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Sanjeev Jeeva Murder: जीवा हत्याकांड की CBI और रिटायर्ड जज से जांच कराने की याचिका नामंजूर, जानिए कोर्ट ने क्या कहा?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा हत्याकांड मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन हुए. जबकि इसकी जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से कराने के मांग की गई थी.
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Sanjeev Jeeva Murder Case: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ (Lucknow) पीठ ने मंगलवार को कुख्यात अपराधी संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा हत्याकांड की जांच राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच टीम (SIT) से लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या अपने किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश के हवाले करने से इनकार कर दिया.
अदालत ने कहा कि जीवा हत्याकांड मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन हुए अभी कुछ ही दिन गुजरे हैं लिहाजा यह याचिका बहुत ही अपरिपक्व अवस्था में दायर की गई है. पीठ ने यह भी उम्मीद की है कि एसआईटी निष्पक्ष और त्वरित जांच करेगी. न्यायमूर्ति डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने स्थानीय वकील मोती लाल यादव द्वारा दायर जनहित याचिका पर आदेश पारित किया.
याचिकाकर्ता ने कहा था कि पिछली सात जून को लखनऊ में अदालत परिसर के अंदर जीवा की गोली मारकर हत्या की घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया था और इसकी जांच सीबीआई या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए. पीठ ने इस याचिका का निस्तारण करते हुए स्पष्ट किया है कि अगर याचिकाकर्ता एसआईटी की जांच से असंतुष्ट होता है तो वह बाद में याचिका दायर कर सकता है.
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एसआईटी का गठन
इससे पहले, प्रदेश के महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि राज्य सरकार अदालत परिसर के अंदर जीवा की हत्या की घटना को बहुत गंभीरता से ले रही है और इसलिए उसने उसी दिन घटना की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय एसआईटी का गठन किया. एसआईटी जांच कर रही है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत को ऐसा कोई कारण नहीं बता सका कि जांच को किसी अन्य एजेंसी को क्यों स्थानांतरित किया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के गुर्गे संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की पिछली सात जून को लखनऊ स्थित अदालत परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि मृतक भले ही खूंखार अपराधी रहा हो लेकिन पुलिस हिरासत में उसकी हत्या को किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. पीठ ने बार संघों के सदस्यों से अदालत परिसरों में सुरक्षा जांच में सहयोग करने की अपेक्षा भी की.
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