यूपी विधानसभा चुनाव से पहले BSP के लिए कई मुश्किलें, इस मामले में AIMIM से भी पिछड़ी पार्टी
बहुजन समाज पार्टी बीते कई चुनावों से मुंह की खा रही है. साल 2012 में यूपी विधानसभा और साल 2019 में लोकसभा में 10 सीटें हासिल करने के अलावा पार्टी के पास फिलहाल कोई बड़ी उपलब्ध नहीं है.

UP Politics: दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 48 सीटें मिली. आम आदमी पार्टी के खाते में 22 सीटें आईं. कांग्रेस समेत अन्य दलों को मुंह की खानी पड़ी और 0 सीटें मिलीं. बहुजन समाज पार्टी ने भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसको लेकर मायावती जब पहला बयान जारी किया तो उन्होंने इसके लिए AAP को जिम्मेदार ठहराया. दिल्ली में बसपा 70 में से 68 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
राजधानी दिल्ली में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने अपने मूल जाटव दलित मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया, लेकिन ये प्रयास उन्हें दिल्ली विधानसभा में जीत न दिला सकी. इस बार के विधानसभा चुनाव में बसपा को 0.58% वोट मिले, जो साल 2020 में मिले वोटों से भी कम है. बसपा के लिए बड़ा झटका यह है कि पहली बार दिल्ली में चुनाव लड़ने वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) से भी कम उसका वोट प्रतिशत रहा. AIMIM को 0.77 फीसदी वोट मिले. बसपा की हालत नोटा के बराबर रही. नोटा के हिस्से में 0.58 फीसदी वोट आए.
मायावती और बसपा, दोनों के लिए यह परिणाम कहीं से भी सुखद नहीं हैं. पार्टी के नेता और मायावती के भतीजे आकाश आनंद को दिल्ली चुनाव की जिम्मेदारी दी गई थी और उन्होंने कई जगह रैलियां भी कीं. हालांकि इसका असर देखने को नहीं मिला.
सिर्फ इस सीट पर बसपा के लिए बेहतर स्थिति!
बसपा को 68 सीटों पर कुल 55,066 वोट मिले, यानी हर सीट पर पार्टी को औसतन 809 वोट प्राप्त हुए. बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन विकासपुरी में देखने को मिला, जहां पार्टी के उम्मीदवार को 2,642 वोट मिले. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट गोकलपुर में बसपा के उम्मीदवार को 2,562 वोट मिले.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा के लिए एक बात बेहतर रही कि 10 सीटों- विकासपुरी, संगम विहार, किराड़ी, छतरपुर, रोहतास नगर और लक्ष्मी नगर, सीमापुरी, कोंडली, अंबेडकर नगर और पटेल नगर में पार्टी का वोट शेयर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से ज्यादा रहा. आजाद समाज पार्टी के मुखिया यूपी स्थित नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद हैं. वह यूपी में बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.
दलित वोट की बात की जाए तो नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी बीएसपी को चुनाव में कड़ी टक्कर दे रही है. वहीं दलित युवा वोट का झुकाव आज़ाद समाज पार्टी की ओर बढ़ा है. इसी को ध्यान में रखते हुए मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद को दिल्ली में प्रचार प्रसार का काम सौंपा था. बीएसपी ने 68 सीटों में से 45 से ज्यादा सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारे थे. जिनमें 45 में से 35 से जाटव समुदाय के उम्मीदवार थे.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार को लेकर बीएसपी के एक नेता ने कहा कि, 'हमारे ज्यादातर उम्मीदवार जाटव समुदाय से युवा थे, लेकिन हमें मनचाहा परिणाम नहीं मिला.' दलित मतदाता, साल 2013 से ही अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP के साथ खड़े रहे.
दिल्ली में साल 2015 और साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आप की जीत में दलित समुदाय के समर्थन की अहम भूमिका रही है. बसपा 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद से ही पार्टी का वोट शेयर दिल्ली समेत अन्य राज्यों में घटा है. बसपा का जबरदस्त प्रदर्शन साल 2008 के चुनाव में देखने को मिला, जहां पार्टी का वोट शेयर 14 प्रतिशत था.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्य राज्यों में बुरी हार के बाद बसपा साल 2027 में प्रस्तावित यूपी विधानसभा चुनाव से पहले क्या फैसले लेती है? फिलहाल यूपी में बसपा का सिर्फ एक विधायक है और लोकसभा में उसकी स्थिति 0 है. ऐसे में दिल्ली की हार के बाद बसपा के लिए राह आसान तो नहीं ही है.
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