जाती हैं. इनमें फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, भरण-पोषण के लिए खर्च और सभी सुरक्षाओं को कवर किया गया है.
संपत्ति छीनने का मिलता है कानूनी हक
भारत में बुजुर्गों की देखभाल को कानूनी तौर पर सुरक्षित करने के लिए एक बेहद अहम कानून लागू किया गया है, जिसका नाम है “मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिज़न्स एक्ट, 2007.” इस कानून का मकसद यही है कि कोई भी बुजुर्ग अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर तन्हा और बेसहारा महसूस न करे. अगर कोई बुज़ुर्ग खुद की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है चाहे वो आर्थिक रूप से कमजोर हों या शारीरिक रूप से असहाय तो उनकी देखभाल करना उनके परिवार वालों की जिम्मेदारी बनती है. अगर वारिस इन सब जिम्मेदारियों से इनकार करते हैं तो कोर्ट उनसे संपत्ति का अधिकार छीन सकता है.
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इस कानून के तहत अदालत दे सकती है फैसला
अगर कोई बुजुर्ग नागरिक, जिसने अपनी मेहनत से अर्जित की गई संपत्ति अपने बच्चों या वारिसों को इस भरोसे पर दे दी हो कि वो उनकी देखभाल करेंगे, लेकिन बाद में वही बच्चे या उत्तराधिकारी उनकी सेवा करना तो दूर, उन्हें नजरअंदाज करने लगें या गलत बर्ताव करने लगें तो ऐसे में अब बुजुर्ग लाचार नहीं हैं. उनके पास कानूनन रास्ता है अपनी दी हुई संपत्ति को वापस पाने का.
मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट 2007 के मुताबिक, अगर कोई बुजुर्ग यह महसूस करता है कि उसे धोखे में रखकर या सेवा की शर्त पर दी गई संपत्ति अब बेइज्जती या अनदेखी का कारण बन रही है, तो वह इस स्थिति को बदल सकता है. इसके लिए उन्हें किसी बड़े कोर्ट में नहीं, बल्कि सीनियर सिटिजन ट्राइब्यूनल यानी विशेष न्यायाधिकरण में याचिका दाखिल करनी होती है. इसके बाद कोर्ट संपत्ति को वापस देने के आदेश दे सकता है.
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