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उत्तराखंड में बादल फटने का कहर, धराली त्रासदी के पीछे छिपे खतरे, विशेषज्ञ ने बताई वजह

Uttrakhand News: उत्तराखंड के धराली में बादल फटने से भारी तबाही, 4 मौतें, 50 घायल. पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने ग्लेशियर पिघलने, अतिक्रमण और निगरानी की कमी को हादसे की वजह बताया.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली गांव में बीते मंगलवार को बादल फटने की घटना ने भारी तबाही मचाई है. बादल फटने की घटना से वहां के नाले में इतना भयानक उफान आया कि नाले का पानी अपने साथ बड़ी मात्रा में मलबे को बहाकर निचले इलाके की तरफ ले गया,

जिससे कई घर-दुकान, सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हो गए. इस हादसे में भारी जान-माल का नुकसान हुआ और इसके मलबे में दबने से 50 लोगों के घायल होने जबकि 4 की मौत की पुष्टि हुई है. धराली में जो हुआ, उससे एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि बीते कुछ सालों से उत्तराखंड की वादियों में ऐसी घटनाएं क्यों सामने आ रही हैं?

इस तरह की घटनाएं बार-बार हो रही

क्या यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है या फिर पहाड़ी इलाका होने की वजह से इस तरह की घटनाएं बार-बार हो रही हैं, और सरकार इन सबसे निपटने के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है. इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए एबीपी लाइव की टीम ने पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर से खास बातचीत की.

पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने बताया कि धराली में जो हादसा हुआ, उसकी दो-तीन वजहें हैं. सबसे पहली वजह तो यह है कि तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे तालाब के पानी का स्तर बढ़ा और उसकी दीवार टूट गई. और जब पानी नीचे आने लगा तो उसके साथ बहुत सारा डेबरी (कीचड़, पत्थर) भी साथ में आ गया.

साल 2013 में भी यही स्थिति हुई थी

ठक्कर ने बताया कि नीचे आने के दौरान खड़ी ढलान की वजह से ऊपर का पानी बहुत तेज गति में था. नीचे खीरगंगा नदी की दो धाराएं उसमें जुड़ गईं, जो पूरे इलाके के ध्वस्त होने का कारण बनी. पहाड़ों में बेतहाशा बढ़ रहे निर्माण कार्य को भी ठक्कर ने इस घटना का एक बड़ा कारण बताया. उन्होंने कहा कि इसे लेकर हमारे यहां कोई नीति नहीं है.

उन्होंने कहा कि खीरगढ़ में साल 2013 में भी यही स्थिति हुई थी. उस समय अगर लोग सचेत हो जाते और सरकार और लोगों की तरफ से अतिक्रमण नहीं होता, तो शायद इतना बड़ा हादसा नहीं होता. उन्होंने कहा कि ऊपर से आने वाली ऐसे 5-6 स्ट्रीम्स हैं, जिनकी निरंतर निगरानी करने की जरूरत है.

महज 1 मिनट से कम समय में सबकुछ नष्ट हो गया 

ठक्कर ने कहा कि जब ये स्ट्रीम्स नीचे की सतह की तरफ आते हैं, तो उन्हें भी जगह देना जरूरी है. सरकार ने और लोगों ने मिलकर चैनल की दोनों तरफ कंक्रीट की दीवारें बना दीं, ऐसा सोचकर कि नदी इसी दीवार में बंधी रहेगी. अभी यह खीरगंगा, जो हिमालय की नदियां है, वो इन सीमेंट-कंक्रीट की दीवारों के बीच नहीं रहेगी.

उन्होंने कहा कि वह इतना पावर के साथ आती है, इतने बड़े-बड़े पत्थरों के साथ कि इन दीवारों को क्या, पूरे गांव को मिनट भर में खत्म कर देगी और धराली में भी ऐसा ही हुआ. महज 1 मिनट से कम समय में सबकुछ नष्ट हो गया. पर्यावरण विशेषज्ञ का कहना है कि नदियों को बहने के लिए जगह चाहिए, उसका जो फ्लड प्लेन है, उसका अतिक्रमण नहीं किया जा सकता.

ऐसी जगहों पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए

अगर यहां भी ज्यादा अतिक्रमण नहीं किया गया होता तो संभव है कि जान-माल की ज्यादा हानि नहीं हुई होती. दूसरी बात यह है कि चूंकि यह खतरनाक इलाका है, इसलिए सरकार को ऐसी जगहों पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए. जैसे सिक्किम में साउथ ल्होनक लेक का इलाका है, सरकार कह रही है कि अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं और सब कर रहे हैं.

लेकिन हकीकत में ये सब नहीं किया गया है, जबकि सरकार को ये सारी चीजे करनी चाहिए थीं. उन्होंने कहा कि जब चंबोली में फरवरी 2021 में हादसा हुआ था तब भी सरकार ने यही सब कहा. इससे पहले 2013 में भी यह बातें कही गई थीं, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं किया गया.

सरकार पर इसे लेकर दबाव बनाने की जरूरत - हिमांशु ठक्कर 

ठक्कर ने कहा कि पहले के समय में ऐसे हादसे न के बराबर देखने को मिलते थे, पर अब आए दिन बादल फटना और पहाड़ ढहने की घटनाएं सामने आ रही हैं. उन्होंने कहा कि डेवलपमेंट और इकॉनमी के पीछे अंधाधुंध जो दौड़ लगा रहे हैं, उससे खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ रहा है. जनता को सरकार और उनके प्रतिनिधियों पर दबाव डालना चाहिए ताकि उन्हें गलत करने से रोका जा सके.

अंत में उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज तो होगा और बाढ़ भी आएगी, ग्लेशियर भी बहेंगे. लेकिन जब बाढ़ आए तो उससे कम से कम नुकसान हो, इस बारे में सोचने की जरूरत है और सरकार पर इसे लेकर दबाव बनाने की जरूरत है, जिससे कि ऐसी घटनाओं को बढ़ावा न मिले.

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