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TECH EXPLAINED: AI और सोशल मीडिया बना रहे हैं दिमाग को ब्रेन रॉट का शिकार! जानिए कैसे धीरे-धीरे खत्म हो रही है सोचने की ताकत

Brain Rot: पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल की प्रोफेसर शिरी मेलुमैड ने एक दिलचस्प प्रयोग किया. उन्होंने 250 लोगों से कहा कि वे किसी दोस्त को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए सलाह लिखें.

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AI Making Brain Rot: पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल की प्रोफेसर शिरी मेलुमैड ने एक दिलचस्प प्रयोग किया. उन्होंने 250 लोगों से कहा कि वे किसी दोस्त को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए सलाह लिखें. कुछ लोगों को पारंपरिक Google सर्च की अनुमति दी गई जबकि कुछ को केवल एआई द्वारा तैयार किए गए सारांशों का इस्तेमाल करने दिया गया.

नतीजा चौंकाने वाला था एआई का इस्तेमाल करने वाले प्रतिभागियों ने बहुत साधारण और उथली सलाह दी जैसे स्वस्थ खाओ, पानी पीते रहो, अच्छी नींद लो. वहीं, पारंपरिक सर्च करने वालों ने गहराई से सोचा और शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के बीच संतुलन पर फोकस किया. मेलुमैड का कहना था कि “मैं सच कहूं तो डरी हुई हूं. खासकर युवाओं के लिए जो अब पारंपरिक सर्च करना ही नहीं जानते.”

ब्रेन रॉट क्या है?

द न्यूयॉर्क टाइम्म की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रेन रॉट शब्द अब डिजिटल युग की सच्चाई बन गया ह यह उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति लगातार कम गुणवत्ता वाली ऑनलाइन सामग्री से घिरा रहता है. 2024 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने Brain Rot को साल का शब्द घोषित किया था. इसका मतलब था कि TikTok और Instagram जैसी ऐप्स ने लोगों को छोटे, बिना सोच-विचार वाले वीडियो की लत लगा दी है जिससे दिमाग धीरे-धीरे सुन्न होता जा रहा है.

पढ़ाई और समझने की क्षमता पर असर

हाल ही में अमेरिका में बच्चों की रीडिंग और समझने की स्किल्स में भारी गिरावट दर्ज की गई. शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका सीधा संबंध एआई और सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन फ्रांसिस्को के डॉ. जेसन नागाटा द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया कि जो बच्चे रोजाना 3 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं उनकी मेमोरी, रीडिंग और शब्दावली में स्पष्ट गिरावट आई. हर अतिरिक्त घंटे की स्क्रॉलिंग उन्हें किताबों और नींद से दूर ले जा रही है.

एआई से लिखते वक्त दिमाग काम करना क्यों बंद कर देता है?

MIT की एक रिसर्च में 54 छात्रों को तीन समूहों में बांटा गया एक समूह ने ChatGPT से मदद ली, दूसरे ने Google सर्च, और तीसरे ने बिना किसी तकनीक के खुद लिखा.

नतीजे चौंकाने वाले थे ChatGPT इस्तेमाल करने वालों का ब्रेन एक्टिविटी लेवल सबसे कम था. और जब एक मिनट बाद उनसे पूछा गया कि वे अपने निबंध से कोई वाक्य याद कर सकते हैं या नहीं तो 83% छात्रों को एक भी लाइन याद नहीं थी. दूसरी ओर, जिन्होंने खुद लिखा या Google से खोज की उन्हें अपने लेख के कई हिस्से याद रहे.

MIT की शोधकर्ता नतालिया कोस्माइना का कहना था “अगर आप वो याद ही नहीं रख पा रहे जो आपने लिखा है तो क्या सच में आप उसे समझ भी रहे हैं?”

सोशल मीडिया का साइलेंट डैमेज

पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के कई राज्यों ने स्कूलों में मोबाइल फोन बैन करना शुरू कर दिया है. इसका कारण है कि TikTok और Instagram जैसी ऐप्स छात्रों का ध्यान भटका रही हैं. सोशल मीडिया पर बिताया गया हर घंटा बच्चों को पढ़ने, सोचने और परिवार के साथ समय बिताने से दूर कर रहा है.

क्या है समाधान?

विशेषज्ञों का कहना है कि तकनीक को पूरी तरह छोड़ना समाधान नहीं है बल्कि संतुलित इस्तेमाल ज़रूरी है. बच्चों के लिए स्क्रीन-फ्री ज़ोन तय करें, जैसे बेडरूम और डाइनिंग टेबल. सोशल मीडिया का इस्तेमाल सीमित समय में करें और उसे पढ़ाई या क्रिएटिविटी से जोड़ने की कोशिश करें. एआई का इस्तेमाल सहायक उपकरण के रूप में करें, न कि सोचने की जगह लेने के लिए.

मेलुमैड का कहना है कि एआई ने खोजने और समझने की प्रक्रिया को एक निष्क्रिय आदत में बदल दिया है. इसलिए, बेहतर होगा कि आप पहले खुद सोचें, लिखें और फिर ChatGPT या किसी एआई टूल की मदद से उसे सुधारें ठीक वैसे ही जैसे कोई छात्र पहले गणित का सवाल खुद हल करता है और बाद में कैलकुलेटर से जांचता है.

एआई और सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं लेकिन जब ये हमारी सोचने की क्षमता को कमजोर करने लगें तो यह चेतावनी का संकेत है. अगर हम इन तकनीकों का इस्तेमाल सोच-समझकर करें तो ये हमारे दिमाग को रॉट नहीं बल्कि रिच बना सकती हैं.

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