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MP Siyasi Scan: क्या हुआ जब बिना बताए नेपाल चले गए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, दो सूटकेस का किस्सा आज भी है रहस्य

MP Politics: वीरेंद्र कुमार सकलेचा करीब 2 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने जनसंघ को मजबूती दी. दिल्ली में अपने पुत्र को बांग्ला दिलाने से जुड़े विवाद के कारण उनकी कुर्सी चली गई.

MP Siyasi Scan: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के तमाम सियासी किससे राजनीतिक गलियारों में कहे और सुने जाते हैं. लेकिन, जनता सरकार में मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा (Virendra Kumar Saklecha) की एक विदेश यात्रा की चर्चा आज भी रहस्मय ढंग से की जाती है. यह मामला इतना बिगड़ गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Deshai) के निर्देश पर उन्हें तत्काल स्वदेश लौटना पड़ा. मध्य प्रदेश के सियासी किस्सा सीरीज में आज इसी पर चर्चा होगी.

पहली बार बनी गैर कांग्रेसी सरकार
इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी के बैनर तले तमाम विपक्षी दलों ने एकजुट होकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था. पहली बार मध्य प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. इस गठबंधन में जनसंघ की बड़ी भूमिका थी. कैलाश जोशी मुख्यमंत्री बने. जनसंघ के पुराने नेता वीरेंद्र कुमार सकलेचा को मंत्रीमंडल में स्थान मिला. आपसी मतभेदों के चलते मध्य प्रदेश में जनसंघ के पहले मुख्यमंत्री कैलाश जोशी द्वारा त्यागपत्र दिये जाने के बाद 17 जनवरी 1978 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा जनता पार्टी के विधायक दल के नेता चुने गये. 18 जनवरी 1978 को उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में पद तथा गोपनीयता की शपथ ली.

आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाया
मध्य प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा ने अपने कार्यकाल के दौरान जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाया. इस वजह से जनता पार्टी के बाकी सहयोगियों से उनकी खटपट होती रही. इसी दौरान एक ऐसा किस्सा हो गया, जिसकी चर्चा आज भी की जाती है. मुख्यमंत्री रहते वीरेंद्र कुमार सकलेचा अचानक सरकारी विमान से पड़ोसी देश नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंच गए. नियमानुसार बिना केंद्र सरकार की परमिशन के कोई भी मुख्यमंत्री सरकारी विमान से भारत के बाहर नहीं जा सकता है.

बिना योजना के थी यात्रा
यह मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की ऐसी यात्रा थी जिसकी कोई पूर्व योजना नहीं थी. मध्य प्रदेश की राजनीति में आज तक यह चर्चा होती है कि सखलेचा नेपाल क्यों गए थे? अपने साथ वो जो सूटकेस ले गए थे, उसमें क्या था? हालांकि,सकलेचा अपने परिवार के साथ गए थे. काठमांडू में विमान से उतरते समय उनके हाथ में दो सूटकेस थे. इस सूटकेस के अंदर क्या था, यह आज भी रहस्य बना हुआ है? उस समय कांग्रेस सहित जनता पार्टी के कई नेताओं ने भी इन दो सूटकेस ओं के बारे में सवाल पूछा था, लेकिन उसका सही जवाब कभी नहीं मिल पाया.

मोराजजी देसाई ने बुलासा वापस
वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा कहते हैं कि विवाद बढ़ने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की तरफ से सफाई दी गई कि वह अनजाने में नेपाल की राजधानी काठमांडू चले गए थे. दरअसल, वह सपरिवार प्राकृतिक रूप से खूबसूरत सिक्किम की यात्रा पर जाना चाह रहे थे. लेकिन, दिल्ली पहुंचने के बाद पता चला कि सिक्किम का मौसम बेहद खराब है. इस वजह से उन्होंने अचानक दिल्ली से सपरिवार नेपाल की यात्रा का प्लान बना लिया. कहते हैं कि जैसे ही इस बात की खबर भारत सरकार को लगी, वैसे ही हड़कंप मच गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने तत्काल उन्हें भारत लौटने के निर्देश दिए.

इस्तीफे के बाद पार्टी से भी निकाला
वीरेंद्र कुमार सकलेचा तकरीबन 2 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने अपने कार्यकाल ने जनसंघ को मजबूती दी. वहीं, उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे. कहा जाता है कि दिल्ली में अपने पुत्र को बांग्ला दिलाने से जुड़े एक विवाद के कारण वीरेंद्र कुमार सकलेचा की कुर्सी चली गई. भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप के बाद 19 जनवरी 1980 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा का इस्तीफा भी जनसंघ ने ही लिया. इतना ही नहीं उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और दोबारा पार्टी में वापसी इस शर्त पर हुई कि कोई पद नहीं मिलेगा.

वीरेंद्र कुमार सकलेचा का राजनीतिक करियर
वीरेंद्र कुमार सकलेचा का जन्म 1930 में मंदसौर की जावद तहसील में हुआ था. एलएलबी की पढ़ाई के बाद उन्होंने महु नगर में साढ़े तीन वर्ष तक वकालत की. वे दिसम्बर 1956 में महू छोड़कर आम चुनाव में भाग लेने के लिए जावद आ गए. वीरेंद्र कुमार सकलेचा फरवरी 1957 में जनसंघ के टिकट पर जावद विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए. 1962 से 1967 तक वे विधान सभा में विरोधी दल के नेता रहे. सन 1967 में तीसरी बार जनसंघ के टिकट पर जावद निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधान सभा के लिए चुने गये. 

डीपी मिश्रा की सरकार बनाने में प्रमुख भूमिका
सन 1967 में द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार को विधान सभा में पराजित कर संयुक्त विधायक दल की सरकार बनाने में वीरेंद्र कुमार सकलेचा ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. इसके बाद संयुक्त विधायक दल की सरकार में 31 जुलाई, 1967 को गोविन्द नारायण सिंह के मंत्रिमण्डल में उन्हें उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई. वीरेंद्र कुमार सकलेचा सन 1972 में राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हुए. 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सन 1977 के आम चुनाव में वे विधान सभा के लिए भारी बहुमत से विजयी हुए. 27 जून 1977 को मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के मंत्रिमंडल में उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भ्रष्टाचार से जुड़े विवादों ने वीरेंद्र कुमार सकलेचा का राजनीतिक करियर लगभग खत्म कर दिया. 31 मई 1999 को उनका देहावसान हो गया.

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