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New Year 2023: मध्य प्रदेश में सबसे पहले कहां निकलता है सूरज? 6.42 बजे बिखरी साल की पहली किरण, जानिए वजह

MP First Sun Rise: मध्यप्रदेश के किस हिस्से में सूर्य की पहली किरण पहुंचती है? एबीपी न्यूज की टीम ने जगह की पड़ताल कर वजह को भी जानने का प्रयास किया.

MP News: मध्यप्रदेश में सबसे पहले सूर्योदय कहां होता है? सूरज निकलने का समय अलग-अलग जगहों पर एक समान नहीं होात है. कहीं सूर्य की किरणें पहले दिखाई देती हैं और कहीं बाद में निकलती हैं. एबीपी न्यूज की पड़ताल में पता चला कि सिंगरौली जिले के माड़ा गांव में सूरज सबसे पहले उदयीमान होता है. सिंगरौली मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है. महान जंगल और सुंदर स्थलों के कारण पर्यटकों को जगह आकर्षित करती है. सिंगरौली जिले का माड़ा गांव प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है. गांव में पुरातात्विक महत्त्व की गुफाएं, शैलचित्र, मनमोहक झरने तालाब, जलप्रपात का नजारा मनोरम दृश्य पेश करता है. ऊंचे पर्वत से सूर्य का नजारा भी बेहद खास होता है. लगभग 609 मीटर की ऊंचाई पर बसे माड़ा गांव में सूर्य की किरणें सबसे पहले धरती पर आती दिखाई देती हैं.

सिंगरौली के 33 मिनट बाद नीमच में सूर्योदय

माड़ा गांव में राज्य की सीमाएं छत्तीसगढ़ और झारखंड से मिलती हैं. 1 जनवरी 2023 को सुबह 6.42 बजे सिंगरौली जिले के माड़ा की वादियों में सूरज की पहली किरण ने दस्तक दी. इंदौर में 24 मिनट बाद नए साल में सूर्य की पहली नजर आई. मिनट पहले प्रदेश की राजधानी भोपाल में 18 मिनट बाद सूरज की लालिमा बिखरी. राजस्थान सीमा से लगे जिले नीमच में 7:15 बजे नए साल की पहली किरण पहुंची. राजधानी भोपाल और आसपास के जिलों में करीब 7 बजे साल का पहला सूर्योदय हुआ. नववर्ष की पहली किरण मध्यप्रदेश के पूर्वी जिलों में पश्चिमी जिलों के मुकाबले लगभग 33 मिनट पहले पहुंची. उज्जैन वेधशाला के अधीक्षक डॉक्टर राजेन्द्र गुप्त बताते है कि सिंगरौली मध्यप्रदेश के सबसे पूर्वी इलाके में है. इसलिए सबसे पहले सूर्योदय यहीं होता है.

सिंगरौली मध्यप्रदेश का 50वां जिला है, लेकिन प्रकृति और समय के साथ कदमताल में अव्वल है. सिंगरौली जिले के मुख्यालय बैढ़न से 30 किलोमीटर दूर माड़ा गांव में जंगल का एरिया 10 किलोमीटर है. नेशनल अवॉर्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू बताती हैं कि जैसे कोई रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर प्रवेश करती है तो पहले इंजन, उसके बाद डिब्बे और अंत में गार्ड का डिब्बा आता है. ठीक वैसे ही परिक्रमा करती पृथ्वी का पूर्वी भू-भाग पहले सूर्य के सामने आता है. इसके बाद आगे बढ़ते हुए पश्चिमी भू-भाग के जिले सामने आते हैं. इसलिए पूर्वी जिलों में पश्चिमी जिलों के मुकाबले लगभग आधे घंटे पहले गुड मॉर्निंग हो जाती है.

पश्चिमी जिलों के लोग इसलिए भी खुश हो सकते हैं, क्योंकि यहां सबसे आखिर में सूरज डूबता है. इसका मतलब है जब पूर्वी जिलों में चंद्रमा की रोशनी आना शुरू होती है तब पश्चिमी जिलों में अस्त होने को तैयार सूर्य गर्मी देता रहता है. पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती रहती है, जिसे पृथ्वी की दैनिक गति कहते हैं. पृथ्वी गोल है, जिससे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के अलग-अलग भागों पर अलग-अलग समय में पड़ता है. इस कारण पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अलग-अलग होता है. दो लेंगिट्यूड के बीच सूर्योदय में 4 मिनट का अंतर आता है. सिंगरौली का लेंगिट्यूड 82.6, नीमच का 74.8 है. इनके बीच लगभग 8 डिग्री का अंतर है. इसलिए सूर्योदय में 8 गुणा 4 अर्थात 32 मिनट का अंतर आता है.

उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को लेंगिट्यूड लाइंस कहते हैं. सिंगरौली गंगा के मैदान किनारे मध्यप्रदेश के उत्तर पूर्वी कोने में स्थित है. यह प्राकृतिक, सांस्कृतिक और पुरातत्व विरासत का एक संगम है. बघेलखंड क्षेत्र से संबंधित है और मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है. सिंगरौली शहर 2,200 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, जबकि जिले का क्षेत्रफल 5672 वर्ग किमी है. सिंगरौली का स्थान निर्देशांक 24.202° उत्तरी अक्षांश और 82.666° पूर्वी देशांतर है. सिंगरौली भोपाल से लगभग 742 किलोमीटर की दूरी पर और सर्कल हेड ऑफिस, रीवा से 200 किलोमीटर की दूरी पर है. सिंगरौली जिले का इतिहास वैसे तो नया है परन्तु जिस भूभाग में यह स्थित है उसका इतिहास बहुत प्राचीन है.

