प्रयागराज में किसानों का कमाल, एक खेत में एक ही वक़्त में उगाई सात फसलें
प्रयागराज के गंगापार इलाके के मातादीन का पुरवा गांव में कुछ किसानों ने इस बार अपने खेतों में एक साथ छह-सात फसल उगाने का प्रयोग किया.

प्रयागराज: कहावत है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, कुछ ऐसा ही संगम नगरी प्रयागराज के उन किसानों के साथ हुआ है, जो अपने अनूठे प्रयोग की वजह से इन दिनों चर्चाओं का सबब बने हुए हैं. कोरोना और लॉकडाउन के मुश्किल दौर में जब रोज़गार और आमदनी कम होने लगी तो यहां के कुछ किसानों ने एक ही खेत में एक साथ छह से सात फसलों की बुआई का अनूठा प्रयोग किया. ऐसी फसलों के बीज डाले, जो बारी-बारी से क्रमवार तैयार होकर दूसरी फसलों के लिए जगह खाली करती जाएं.
यह अनूठा प्रयोग न सिर्फ बेहद सफल हुआ है, बल्कि खासा कारगर भी साबित हो रहा है. एक-दूसरे से जानकारी पाने के बाद तमाम लोग यहां इस प्रयोग को जानने और समझने के लिए आ रहे हैं. इस अनूठे प्रयोग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सूखा या ज़्यादा बारिश होने पर अगर सात में से चार-पांच सब्जियों की फ़सल खराब भी हो जाती है तो बची हुई दो-तीन फसलें किसानों को बर्बाद होने से बचा सकती हैं. इस प्रयोग में अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों के लिए नुकसान की गुंजाइश काफ़ी कम है.
कोरोना की महामारी में जब बड़ी तादात में लोगों ने बड़े शहरों से अपने गांवों की तरफ रुख किया तो यहां उनके सामने रोज़गार हासिल करने और परिवार का पेट पालने की बड़ी चुनौती सामने खड़ी मिली. मुम्बई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से संगम नगरी प्रयागराज में अपने गांवों को वापस लौटे ज़्यादातर युवाओं ने खेती के काम में परिवार का हाथ बंटाने की ज़िम्मेदारी संभाली. किसी ने पहाड़ों पर उगने वाले सेबों को यहां की मैदानी मिट्टी में उगा दिया तो किसी ने एक ही खेत में एक ही वक़्त एक ही जगह छह से सात फसलों के बीज डालने का प्रयोग किया. कुछ के प्रयोग सफल होकर कामयाबी की नई इबारत लिखने लगे तो किसी के प्रयोग मिट्टी में मिलकर दफ़न हो गए.
फसलों की पैदावार के गणित को समझना बेहद ज़रूरी
प्रयागराज के गंगापार इलाके के मातादीन का पुरवा गांव में कुछ किसानों ने इस बार अपने खेतों में एक साथ छह-सात फसल उगाने का प्रयोग किया. सुनने में यह अटपटा और अविश्वसनीय ज़रूर लगता है, लेकिन यह प्रयोग अब पूरी तरह सफल साबित हुआ है. इसमें किसानों ने एक साथ खीरा-ककड़ी, नेनुआ- तरोई-कद्दू- बोड़ा- करेला और सेम जैसी सब्ज़ियां बोईं. इनका सीरियल इस तरह से रखा गया कि एक फसल तैयार होकर जब बाहर निकलने को हो तब दूसरी पनपनी शुरू हो जाए. कुछ फसलें एक साथ तैयार होने लगती हैं तो उनके लिए अलग-अलग प्लेटफार्म बना दिया जाता है. जैसे कद्दू-सेम और बौडे के पौधों को ऊंचाई पर बांध दिया जाता है और उनकी बेलों को दाहिने-बाएं फैलने के बजाय उन्हें ऊपर बढ़ने दिया जाता है. पहले यह प्रयोग दो तीन किसानों ने शुरू किया, उसके बाद पूरे गांव ने इसे अपना लिया. गांव के तकरीबन सभी खेतों में इस साल इस अनूठे तरह से खेती की जा रही है.
इस कामयाब प्रयोग के कई फायदे हैं. सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर बाढ़-बारिश या सूखे की वजह से कोई एक फसल पूरी तरह खराब हो जाती है तो किसान अपनी लागत से भी हाथ धो बैठता है. एक साथ कई पैदावार करने में अगर सात में से दो फसल भी ठीक से हो गई तो कम से कम लागत और मजदूरी तो निकल ही जाएगी. इस पैदावार में ज़्यादा पानी की भी ज़रुरत नहीं होती, ऐसे में कम बारिश होने पर भी फसल उग आएगी. अगर जिस साल सभी फसलें बिना किसी नुकसान के ठीक से पैदा हो गईं तो किसान मालामाल हो जाएगा. यह ज़रूर है कि इसमें थोड़ा एहतियात बरतना और फसलों की पैदावार के गणित को अच्छे से समझना बेहद ज़रूरी होता है.
बहरहाल खेती का यह अनूठा प्रयोग इलाके के किसानों की खुशहाली का सबब बन गया है. किसान खुश भी हैं और उत्साहित भी और यह सब मुमकिन हो सका है कोरोना की महामारी की वजह से, जिसकी आपदा ने यहां के लोगों को अवसर मुहैया कराया है. स्थानीय पत्रकार विजय पटेल का भी मानना है कि आने वाले दिनों में यह प्रयोग कृषि क्रांति की तरह सामने आ सकता है. अगर सरकार और विशेषज्ञ इसे और बेहतर बनाने की कोशिश करें तो यह बड़े बदलाव का सबब बन सकता है.
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Source: IOCL





















