मथुरा में जन्माष्टमी की रौनक, कान्हा की पोशाक और मुकुट तैयार करने में जुटे हैं कारीगर
Mathura News: मथुरा में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना के तहत कान्हा की पोशाक और मुकुट बनाने को बढ़ावा दिया जा रहा है. हिंदू और मुस्लिम कारीगर मिलकर जटिल डिजाइनों से भव्य पोशाकें तैयार कर रहे हैं.

भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा 16 अगस्त को जन्माष्टमी के पावन पर्व के लिए तैयार है, जहां गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिल रही है. श्रीकृष्ण जन्मस्थान, वृंदावन के बांके बिहारी जी मंदिर और ब्रज के अन्य मंदिरों में कान्हा की पोशाक और मुकुट तैयार करने में हिंदू-मुस्लिम कारीगरों की सहभागिता इस त्योहार को विशेष बना रही है. यह न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक है, बल्कि कारीगरों की आजीविका का साधन भी है.
मथुरा में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना के तहत कान्हा की पोशाक और मुकुट बनाने को बढ़ावा दिया जा रहा है. हिंदू और मुस्लिम कारीगर मिलकर जटिल डिजाइनों से भव्य पोशाकें तैयार कर रहे हैं, जो भारत के साथ विदेशों में भी भेजी जाती हैं. महिलाएं भी इस कला में पीछे नहीं हैं और ठाकुर जी की पोशाक बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. कई पीढ़ियों से मुस्लिम कारीगर इस परंपरा को निभा रहे हैं, जो धार्मिक सौहार्द का उदाहरण प्रस्तुत करता है.
जन्माष्टमी की तैयारियां
16 अगस्त को मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर जन्माष्टमी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. शासन ने तैयारियां पूरी कर ली हैं, और मंदिरों में विशेष सजावट की गई है. कारीगरों ने अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए मनमोहक पोशाकें और मुकुट तैयार किए हैं, जो ठाकुर जी को पहनाए जाने पर उनकी छवि को और भी आकर्षक बनाते हैं. इन पोशाकों की डिमांड देश-विदेश में बढ़ रही है, जिससे मथुरा की कारीगरी विश्वस्तरीय पहचान बना रही है.
महिलाओं और कारीगरों को सहायता
महिलाओं को ठाकुर जी की पोशाक बनाने के लिए सरकार आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है, जो इस पारंपरिक कला को बढ़ावा दे रही है. हालांकि, मुस्लिम कारीगरों ने मांग की है कि उन्हें भी इस कारोबार को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए आर्थिक मदद दी जाए, ताकि वे अपनी कला को और निखार सकें. यह पहल न केवल रोजगार सृजन कर रही है, बल्कि धार्मिक एकता को मजबूत कर रही है.
गंगा-जमुनी तहजीब की पहचान
मथुरा-वृंदावन में यह परंपरा गंगा-जमुनी तहजीब की जीती-जागती मिसाल है. भक्त इन पोशाकों को अपने आराध्य को पहनाकर धन्य महसूस करते हैं, और कारीगरों का समर्पण इस त्योहार को और पवित्र बनाता है. यह आयोजन न केवल आध्यात्मिकता को दर्शाता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी संदेश देता है.
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