अंग्रेजों के आने से पहले सिंगरौली जिला वर्तमान उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के दक्षिणी भाग में आता था. जब देशी रियासतों का उदय हुआ तो सिंगरौली का भूभाग रीवा राज्य या रियासत का अंग बना गया और जब भारत देश स्वतंत्र हुआ तो जैसे रीवा मध्यप्रदेश में मिल गया वैसे ही सिंगरौली भी मध्यप्रदेश का अंग बन गया और प्रशासनिक दृष्टि से 24 मई 2008 को सिंगरौली को एक जिले का दर्जा मिल गया. इसका मुख्यालय बैढ़न हुआ. इस जिले को सीधी जिले से निकाल कर बनाया गया है. सिंगरौली में दो अलग-अलग रूपात्मक इकाइयां शामिल हैं. पठारी क्षेत्र में उत्तर का खनन क्षेत्र और रिहंद, सहायक नदियों की घाटियों से बने पठार के नीचे का मैदान शामिल है. स्थलाकृति लहरदार है और उच्चतम ऊंचाई चित्रांगी में समुद्र तल से लगभग 609 मीटर है.

सिंगरौली खनिज सम्पदा से भरपूर संसाधन संपन्न क्षेत्र है. इस क्षेत्र की भूमि में मुख्य रूप से पुरातन विंध्य और गोंडवाना शामिल हैं, जो अपेक्षाकृत छोटे विंध्य और गोंडवाना के स्थानों पर हैं. गोंडवाना क्षेत्र के कुछ हिस्सों में समृद्ध कोयला हैं, जिससे जिला देश में एक प्रमुख कोयला खनन केंद्र बन गया है. सिंगरौली में कोयले के अलावा तांबा, बालू, पत्थर, गिट्टी, मुरुम आदि महत्वपूर्ण खनिज निकाले जाते हैं. हाल ही में केंद्रित ग्रेनाइट शिराओं की उपस्थिति भी पाई गई है. खनन उद्योग के आने से पहले सिंगरौली शुरू में एक घने जंगल वाला क्षेत्र था. शुष्क पर्णपाती किस्म के देश में सबसे शानदार वन आवरणों में से एक सिंगरौली था. वनों ने अब विकास का रास्ता दे दिया है लेकिन आज भी इस क्षेत्र की लगभग 11841 हेक्टेयर भूमि वनों से आच्छादित है.

गुफा में आज भी रामायण काल के साक्ष्य मौजूद

वन सागौन, महुआ, चिरौंजी, तेंदू आदि जैसे पेड़ों का एक स्रोत है जो इस क्षेत्र में रहने वाली स्थानीय जनजातियों को आजीविका का स्रोत प्रदान करते हैं. ऊर्जाधानी के नाम से मशहूर सिंगरौली का इतिहास सिर्फ काला पानी तक सीमित नहीं, बल्कि सिंगरौली का इतिहास 6वीं-7वीं शताब्दी में एक समृद्ध क्षेत्र के रूप में रहा है. यहां के जंगल की एक गुफा में रावण ने मंदोदरी के साथ गंधर्व विवाह रचाया था. वैसे सुनने में सिंगरौली का यह इतिहास चौंकाने वाला जरूर लग रहा होगा, लेकिन असलियत यही है, क्योंकि भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण में पुष्टि हुई है. सिंगरौली जिला मुख्यालय बैढ़न से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित माडा में 10 किलोमीटर तक फैला हुआ एक विशाल जंगल है. ऐसी मान्यता है कि इसी जंगल की एक गुफा में रावण ने मंदोदरी के साथ विवाह रचाया था.

रावण माडा गुफा में नटराजन की नृत्य करती मूर्ति, पत्थर ढोते वानरों के चित्र, देवी देवताओं के चित्र के साथ बने रहन-सहन कक्ष भी प्राचीन सभ्यता की कहानी कहते नजर आते हैं. माड़ा के जंगल में अनेकों गुफाएं हैं लेकिन इसे रामायण काल से जोड़ने वाली सिर्फ रावण गुफा है. सिंगरौली डीएफओ वी मधु राज बताते हैं कि विवाह माड़ा की मुख्य गुफा में वास्तु शास्त्र के महामंडप की चित्रकारी के निशान मिलते हैं. मंडप के पीछे चार प्रवेश द्वार वाला केन्द्रीय गर्भ गृह है. यह संरचनात्मक मंदिर वास्तुकला को दर्शाता है.

विद्वानों ने यहां वास्तु कला का अध्ययन किया है. गौरतलब है कि माडा गुफाओं का विशेष महत्व है. यहां की रावण गुफा में भी कई निशान मिले हैं जो रामायण काल में कई कड़ियों को जोड़ते हैं. सिंगरौली भारत के मध्य में वन क्षेत्र में स्थित है और पहाड़ियों, पहाड़ों, नदियों और घाटियों से घिरा हुआ है. इन्हीं पहाड़ियों के बीच स्थित हैं माडा गुफाएं. ये गुफाएं न केवल रॉक कट स्थापत्य कला के सुंदर उदाहरण हैं बल्कि प्रतिमा-चित्रण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं. इन गुफाओं की एक शृंखला है जिन्हें विवाह माडा, गणेश माडा, जलजलिया माडा आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है.

रिपोर्ट: देवेंद्र पाण्डेय

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