Ujjain News: भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल को राखी बांधकर हुई रक्षा बंधन की शुरुआत, लगा सवा लाख लड्डुओं का भोग
MP News: महाकालेश्वर मंदिर के भूषण गुरु ने बताया, भगवान को राखी अर्पण करने के बाद ही पुरोहित परिवारों द्वारा घर में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.
Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के उज्जैन में राजाधिराज भगवान महाकाल (Lord Mahakal) के दरबार में भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल को राखी बांधकर रक्षा बंधन पर्व (Raksha Bandhan) की शुरुआत हुई. अब देश भर में यह पर्व मनाया जा रहा है. महाकालेश्वर मंदिर में सवा लाख लड्डुओं का भोग भी लगाया गया. राजाधिराज भगवान महाकाल के दरबार में सभी पर्व सबसे पहले मनाए जाते हैं. इसके बाद देशभर में त्यौहार मनाने का सिलसिला शुरू होता है. आज भगवान महाकाल के दरबार में पट खुलने के बाद भस्म आरती हुई. इस दौरान पंडित पुरोहित परिवार द्वारा बनाई गई राखी भगवान महाकाल को बांधी गई.
लगाया जाता है सवा लाख लड्डुओं का भोग
महाकालेश्वर मंदिर के महेश पुजारी ने बताया कि, हर साल की तरह इस बार भी रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत भगवान महाकाल के आंगन से हुई है. पंडित पुरोहित परिवार द्वारा 15 दिन पहले से रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत की जाती है. इसके बाद भगवान महाकाल की भस्म आरती के दौरान राखी बांधकर पर्व की औपचारिक शुरुआत होती है. सावन खत्म होने के बाद महाकालेश्वर मंदिर में रक्षाबंधन पर्व पर सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया जाता है.
की जाती है रक्षा-सुख-समृद्धि की प्रार्थना
महाकालेश्वर मंदिर के भूषण गुरु ने बताया कि, रक्षाबंधन पर्व पर पंडित पुरोहित परिवारों द्वारा भगवान महाकाल की विशिष्ट पूजा की जाती है. इस पूजा के दौरान भगवान से देश की सुख समृद्धि और रक्षा की कामना भी की जाती है. भगवान को राखी अर्पण करने के बाद ही पुरोहित परिवारों द्वारा घर में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.
श्रद्धालुओं ने भगवान को अर्पित किए राखी
आज महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के बाद से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. महाकालेश्वर मंदिर पहुंची कई महिला श्रद्धालुओं ने भगवान महाकाल को राखी अर्पित की है. बेंगलुरु से आई दीप्ति सिंह ने बताया कि, भगवान महाकाल को हर साल राखी अर्पित करने के लिए वे आती हैं. इस बार भी भगवान के दर्शन कर राखी अर्पण की गई है. कोरोना की वजह से 2 साल तक वह मंदिर नहीं आ पाईं थीं.
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