यूपी में अखिलेश यादव के बनाए जाल को काटने की जुगत में बीजेपी! इस नेता को बना लिया हथियार?
UP Politics: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जो सियासी जाल बुना है उसे काटने के लिए बीजेपी ने एक नेता को हथियार बना लिया है.

उत्तर प्रदेश स्थित कौशांबी के चायल से विधायक पूजा पाल और उनकी चिट्ठियां चर्चा एवं राजनीति का केंद्र बनीं हुईं हैं. पूजा पाल ने अब तक दो चिट्ठियां लिखीं हैं और उनमें से एक में पीडीए का जिक्र है. समाजवादी पार्टी से निष्कासित हो चुकी पूजा पाल के ट्वीट में पीडीए का जिक्र है क्योंकि यूपी में पीडीए लगातार सत्ता की धुरी बना हुआ है. पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक. साल 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में पीडीए का मुद्दा अहम होने वाला है. जिसके पाले में पीडीए का वोट गया समझो सत्ता की तरफ उसका पलड़ा भारी हो गया. अब अखिलेश के इसी पीडीए के सियासी जाल को काटने के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरे जी जान से लग गई है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार पीडीए पॉलिटिक्स की तरफ आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि वह लोकसभा चुनाव में इसका असर देख चुके हैं. अब पूजा पाल भी उसी पीडीए में शामिल जाति से आती है. समाजवादी पार्टी उन्हें निकाल चुकी है. वो बीजेपी से नजदीकियां बढ़ा रही है. इसलिए एक बार फिर पीडीए की राजनीति गमा रही है.
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लखनऊ में एक प्रेस वार्ता के दौरान सोमवार को अखिलेश यादव ने कहा कि इस सरकार में सबसे ज्यादा दुखी अगर कोई है तो पीडीए समाज के लोग ही हैं. कभी-कभी सम्मान के लिए कभी-कभी इस बात के लिए भी कि शायद सरकार सच बोल रही है उनका भरोसा कर करके.
अटकलें हैं कि पूजा पाल बीजेपी में शामिल हो सकती है. इसे बीजेपी के अखिलेश यादव की पीडीए पॉलिटिक्स की काट के तौर पर देखा जा रहा है. तभी तो बीजेपी ने पूजापाल का नाम लेकर पीडीए का जिक्र किया.
बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि पूजापाल की बसे बड़ी गलती क्या थी? उनका क्राइम क्या था? पूजापाल पीड़ित है उस गुंडाराज, माफिया राज से जिसको समाजवादी पार्टी ने संरक्षण दिया. पीडीए समाज से आने वाली बेटी के साथ अखिलेश ने वोट बैंक के नाम पर किस प्रकार का व्यवहार किया है? उनको जवाब देना होगा कि एक ऐसी बेटी के साथ इस प्रकार का अन्याय क्यों कर रहे हैं?
यूपी में क्या है पीडीए की ताकत?
उत्तर प्रदेश में पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक का वोट तस्वीर बदलने की ताकत रखता है. अखिलेश को भी पता है कि पीडीए के दम पर वो यूपी के सिंहासन तक पहुंच सकते हैं. लोकसभा चुनाव में पीडीए ने जिस तरह से उनका साथ दिया है उससे अखिलेश की उम्मीद और बढ़ी है. साल 2019 में समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 18.11% था जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 33.59% हो गया. समाजवादी पार्टी ने 204 में यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की थी. इन 37 सीटों पर 21 सीट पर ओबीसी, सात सीट पर दलित, चार सीट पर मुस्लिम और पांच सीट पर उच्च जाति के उम्मीदवार थे.
BJP आती हैं पूजा पाल तो क्या होगा?
समाजवादी पार्टी से निष्कासित पूजा पाल भी पिछड़ा वर्ग से हैं. ऐसे में अगर वह बीजेपी की नाव पर सवार होती हैं तो इससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. ऐसा होने पर पीडीए में सेंध लग सकती है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. अगर पूजा पाल ने कमल थामा तो इसके कई मायने भी होंगे. पूजा पाल के जरिए बीजेपी यह दिखाने की कोशिश करेगी कि समाजवादी पार्टी में महिलाओं का सम्मान नहीं है. पूजा पाल को साथ लाकर बीजेपी उनकी जाति के पाल वोटर्स को संदेश दे सकती है. पिछड़ा वर्ग से आने वाली पूजा पाल बीजेपी में शामिल हुई तो बीजेपी यह नैरेटिव बनाने की कोशिश कर सकती है कि सपा की नजर सिर्फ पीडीए के वोट पर है. उनके विकास से उन्हें कुछ लेना देना नहीं.
इस मामले में बीजेपी भी खुलकर कुछ कहने से बच नहीं रही है. डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि यह सब वही समाजवादी पार्टी के लोग हैं. इनके चरित्र को प्रदेश की जनता अच्छी तरह जानती है. हम सब विधायक पूजा पाल के साथ हैं. और पूरा प्रदेश पूजा पाल के साथ है. वहीं योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि पीडीए की लोग बात करते हैं और पूजा पाल जैसी महिला का वो सपोर्ट नहीं करते हैं. केवल उन्होंने सही बात कह दी तो उसके लिए उनको सजा दे रहे हैं. उनको पार्टी से निकाल रहे हैं.
कुल मिलाकर सारी लड़ाई पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोट की ही है. अब पूजा पाल का अगला कदम क्या होता है? यह देखना दिलचस्प होगा.
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Source: IOCL






















