Padma Awards 2023: रिटायरमेंट की उम्र में पकड़ा ब्रश, देश और दुनिया में पहुंचाया आदिवासी कला, अब सरकार देगी 'पद्मश्री'
MP News: जोधइया बाई अम्मा की की शादी उस समय हो गई थी जब उनकी उम्र 14 साल थी.इसके बाद उनके पति का कम उम्र में निधन हो गया.पति के निधन के बाद सम्मानित मजदूरी कर अपने बच्चों का भरण पोषण शुरू किया.

उज्जैन: कला किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती है. यह बात उमरिया जिले के लोड़ा गांव की रहने वाली जोधइया बाई (अम्मा) बैगा ने साबित कर दी है. आम तौर पर 60 साल की आयु को सेवानिवृत्ति की उम्र होती है. इस उम्र में अम्मा ने ब्रश पकड़ा और आदिवासी चित्रकारी को केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंचा दिया.कई पुरस्कार हासिल कर चुकी अम्मा का चुनाव सरकार ने 'पद्मश्री' के लिए किया है.
जोधइया बाई अम्मा की कहानी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है.अम्मा की शादी उस समय हो गई थी जब उनकी उम्र 14 साल थी.इसके बाद उनके पति का कम उम्र में निधन हो गया.पति के निधन के बाद सम्मानित मजदूरी कर अपने बच्चों का भरण पोषण शुरू किया.60 वर्ष की उम्र में उन्हें उनके गुरु आशीष स्वामी से प्रेरणा मिली. इसके बाद उन्होंने आदिवासी चित्रकारी सीखते हुए ब्रश थाम लिया.अम्मा को साल 2020 में नारी शक्ति सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है.इस बार उन्हें सरकार ने 'पद्मश्री' के लिए चुना है.
गुरु की इच्छा
उनके गुरु आशीष स्वामी की इच्छा थी कि अम्मा को 'पद्मश्री' सम्मान मिले.उनकी हर इच्छा पूरी हो गई है.अम्मा की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है.वे कच्चे मकान में रहती हैं.इसके अलावा खुद ही अपना काम करती है.84 साल की उम्र में आर्थिक तंगी के बावजूद अभी भी पूरी काबिलियत के साथ आदिवासी चित्रकला को देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंचा रही हैं.
प्रधानमंत्री आवास योजना में घर चाहिए
अम्मा के दो बेटों ने के साथ उन्होंने भी प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवेदन कर रखा है.उनके दो बेटों का प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान का सपना पूरा हो गया है,जबकि अम्मा को अभी अपना नाम सूची में आने का इंतजार है.हालांकि अम्मा को पक्के मकान की ज्यादा चिंता नहीं है.उनका मानना है कि प्रभु जिस हाल में रखे अच्छा है, मगर वृद्धावस्था होने की वजह से कच्चे मकान में थोड़ी कठिनाई का सामना जरूर करना पड़ रहा है.
आसान नहीं रहा है पद्मश्री तक का सफर
जोधइया बाई बैगा के 'पद्मश्री' तक पहुंचने का सफर कोई आसान नहीं रहा है.कड़ी धूप, गर्मी और बारिश में पत्थर तोड़ने सहित कई तरह की मजदूरी की है. जब उनकी उम्र ढल गई तो उनके गुरु आशीष स्वामी ने उनसे चित्रकल के क्षेत्र में प्रदर्शन करने को कहा.'जनगणना तस्वीर खाने' से उन्होंने कला की शुरुआत की.उनका पूरा जीवन संघर्ष और चुनौतियों से भरा रहा है.इस दौरान आर्थिक स्थिति की वजह से भी उन्हें जीवन के कई पड़ाव पर अधिक संघर्ष करना पड़ा.
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Source: IOCL























