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Jamiat Ulema-e-Hind: जिहाद और आतंकवाद पर मौलाना महमूद मदनी का बड़ा बयान, कहा- ऐसे संगठन...

Mahmood Madani Contoversy: मौलाना महमूद मदनी ने कहा, इस्लाम में कहीं भी जातीय भेदभाव नहीं है, लेकिन इसके बावजूद मुसलमानों में पसमांदा (पिछड़ी जातियों) का अस्तित्व एक जमीनी सच्चाई है.

Delhi News: जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम समूह) (Jamiat Ulema-e-Hind) के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी (Maulana Mahmood Madani) ने रविवार को कहा कि ‘जिहाद’ की गलत व्याख्या कर आतंकवाद (Terrorism) और हिंसा का प्रचार करने वाले संगठन ना तो देश हित में और ना ही इस्लामी तौर पर किसी भी मदद के हकदार है. उन्होंने कहा कि मातृभूमि के लिए बलिदान देना ‘हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य’ है.

मदनी ने जमीयत के अपने समूह के तीन दिवसीय 34वें अधिवेशन के अंतिम दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में यह भी कहा कि इस्लाम में जाति व्यवस्था न होने के बावजूद ‘पसमांदा’ (पिछड़ी जातियों) का जमीनी स्तर पर अस्तित्व है. मदनी ने पसमांदा मुस्लिम को लेकर सरकार के हाल के कदमों का स्वागत करते हुए कहा कि उनके साथ जाति के नाम पर जो ज्यादतियां हुई हैं उनपर “हमें शर्मिंदगी” है और इसे दूर करने के लिए काम करने का संकल्प लिया.

अधिवेशन के अंतिम दिन देशवासियों के नाम संदेश को पढ़ते हुए राज्यसभा के पूर्व सदस्य ने कहा, “तथाकथित संगठन इस्लाम के नाम पर जिहाद की गलत व्याख्या कर आतंकवाद और हिंसा का प्रचार करते हैं. वह ना तो देश के हित की दृष्टि से और ना ही इस्लाम के आदेशानुसार हमारे सहयोग के पात्र हैं. इसके विपरीत अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने, निष्ठा और देशभक्ति हमारा राष्ट्रीय और कौमी (राष्ट्रीय) कर्तव्य है. मौलाना मदनी ने मुसलमानों से महिलाओं को शरीयत के मुताबिक पुश्तैनी संपत्ति में उनका हिस्सा देने की भी अपील की.

पसमांदा का अस्तित्व जमीनी सच्चाई-मदनी
वहीं, पसमांदा के मुद्दे पर उन्होंने कहा, “इस्लाम में कहीं भी जातीय भेदभाव नहीं है, लेकिन इसके बावजूद मुसलमानों में पसमांदा (पिछड़ी जातियों) का अस्तित्व एक जमीनी सच्चाई है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि पसमांदा समुदाय के साथ भेदभाव धार्मिक, नैतिक और मानवीय दृष्टि से निंदनीय है.” उन्होंने कहा, “ऐसे में इस महाधिवेशन के अवसर पर हम घोषणा करना चाहते हैं कि जातीयता के नाम पर जो यातनाएं दी गई हैं, उस पर हमें पछतावा है और उसे दूर करने के लिए हम सब संकल्पबद्ध हैं.”

गौरतलब है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो समूहों में बंटी हुई है. एक समूह की अगुवाई राज्यसभा के पूर्व सदस्य महमूद मदनी करते हैं, जबकि दूसरे समूह का नेतृत्व मौलाना अरशद मदनी के हाथ में है. अरशद मदनी, महमूद मदनी के चाचा हैं. जब 2006 में महमूद के पिता और जमीयत प्रमुख असद अहमद मदनी का इंतकाल हुआ, तो उनके और उनके चाचा के बीच संगठन के नेतृत्व को लेकर विवाद पैदा हो गया, जिससे विभाजन हो गया और संगठन दो गुटों में बंट गया.

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